हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,आपको बताते चलें सन 1996 ईसवी में पहली बार हकीम ए उम्मत पद्म भूषण मौलाना कल्बे सादिक मरहूम ने साइंटिफक बुनियाद पर रमज़ान से पहले ईद के चांद का एलान किया था तो बहुत हंगामा हुआ था ख़ास कर मौलवी साहिबान ने इस पर सख़्त एतराज़ किया था लेकिन साइंस और एस्ट्रोनॉमी की बुनियाद पर किया गया वो एलान सच साबित हुआ और कल्बे सादिक साहब ने बिना कोई जवाब दिए सब जवाब दे दिए
उसके बाद से हर साल ये सिलसिला चलने लगा और अब 2022 में ये कोई हैरत की बात नहीं रही । बहुत सी मून साइट्स और एस्ट्रानॉमिकल सेंटर्स बन गए जिनकी ख़बर और पेशिनगोई बिलकुल सच साबित होती है । बहुत से मौलवी हज़रात भी अब इस साइंटिफ्क एलान पर यकीन करते हैं और इराक़ में हमारे सबसे बड़ी मरजय तकलीद आली मक़ाम आयतुल्ला सिस्तानी साहब के दफ्तर से भी एस्ट्रोनॉमिकल बुनियाद पर एलान होता है
मौलाना कल्बे सादिक मरहूम ने कभी इस एलान की मुखालिफत करने वालों को कोई जवाब नहीं दिया बस एक जुमला कहते थे कि मुसलमानों की ये आदत रही है कि पहले वो हर साइंटिफिक ईजाद को बिदअत कहते हैं फिर कुबूल कर लेते हैं
माज़ी की तारीख पढ़ी जाए तो चश्मा , लाउडस्पीकर , हवाई जहाज़ , प्रिंटिंग प्रेस सबको बिदअत कहा गया और आज सभी उनका इस्तेमाल कर रहे हैं , मुसलमानों को अपना अंदाजे फिक्र बदलने की जरूरत है ।
बहरहाल डॉक्टर साहब मरहूम इस्लामी दुनिया के पहले वो आलिम ए दीन थे जिन्होंने पहली बार साइंटिफिक बुनियाद पर रमजान से पहले ईद का एलान करने की हिम्मत दिखाई और एक पहाड़ की तरह अपने इस अमल पर ता जिंदगी बाक़ी रहे और आज ये कोई नई और काबिले ताज्जुब चीज़ रही ही नहीं । पढ़ा लिखा बहुत बड़ा तबका माहे रमज़ान के अलावा भी मुख्तलिफ महीनों में एस्ट्रोनॉमिकल बुनियादों पर चांद के निकलने की ख़बर पर यक़ीन करता हैं और शादी ब्याह व दूसरे प्रोग्राम की तारीख तय करता है
किताब : " खुदी को कर बुलंद इतना "
पेशकश : डॉक्टर कल्बे सिब्तैन नूरी , लखनऊ