हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट अनुसार, इंतेहाई अफसोसनाक खबर मिली कि बुज़ुर्ग आलिम मौलाना सय्यद अली आबिद रिज़वी त०स० का इंतेकाल हो गया
इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन
मौलाना सय्यद अली आबिद रिज़वी आलिमे बा अमल थे,इंतेहाई ख़लीक़ और बुर्दबार थे।खामोशी से लोगों की मदद करते खास कर अहले इल्म का खास ख्याल रखते,उम्र का बड़ा हिस्सा मुल्क के बाहर गुज़ारा और उन लोगों के साथ गुज़ारा जो एहसान कर के जता देते हैं लेकिन कोई यह न कह सका कि कभी आपने किसी से कुछ मांगा हो या रुकूमे शरिया ली हों।हमेशा तरवीजे दीने अहलेबैत अ०स० में मशग़ूल रहे। मतीन ख़ेताबत के लिए दुनिया भर में सेहत की बरक़रारी के लिए याद किए जाते रहे।अफ़्रीका में तरवीजे दीन के लिए मदरसा काएम किया लेकिन जब हालात से मजबूर हुए तो इंग्लैंड की जानिब हिजरत फरमा ली।
मरहूम से मेरा ज़ाती रिश्ता तक़रीबन वैसा ही था जैसे अल्लामा जवादी अ०म० से था इसकी कई वजहें थीं। मरहूम बानी ए तनज़ीम मौलाना सय्यद गुलाम असकरी अ०म० के छोटे भाई मेरे मामू हकीम मौलाना सय्यद गुलाम बाक़िर साहब मरहूम के हम दर्स और दोस्त थे।अल्लामा जवादी र०अ० के बरादरे बुज़ुर्ग थे। तनज़ीम के लिए निहायत दर्जा मुखलिस थे। जब तक हिंदुस्तानी शहरियत रही इदारे तनज़ीमुल मकातिब की मैनेजिंग कमेटी के मिंबर रहे। मामू जान मरहूम बानी ए तनज़ीम मौलाना सय्यद गुलाम असकरी अ०म० के बाद मेरा बहुत खयाल रखा, इंतेहाई मुनकसिरुल मिज़ाज और शफीक़ थे जब भी लंदन जाता अगर कभी मुलाक़ात में ताखीर हो जाती तो खुद मिलने आ जाते जब कि रुतबए इल्म उम्र हर चीज़ में उनके सामने मेरी कोई हैसियत न थी।
इदारे तनज़ीमुल मकातिब से खास लगाव था,हमेशा तअवुन फरमाते थे,ता सेहत जब भी लखनऊ तशरीफ लाते,तनज़ीमुल मकातिब भी ज़रूर तशरीफ लाते, इदारे की खिदमात को सराहते और मज़ीद सरगर्मी की तशवीक़ फरमाते थे।
इस दौरे क़हतुर्रेजाल में ऐसे आलिमे जलील,फाज़िले नबील,मुखलिस मज़हब,खादिमे मिल्लत की रेहलत ना क़ाबिले तलाफी नुक़सान है।
हम मौलाना मरहूम के पसमन्देगान और वाबस्तगान की खिदमत में ताज़ियत पेश करते हैं और बारगाहे माबूद में दुआ गो हैं कि रहमत व मगफेरत नाज़िल फरमाए,जवारे अहलेबैत अ०स० में बलंद दरजात अता फरमाए।
(मौलाना) सय्यद सफी हैदर ज़ैदी
सेक्रेटरी तनज़ीमुल मकातिब लखनऊ