हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने कहां,एक ज़माना वह भी था कि जैसे ही हम बड़े शहरों से बाहर निकलते थे ईरानी डाक्टर बहुत कम ही नज़र आते थे। मैं ख़ुद ज़ाहेदान में, ईरानशहर में रह चुका हूं। वहां जो डाक्टर थे हिंदुस्तानी थे।
बुरे डाक्टर नहीं थे। लेकिन बात यह है कि मुल्क विदेशी डाक्टरों का मोहताज था। इंक़ेलाब के शुरु में दिल की बीमारियों के लिए आठ साल, नौ साल और दस साल बात का नंबर मिलता था। यानी दिल का बीमार अस्पताल जाता था और उसे आप्रेशन के लिए दस साल बाद का वक़्त दिया जाता था।
तब तक बीमार की मौत हो जाती थी। आज दूर दराज़ के शहरों में भी दिल की बीमारियों के विशेषज्ञ ओपन हार्ट सर्जरी कर रहे हैं। यह वास्तविक प्रगति है।
इमाम ख़ामेनेई,