۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
रहबर

हौज़ा/इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने कहां,घमंड, हमें अपने बारे में ग़लतफ़हमी में डाल देता है, हम जो कुछ हैं ख़ुद को ‎उससे ‎ज़्यादा समझने लगते हैं, घंमड की मुश्किल यह है। जब हम ख़ुद को जो ‎कुछ हैं उससे ‎ज़्यादा समझने लगें तो फिर हमारी ग़लतियां हमारी नज़रों में ‎छोटी हो जाएंगी। जब ग़लती ‎छोटी हो गयी तो फिर हम उसे ‎सुधारने पर ध्यान नहीं देते, सुधारते नहीं और वही ‎ग़लती दोहराते जाते हैं और ‎वैसे ही बने रहते हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने कहां,ग़ुरुर न करें, घमंड न करें। घमंड अगर हो जाता है तो यह पतन की शुरुआत ‎है, ‎तबाही की शुरुआत है, यह घमंड चाहे जिस वजह से हो अगर पैदा हो गया ‎तो इन्सान ‎की तबाही की शुरुआत हो जाती है। इन्सान में जब ग़ुरुर पैदा हो जाता है तो ‎वह अंदरुनी तौर ‎पर भी तबाह हो जाता है और समाज में भी उसकी पोज़ीशन ‎ख़त्म हो जाती है। इसी ‎तरह उसके आस पास जो समाजी काम होते हैं वह भी ‎ख़त्म हो जाते हैं।

क़ुरआने ‎मजीद की यह जो आयत है कि “अल्लाह ने बहुत से ‎मौक़ों पर तुम्हारी मदद की है ‎और हुनैन के दिन जब तुम्हें अपनी तादाद पर ‎घमंड हो गया था तो उसका कोई ‎फ़ायदा नहीं हुआ और विशाल होने के बावजूद ‎ज़मीन तुम पर तंग हो गयी“। यह ‎भी इसी बारे में है। हुनैन वह पहली ‎जंग थी जो मक्का पर जीत हासिल होने के बाद ‎हुई थी।

पैग़म्बरे इस्लाम के ‎साथ बहुत लोग थे। बद्र की जंग की तरह नहीं जब सिर्फ ‎‎313 लोग ही थे, यह ‎लोग कई हज़ार थे। जिनमें नये नये मुसलमान, मुहाजिर और ‎अंसार, मक्का में ‎जीत हासिल करने वाले सब लोग शामिल थे। यह सब लोग हुनैन ‎की जंग के ‎लिए तायफ़ की तरफ़ गये थे। जब मुसलमानों ने अपनी इतनी बड़ी तादाद ‎देखी ‎तो उनमें ग़ुरुर पैदा हो गया। ख़ुदा ने इसी ग़ुरुर की वजह से उन्हें हार का ‎मज़ा ‎चखाया। इतनी बड़ी ज़मीन उनके लिए तंग हो गयी और वह लोग भाग ‎लिये। ‎वह जगहें जब लोग पैग़म्बर को छोड़ कर भाग गये और सिर्फ़ हज़रत ‎अली ‎‎(अ.स.) और कुछ लोग ही उनके पास बचे उनमें से एक जगह हुनैन की जंग ‎है, ‎ओहद की तरह। तो घंमड का नतीजा यही होता है। हालांकि ख़ुदा ने बाद में ‎उन्हें ‎जीत दी और वह जीतने में कामयाब रहे लेकिन ख़ुद पर ग़ुरुर का यही ‎नतीजा होता ‎है। यानी इन्सान ख़त्म हो जाता है, वह हमें तबाह कर देता है और ‎उन लोगों को भी ‎तबाह कर देता है जो हम पर टिके होते हैं। यही वजह है कि ‎दुआए कुमैल में हमें ‎सिखाया गया है कि एक यह भी दुआ करें अल्लाह से कि ‎‎“हमें अपनी क़िस्मत पर ‎ख़ुश और जो मिला उस पर राज़ी रहने की तौफ़ीक़ दे ‎और हर हाल में हमें विनम्र बना“। हर हाल में विनम्र रहें यह ‎घमंड के उलट है। ‎

लोगों से दूरी ‎
अगर हमारे अंदर घमंड पैदा हो जाए तो उसका एक नुक़सान यह है कि हम ‎लोगों से ‎दूर हो जाएंगे। लोग हमारी नज़र में छोटे हो जाएंगे हम लोगों को ‎कमतर समझेंगे और ‎फिर ज़ाहिर सी बात है कि लोग भी हम से दूर हो जाएंगे। ‎

ग़ुरूर है तो अपनी ग़लतियां नज़र नहीं आएंगी
घमंड, हमें अपने बारे में ग़लतफ़हमी में डाल देता है, हम जो कुछ हैं ख़ुद को ‎उससे ‎ज़्यादा समझने लगते हैं, घंमड की मुश्किल यह है। जब हम ख़ुद को जो ‎कुछ हैं उससे ‎ज़्यादा समझने लगें तो फिर हमारी ग़लतियां हमारी नज़रों में ‎छोटी हो जाएंगी। जब ग़लती ‎छोटी हो गयी तो फिर हम उसे ‎सुधारने पर ध्यान नहीं देते, सुधारते नहीं और वही ‎ग़लती दोहराते जाते हैं और ‎वैसे ही बने रहते हैं। ग़ौर कीजिए यह सब घमंड का ‎नतीजा है, कितना बुरा है ‎यह! ‎

भला चाहने वालों की नसीहत न सुनना
घमंड हमें भला चाहने वालों की नसीहतों से भी दूर कर देता है। कभी यह होता ‎है कि ‎कोई दुश्मनी में हमें कुछ कहता है तो मान लिया जाए कि हम यह ‎बर्दाश्त नहीं कर ‎पाते और हमें ग़ुस्सा आ जाता है लेकिन कभी कभी लोग सच्चे ‎दिल से और हमारे ‎भले के लिए हमें हमारी बुराई बताते हैं लेकिन हम उसे भी ‎नहीं सुनते, यह भी घमंड ‎का एक असर है।

इमाम ख़ामेनेई,

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