हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,टोक्यो में ओलम्पिक और पैरालिम्पिक-2021 में मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों ने सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई से मुलाक़ात की। सुप्रीम लीडर ने कहा कि खेल की प्रतियोगिताओं में जीत समाज को ऊर्जा, ज़िन्दादिली, हिम्मत, और इरादे की ताक़त का पैग़ाम देती है। उन्होंने कहाः “सभी यह महसूस करते हैं कि जो शख़्स चैंपियन के रूप में खड़ा है, उसने हिम्मत दिखाकर, इरादा करके और अपनी क्षमता को इस्तेमाल करके समाज को ख़ुश किया। हक़ीक़त में चैंपियन दृढ़ता, उम्मीद और ख़ुश रहना सिखाते हैं।
सुप्रीम लीडर ने इस मुलाक़ात में ज़ायोनी शासन की खेल की प्रतियोगिताओं के ज़रिए अंतर्राष्ट्रीय लेवल पर वैधता हासिल करने की कोशिश का ज़िक्र करते हुए कहाः “आज़ादी पसंद खिलाड़ी एक मेडल के लिए एक मुजरिम शासन के प्रतिनिधि से खेल के मैदान में हाथ नहीं मिला सकता और उसे अमली तौर पर मान्यता नहीं दे सकता।”
इसी तरह उन्होंने बहुत से खिलाड़ियों के दक्षिण अफ़्रीक़ा के पूर्व नस्लवादी शासन का प्रतिनिधित्व करने वाले खिलाड़ियों के साथ प्रतियोगिता न करने के अनुभव का ज़िक्र करते हुए कहाः “आज जब ज़ायोनी शासन के साथ होता है तो शोर मचाया जाता है, जबकि दक्षिण अफ़्रीका के पूर्व नस्लवादी शासन के साथ ऐसा ही होता था कि दुनिया के बहुत से खिलाड़ी उसके साथ प्रतियोगिता नहीं करते थे। वह शासन ख़त्म हो गया, मिट गया। यह शासन भी ख़त्म हो जाएगा, मिट जाएगा।”
उन्होंने देश के अधिकारियों से आग्रह किया कि उन ईरानी खिलाड़ियों यहां तक कि अलजीरिया के ख़िलाड़ी जैसे ग़ैर ईरानी खिलाड़ियों के अधिकारों का बचाव करें जिन्हें ज़ायोनी शासन का प्रतिनिधित्व करने वाले खिलाड़ी से मुक़ाबला न करने की वजह से सज़ा की कार्यवाही और बैन का सामना हुआ। उन्होंने कहा कि देश के अधिकारियों को इन खिलाड़ियों का साथ देना चाहिए।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अच्छी और अनुचित चैंपियनशिप में फ़र्क और कुछ ग़ैर मूल्यवान चैंपियनशिप का ज़िक्र करते हुए कहाः रेफ़रियों के जान बूझ कर किए गए ग़लत फ़ैसले, राजनैतिक जोड़-तोड़ और कुछ अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में दी जाने वाली रिश्वत की घटनाओं से लेकर, स्टेमिना बढ़ाने वाले पदार्थों का इस्तेमाल और डोपिंग तक जैसे काम यहां तक कि एक मेडल हासिल करने के लिए ख़ुद को और राष्ट्र को बेचने जैसे काम भी किए जाते हैं, ऐसे मेडल की कोई क़ीमत नहीं है, यह कलंक है।
सुप्रीम लीडर ने एक और अहम बिन्दु का ज़िक्र किया कि इस साल ओलम्पिक और पैरालिम्पिक खेलों में ईरान निर्मित खेल के लिबास कई देशों के खिलाड़ियों ने इस्तेमाल किए। यह दुनिया में ईरान की तरक़्क़ी की एक निशानी है। कुछ अंतर्राष्ट्रीय ब्रैंडों की मोनोपोली टूट गयी। यह बात बहुत अहमियत रखती है।
उन्होंने देश के अधिकारियों से देश के इस प्रोडक्ट का समर्थन करने और खेल के दूसरे साज़ो सामान को भी देश के भीतर बनाने की ताकीद की। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनेई ने कहा कि हेजाब के साथ खेल प्रतियोगिताओं में ईरानी महिला खिलाड़ियों की कामयाबी से हिजाब के ख़िलाफ़ दुश्मन के प्रोपैगंडे बेअसर हो गए। उन्होंने ईरानी महिला खिलाड़ियों को संबोधित करते हुए कहाः “आपके इस हिजाब से दूसरे मुसलमान देशों की औरतों को भी हिम्मत मिली। मैंने सुना कि दस से ज़्यादा मुसलमान देशों की महिला खिलाड़ी इस साल हिजाब के साथ अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में खेल के मैदान में उतरीं। यह काम प्रचलित नहीं था। यह आपका कारनामा है। ईरानी चैम्पियन व खिलाड़ी के तौर पर आपने यह काम किया और रास्ता खोल दिया।”
सुप्रीम लीडर ने आगे कहाः “हमारी महिला खिलाड़ियों ने साबित कर दिखाया कि इस्लामी हेजाब, कामयाबी में रुकावट नहीं है, जैसा कि इससे पहले राजनीति, साइंस और प्रशासन के क्षेत्र में भी वे यह साबित कर चुकी हैं।”
उन्होंने खिलाड़ियों के कुछ दूसरे मुल्यवान काम गिनवाते हुए कहाः “जवांमर्दी और नैतिकता के साथ साथ अध्यात्म से प्रेरित जो रवैया आप लोगों ने अपनाया। खेल के कारवां का शहीदों ख़ास तौर पर शहीद सुलैमानी का नाम देना, कुछ मेडल पाने वाले खिलाड़ियों का मेडल को ख़ास शहीदों को समर्पित करना, प्रतिरोध व बलिदान के प्रतीक के रूप में चफ़िया नामी विशेष गमछे का इस्तेमाल और उस पर ईश्वर का सजदा करना, ये सब बहुत अहमियत रखते हैं। इन सबसे पूरी दुनिया में जमनत को अध्यात्म का संदेश जाता है। इन सबकी बहुत अहमियत है।”
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने बल देकर कहा कि हमें ईश्वर का इस बात के लिए आभार जताना चाहिए कि यह चैंपियन शिप और उम्मीद की किरन सिर्फ़ खेल के मैदान तक नहीं है। साइंस के मैदान में, टेक्नॉलोजी के मैदान में और साहित्य के मैदान में भी हम ऐसे ही हैं।