हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के जाने-माने इस्लामिक विद्वान हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन मौलाना सय्यद कल्बे रुशैद रिज़वी ने माहे अज़ा के बारे में हौज़ा न्यूज़ एजेंसी से कहा: अल्लाह की इससे बड़ी नेमत कोई नहीं हो सकती कि उसने पूरे साल मे हमारे अंदर जो गंदगी, कमीया या जो कमजोरी दुनिया की प्रसिद्धि के लालच और हवा से जो अंतरआत्मा को हानि पहुचाता है उससे सुरक्षित रहने के लिए रमज़ान का महीना रखा जिससे हमारे अंदर सफाई हो जाती है जिससे हम गदीर के संदेश को सुनने के लिए तैयार हो जाते है, और कान को वह आवाज़ सुनाई देती है जो 1400 साल पहले पैगंबर (स.अ.व.व.) ने दी थी, और फिर पैगंबर (स.अ.व.व.) की आवाज से हुसैन (अ.स.) की आवाज तक की एक यात्रा जो हम पूरी करते है, अर्थात वहां पैगंबर (स.अ.व.व.) कह रहे हैं कि मेरे बाद, अली ( अ.स.) मौला है, और यहाँ हुसैन (अ.स.) कह रहा है कि कोई है जो मेरी मदद करे। इन दोनों आवाजों के बीच में हमारा ईमान है, और जिसके कान मे यह दो आवाजे नही आईं , अर्थात ग़दीर तो है कर्बला नहीं है, तो उसका तशय्यो सुरक्षित नहीं है।
उन्होंने आगे कहा: यह अल्लाह की कृपा है कि मुहर्रम के इन दस दिनों में हमारे युवा बहुत कुछ सीख जाते हैं और जिक्रे खुदा, यादे खुदा और मुसल्ले से शक्ति प्राप्त कर लेते है। मुहर्रम बहुत बड़ी शक्ति का नाम है। यह माह उस हृदय को जिसे संसार ने बंधक बना लिया है, उसे संसार से मुक्त कर ईश्वर को अर्पण कर देता है।
मौलाना ने मजलिस के सम्मान और उसकी पवित्रता और उसके संचालन के संबंध में संक्षिप्त चर्चा करते हुए कहा: किसी भी चीज के लिए, कुछ चीजें जरूरी हैं, अगर कोई मजलिस पढ़ रहा है लेकिन मजलिस अपने मानकों पर नहीं है, तो सब कुछ होते हुए राष्ट्रीय विचारक, राष्ट्र का दर्द रखने वालो को सही नही लगेगा। इसके बावजूद हमारे समाज में कुछ चीजें हैं जो नहीं होनी चाहिए और कुछ चीजें होनी चाहिए जो नही है, जैसे डॉक्टर जानता है कि कौन सी दवा रोगी के लिए अच्छी है, रोगी यह तय नहीं करता है कि उसे कौन सी दवा लेनी चाहिए, यह केवल डॉक्टर का अधिकार है कि वह रोगी को दवा लिख दे, लेकिन बारगाहे हुसैनी में शिफा पाने के लिए, अपनी अंतरात्मा को जगाने के लिए और पुर्सा पेश करने के लिए, जितने लोग इकट्ठा होते हैं उन्हे यह अधिकार नही है कि वो अपने विद्वान को कहे कि आप यह पढ़े और वो पढ़े, उस सभा में उसे क्या करना चाहिए, यह तय करना विद्वान का अधिकार है। इस संबंध में किसी भी धर्म के विद्वान को जनता की बात नहीं सुननी चाहिए, यदि धार्मिक विद्वान की बोलने की शैली विद्वतापूर्ण है, तो वह अपने मिशन को क्षतिग्रस्त होने से बचाएगा।
उन्होंने खतीब ए मजलिस के बारे में कहा: धार्मिक विद्वान को कम से कम समय में अधिक से अधिक संदेश लोगों तक पहुंचाना चाहिए। मजलिस की सफलता को समय की कसौटी पर कसना गलत है। कि हमने इतने घंटे मजलिस पढ़ी बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि इतने कम समय में कितने लोगो को संदेश दिया गया।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना सैयद कल्बे रुशैद रिज़वी ने होज़ा न्यूज़ एजेंसी के संबंध में कहा: दुनिया में कोई भी प्रोजेक्ट ऐसा नहीं है जिसके लिए घोषणा की आवश्यकता न हो, सभी रचनात्मक चीजों को घोषणा की आवश्यकता होती है, होज़ा न्यूज़ एजेंसी स्वयं कई सौ साल की रचनात्मक महनतो की घोषणा का नाम है, इस प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से विद्वानो की योजनाओ और लक्ष्यों को लोगों तक पहुँचाया जा सकता है, 9 हजार किलोमीटर की भूमि को एक मुठ्ठी मे समेटना कमाल है, जो हौजा न्यूज एजेंसी द्वारा किया गया है।
मुहर्रम अल-हराम मे हौज़ा न्यूज़ एजेंसी ने जो अशरा ए मुहर्रम के संबंध से रिपोर्टिंग का कार्य किया वह अपने आप में एक उत्कृष्ट कार्य है, दुनिया भर में चल रहे अशरा ए मुहर्रम की मजलिसो को एक स्थान पर एकत्रित करना और सारांश को जनता तक पहुँचाना बहुत सवाब का हामिल है। हौज़ा न्यूज़ को एक ऐप्लीकेशन के रूप में भी जारी किया जा सकता है। इस वर्चुअल स्पेस को रियल स्पेस में बदलें।
उन्होंने मजलिस-ए-अजा की हिफाजत में महिलाओं की भूमिका के बारे में कहा: हम मजलिस-ए-अजा में नहीं होते अगर महिलाएं नहीं होतीं, अगर महिलाएं नहीं होतीं तो हमें बारह इमामों के नाम भी याद नहीं होते। हम अपनी महिलाओं के आभारी नहीं हैं कि उन्हें इमाम हुसैन (अ.स.) की मजलिसे अजा मे बैठना सिखाया, हम अपनी माताओं के आभारी हैं कि उन्होंने हमें मसाइब में रोना सिखाया, हमें अपनी मां से पहले किसने सूचित किया कि मजलिसे अज़ा मे फातिमा ज़हरा (स.अ.) आती है। हमारी सुरक्षा में महिलाओं की एक बड़ी भूमिका है, आज अगर कोई युवक सिर उठाकर चल रहा है, तो उसका गौरव घर की महिलाओं पर आधारित है।
मौलाना सैयद कल्बे रुशैद रिज़वी ने आगे कहा: यदि आप देखें, तो 25% मजलिस पुरुषों द्वारा और 75% महिलाओं द्वारा आयोजित की जाती हैं। मजलिस अजा के तहफ्फ़ुज़ मे और मकसदे अज़ा के तहाफ्फ़ुज़ मे महिलाओ की बहुत बड़ी भूमिका है। गांव आदि में भी हमारे यहां पुरुषों की एक एतिहासिक मजलिस होती है लेकिन दूसरी ओर हर घर में महिलाओं का अशरा होता है।
मुहर्रम के जुलूस में शामिल होने वाली महिलाओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा: दस मुहर्रम पर जब महिलाएं जुलूस में आती हैं तो आपको उन्हें यह महसूस कराना चाहिए कि आप दुनिया की नजरों में हैं, प्राचीन समय में सोशल मीडिया नहीं था और न ही दुनिया के लोगों की नजर तुम पर थी। लेकिन इस दौर में पूरी दुनिया आपको देख रही है, इसलिए आपका पहनावा और अंदाज बिल्कुल वैसा ही होना चाहिए जैसा सय्यदे सज्जाद चाहते थे। फरश अज़ा ए इमाम हुसैन (अ.स.) ख़ुशनूदी इमाम सय्यद सज्जाद (अ.स.) की पहली सीढ़ी है।