हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद 12 मोहर्रम को अहले हरम का क़ाफ़िला इमाम सज्जाद ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की सरपरस्ती में करबला से कूफ़ा की ओर चला, कूफ़ा की मंज़िलों को तय करने के बाद इस क़ाफ़िले को यज़ीद के दरबार शाम (सीरिया) की ओर ले जाया गया, जब यज़ीद के दरबार में यह क़ाफ़िला पहुंच गया तो यज़ीद ने पहले दरबार में शहीदों के कटे हुए सरों को मंगवाया और फिर उबैदुल्लाह इब्ने ज़ियाद मलऊन के भेजे गए सिपाही ने यज़ीद के दरबार में तक़रीर कर के दरबारियों को बताया कि करबला वालों को कैसे शहीद किया गया, यह सब देखकर कुछ लोगों ने उसी दरबार में खड़े हो कर यज़ीद की कड़ी आलोचना की, यज़ीद चुपचाप सुनता रहा, फिर जब यज़ीद का दरबार पूरी तरह तैयार कर दिया गया तब अहले हरम को दरबार में लाया गया। (तशय्यो दर मसीरे तारीख़, मुतर्जिम सैय्यद मोहम्मद तक़ी आयतुल्लाही, दसवां एडीशन, पेज 80)
फिर उसी दरबार में पैग़म्बरे अकरम स.ल.व.व. के घराने की औरतों को कनीज़ी में मांगने का सवाल उठता है, (इरशादे शैख़ मुफ़ीद, तर्जुमा मोहम्मद बाक़िर साएदी, तीसरा एडीशन, पेज 479) जिस पर हज़रत ज़ैनब (स.ल.) ने उस शख़्स और यज़ीद को भरे दरबार में ज़लील व अपमानित किया, यज़ीद ने जब सबके सामने अपने अपमान को देखा तो उसने ख़ैज़रान की लकड़ी से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मुबारक होंटों पर गुस्ताख़ी करना (मारना) शुरू कर दी, यही वह समय था जब इमाम अली अलैहिस्सलाम की बहादुर बेटी ने उसी दरबार में उसी के लोगों के सामने ऐसा ख़ुत्बा दिया कि यज़ीद और उसकी हुकूमत की चूलें हिल गईं।
हम यहां पर हज़रत ज़ैनब (स.व.) के उसी ख़ुत्बे का तर्जुमा पेश कर रहे हैं जिस ख़ुत्बे को किताब "लुहूफ़" में भी पढ़ा जा सकता है।
हज़रत ज़ैनब खड़ी हुईं और ख़ुदा की हम्द और पैग़म्बरे अकरम (स.ल.व.व.) और उनके ख़ानदान पर सलवात पढ़ने के बाद फ़रमाया: अल्लाह ने सच कहा है कि जिन्होंने बुरा काम अंजाम दिया, अल्लाह की निशानियों का इन्कार किया और उनका मज़ाक़ उड़ाया उनका अंजाम बुरा है।
ऐ यज़ीद! क्या तू यह सोंचता है कि तूने हमारे लिए ज़मीन और आसमान के रास्तों को तंग कर दिया है और हमें मजबूर बनाकर असीरों की तरह क़ैद कर लिया है तो इस से हम अल्लाह के नज़दीक ज़लील हो गए और तेरी इज़्ज़त बढ़ गई है और जिसकी वजह से तेरा अहंकार इतना बढ़ गया? तू ख़ुश हो रहा है कि सब कुछ तेरी इच्छानुसार हो रहा है? होश में आ! क्या तू अल्लाह का फ़रमान भूल गया कि काफ़िर यह न सोंचे कि अगर हम उनको ढील दे रहे हैं तो यह उनके फ़ायदे के लिए है, बल्कि ढील देने का मक़सद यह है कि वह और अधिक गुनाह करें और उनके लिए और दर्दनाक अज़ाब है।
ऐ हमारे नाना के आज़ाद किए हुए ग़ुलामों की औलाद! क्या यही इंसाफ़ है कि तूने अपनी बीवियों और कनीज़ों को पर्दे में रखा है लेकिन रसूले ख़ुदा (स) की बेटियां भरे दरबार में क़ैदी बनकर खड़ी हैं? यह कहां का इंसाफ़ है कि पैग़म्बरे अकरम (स) के घराने की औरतों के चेहरों को भरे दरबार में ज़ाहिर कर के उनका अपमान करो, उनको एक शहर से दूसरे शहर फिराओ, अपने और ग़ैर सब उनको देखें, शरीफ़ और ज़लील उनके चेहरे को देखें, जबकि उनकी हालत पर कोई तरस खाने वाला भी नहीं है? उन से उम्मीद भी क्या की जा सकती है जिन्होंने आज़ाद लोगों के कलेजे चबाए हों, (यह इस बात की ओर इशारा है कि हिंदा की औलाद से क्या उम्मीद लगाई जा सकती है) वह कैसे हम से दुश्मनी न निकालें जबकि वह जंगे बद्र और ओहद की नफ़रतें दिल में लिए बैठे हैं और उनके दिल दुश्मनी और ईर्ष्या से भरे हुए हैं।
यज़ीद मलऊन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के होंटों पर ख़ैज़रान की छड़ी से मारते हुए शेर पढ़ रहा था जिसमें अपने बाप दादा (मुआविया और अबू सुफ़ियान) को पुकारकर कह रहा था कि देखो मैंने क्या किया है, उसके बारे में हज़रत ज़ैनब (स) ने फ़रमाया कि ऐ यज़ीद! तू तो यह शेर पढ़ेगा ही, तू हमारे दिलों को ज़ख़्मीकर के और हमारे ख़ून को बेरहमी से बहाकर अपने बाप दादाओं को यह सोंचकर पुकार रहा है कि वह तेरी आवाज़ सुनेंगे, बहुत जल्द तू भी उनके पास पहुंच जाएगा और उस समय कहेगा कि ऐ काश गूंगा और अपाहिज होता ताकि जो कुछ कहा है और किया है वह न कहता और न करता।
फिर हज़रत ज़ैनब (स) अल्लाह को पुकारकर कहती हैं: ख़ुदाया! हमारा हक़ इस से छीन ले और जिस जिस ने हम पर ज़ुल्म किया है उन सब से बदला ले और जिसने भी हमारा और हमारी मदद करने वालों का ख़ून बहाया है उनको नाबूद कर दे। ऐ यज़ीद! तूने अपनी ही खाल उतारी है और अपने ही टुकड़े किए हैं और तू बहुत जल्द रसूल अल्लाह (स) का ख़ून बहाने, उनके अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम का घोर अपमान करने के जुर्म में मुजरिम बनकर उनके सामने खड़ा होगा और उस समय अल्लाह उनके हक़ को तुझ से मांगेगा और ख़बरदार जो अल्लाह की राह में क़त्ल कर दिए गए हैं उनको मुर्दा मत सोंचना वह ज़िंदा हैं और अल्लाह के पास से रोज़ी हासिल कर रहे हैं, तेरे फ़ैसले के लिए अल्लाह और तुझ से बदले के लिए पैग़म्बरे अकरम (स) ही काफ़ी हैं, जबकि जिब्रईल, पैग़म्बर (स) के मददगार होंगे।
जिस जिस ने तुझे हुकूमत पर बिठाने के लिए कोशिशें कीं वह जान लें कि ज़ालिमों का अंजाम बहुत बुरा है और सुन! हालात ने तुझ से मुख़ातिब होने पर मजबूर कर दिया, लेकिन जान ले मैं तेरी हैसियत मिट्टी में मिला दूंगी और तेरा घिनौना चेहरा पूरी दुनिया के सामने पेश करूंगी और हां! यह जो हमारा आंसू बहाना देख रहा है यह तेरे डर या तेरी ताक़त की वजह से नहीं है बल्कि हमारे दिल अपने प्यारों के लिए तड़प रहे हैं।
ऐ यज़ीद! जो चाल भी चलना हो चल ले, जितनी कोशिश करना हो कर ले, जितनी ताक़त है तेरे पास सब झोंक दे, लेकिन ख़ुदा की क़सम! तू हरगिज़ हमारा नाम और हमारे चाहने वालों के दिलों से हमारी याद कभी नहीं मिटा सकता, याद रख! तू हमारे ख़ून से रंगीन अपनी आस्तीनों को कभी साफ़ नहीं कर सकता, तेरे हाथ बिकी हुई यह भीड़, तेरी यह हुकूमत बहुत जल्द नाबूद होगी और बहुत जल्द ही हक़ की आवाज़ गुंजेगी कि ज़ालिमों पर ख़ुदा की लानत हो।
अल्लाह का शुक्र कि उसने हमारी शुरूआत सआदत और हमारा अंजाम शहादत रखा, ख़ुदा से दुआ है कि उनके सवाब को बढ़ा दे और हमारा नेक जानशीन बनाए, वह मेहरबान और रहम करने वाला ख़ुदा है, वह हमारे हर काम में हमारे लिए काफ़ी है और वही हमारा वकील है। (मक़तलुल-हुसैन अ., अबू मिख़नफ़, तर्जुमा सैय्यद अली मोहम्मद जज़ाएरी, पहला एडीशन, पेज 393)