हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम का जन्म 5 शाबान सन 38 हिजरी क़मरी को मदीने में हुआ। आपने ख़ुदा की कृपा और पिता इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जैसी हस्ती की छत्रछाया में अपने व्यक्तित्व को नैतिक गुणों से सुशोभित किया।
आपकी उम्र 23 साल से ज़ियादा गुज़री थी कि करबला की त्रासदी घटी और उस समय आप बीमार होने की वजह से रणक्षेत्र में न जा सके। इस ख़ुदाई इच्छा की वजह से इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ज़िन्दा रहे ताकि अपने महान पिता हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद इस्लामी जगत के मार्गदर्शन की पताका अपने हाथ में संभालें।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की इमामत के काल में इस्लामी जगत के हालात संकटमय थे। यह हालात इतने संकटमय थे कि इनसे न सिर्फ़ इस्लामी जगत का भविष्य ख़तरे में था बल्कि मुमकिन था कि इस्लामी जगत का नाम व निशान मिट जाए। उस समय शासकों के बीच सत्ता के लिए प्रतिस्पर्धा चल रही थी। कोई भी शासक तीन-चार साल से ज़ियादा सत्ता पर बाक़ी नहीं रह पा रहा था। मिसाल के तौर पर यज़ीद बिन मुआविया मलऊन ने तीन साल हुकूमत की उसके बाद उसी के बेटे मुआविया बिन यज़ीद ने छह महीने या उससे कम और फिर उसके बाद मरवान मलऊन ने कुछ महीने से ज़ियादा हुकूमत की। शहरों के राज्यपाल भी इसी तरह बदलते रहते थे जिसकी वजह से अस्तव्यस्तता व्याप्त थी और संकट गहराता जा रहा था। दूसरी ओर धार्मिक शिक्षाओं की अनदेखी, सांसारिक अनुकंपाओं और हराम ऐश व इशरत के इस्तेमाल में फ़ुज़ूल ख़र्ची और अध्यात्म से दूरी की वजह से इस्लामी समाज में बुराइयां आम होती जा रही थीं। लोग शासकों की तरह धर्म के ज़ाहिरी रूप पर अमल करते और ख़ुदा पर आस्था जैसी अनमोल अनुकंपा से दूर थे। इस्लामी शिक्षाओं में तेज़ी से फेर बदल हो रहा था। साथ ही उमवी शासन (बनी उमैया) किराए के रावियों के ज़रिए इस्लामी शिक्षाओं में फेर बदल करवाकर मुसलमानों को सत्य से दूर कर रहा था।
ऐसे दौर में इमाम सज्जाद ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने इस्लामी समाज के नेतृत्व की ज़िम्मेदारी संभाली ताकि इस्लाम का पतन रुक जाए और मुसलमान तबाही से बच जाएं। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने 35 साल जनता के मार्गदर्शन के दौरान, उमवी शासकों के दुष्प्रचार से संघर्ष किया, जनता के मन से भ्रान्तियों को दूर किया, इस्लामी विचारों का प्रचार-प्रसार किया और लोगों में आस्था के आधार को मज़बूत किया।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम अत्याचार व अन्याय के ख़िलाफ़ हमेशा संघर्ष पर बल देते और बहुत ही सूझबूझ के साथ इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन की याद को लोगों के मन में जीवित करते थे ताकि यह महाआंदोलन राष्ट्रों व भविष्य की पीढ़ियों के लिए अत्याचार व अन्याय के ख़िलाफ़ संघर्ष के लिए हमेशा प्रेरणा का स्रोत बना रहे।
इस्लाम के उदय के समय पूरी दुनिया में इंसान को ख़रीद और बेचने का रिवाज आम था और चूंकि इसे एक बार में ख़त्म करना मुमकिन नहीं था, इस्लाम ने विभिन्न मार्गों से इसे धीरे-धीरे ख़त्म करने का मार्ग समतल किया अर्थात एक ओर गुलाम व दास के मार्ग को सीमित किया तो दूसरी ओर ग़ुलामों और दासों की रिहाई को बहुत से पापों का प्रायश्चित क़रार दिया ताकि उनकी आज़ादी का मार्ग समतल हो। इन सब बातों के साथ ही पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने मुसलमनों से अनुशंसा की दासों के साथ परिवार के सदस्यों की तरह मानवीय व्यवहार करें।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम (स) की परंपरा को बाक़ी रखने के लिए अपने ग़ुलाम (दासों) को संतान कहते थे और उन्हें: ऐ मेरे बेटे! के नाम से पुकारते थे।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम इस शैली से अन्य लोगों को दर्शाते थे उनके निकट आज़ाद मुसलमान और दास बराबर हैं। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम अपने दासों को कभी भी दंडित नहीं करते थे बल्कि उनकी ग़लतियों को लिखते और पवित्र रमज़ान के अंतिम दिन सभी को इकट्ठा करते और उनकी ग़लतियों को उन्हें बताते। उसके बाद आप दासों से कहते थे कि जिस तरह हमने तुम्हें माफ़ किया तुम भी ख़ुदा से हमारे लिए दुआ करो। साथ ही इमाम ग़ुलाम, दासों को एक आज़ाद जीवन के लिए ज़रूरी चीज़ें देते थे। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम दासों को एक साल रखने के दौरान उन्हें इस्लामी संस्कृति व व्यवहार की शिक्षा देते थे। उसके बाद जब उन्हें आज़ाद करते थे तो उनमें से हर एक प्रशिक्षित होता तथा दूसरों के लिए आदर्श बनता था। दास भी आज़ाद होने के बाद इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के साथ आध्यात्मिक संबंध जोड़े रखते और दूसरे लोगों का प्रशिक्षण करते थे। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम द्वारा आज़ाद हुए बहुत से लोग बड़े बड़े मोहद्दिस बने। मोहद्दिस पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके पवित्र परिजनों के कथन के वर्णनकर्ता को कहते हैं।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने जिन्हें इमाम सज्जाद भी कहते हैं, इस्लामी शिक्षाओं व ज्ञान की गुत्थियों, सामाजिक, प्रशैक्षिक तथा संवेदनशील राजनैतिक मामलों को दुआ के रूप में बयान किया है जिनमें से अधिकतर सहीफ़ए सज्जादिया नामक दुआ की किताब में मौजूद हैं। सहीफ़ए सज्जादिया को पढ़ने से पता चलता है कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ख़ुदा की याद में कितना लीन रहते थे। सहीफ़ए सज्जादिया की पहली दुआ में बयान हुआ हैः "सारी तारीफ़ (प्रशंसा) का पात्र ख़ुदा है। वह ऐसी हस्ती है जिसका न कोई आरंभ और न ही कोई अंत है। जिसे बंदे अपनी आंखों से देख नहीं सकते। तारीफ़ करने वाले उसकी प्रशंसा का हक़ अदा नहीं कर सकते। जीव-जन्तुओं को अपनी शक्ति से पैदा किया और उन्हें अपनी इच्छानुसार अस्तित्व दिया। प्रशंसा का पात्र है वह ख़ुदा जिसने ख़ुद को हमें पहचनवाया और आभार व्यक्त करने का तरीक़ा सिखाया। ज्ञान के द्वार को हमारे लिए खोला, हमे शुद्ध मन से एकेश्वरवाद, तौहीद के मार्ग पर चलना सिखाया तथा शक व अविश्वास से हमे सुरक्षित रखा।"
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की एक पुस्तिका भी मौजूद है जिसका शीर्षक है "अधिकारों की पुस्तिका"। इस पुस्तिका में उन्होंने पूरी सृष्टि से अर्थात ख़ुदा, अपने आप और दूसरे इंसानों के साथ संबंध के स्वरूप को बयान किया है। सबसे पहले इंसान पर ख़ुदा के अधिकार का वर्णन करते हुए कहा है कि इंसान को हर पल ख़ुदा के अधिकार का पालन करना ज़रूरी है। यह अधिकार बाक़ी सभी अधिकारों के लिए आधार के समान है। वह यह कि इंसान को सिर्फ़ अल्लाह की उपासना करनी चाहिए और किसी को भी उसका सहभागी क़रार न दे।
दूसरे चरण के अधिकार का संबंध ख़ुद इंसान के अपने आप से है जिसका उसे पालन करना चाहिए। अर्थात जिस तरह हर चीज़ यहां तक कि इंसान का वास्तविक मालिक ख़ुदा है, इंसान पर ज़रूरी है कि वह अपने शरीर के अंग व अपनी आत्मा को ख़ुदा की अमानत समझे और उसे ख़ुदा की आज्ञापालन व हलाल के मार्ग पर लगाएं तथा पाप से दूर रखे। मिसाल के तौर पर ज़बान का अधिकार यह है कि उससे बुरी बात न निकाले। ज़बान को अच्छी बातों के कहने पर बाध्य करे और उससे वे बातें न करें जिनमें उसका कोई फ़ायदा नहीं है।
तीसरे चरण में इमाम ने जिन अधिकारों का वर्णन किया है वह व्यक्ति के समाज के अन्य लोगों से संबंध के बारे में हैं। मिसाल के तौर पर इस चरण में पड़ोसी के अधिकार के बारे में इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैः "तुम्हारे पड़ोसी का अधिकार यह है कि उसके राज़ को छिपाओ, लोगों के सामने उसका सम्मान करो और अगर पीड़ित हो तो उसकी मदद करो। उसकी कमियों को मत ढूंढो। अगर उसने तुम्हारे साथ कोई बुराई की तो उसे छिपाओ। अगर समझते हो कि वह तुम्हारी नसीहत को मानेगा तो उसकी नसीहत करो इस तरह कि वह नसीहत तुम्हारे और उसके बीच में रहे। कठिनाइयों के दौर में उसे अकेला न छोड़ो। उसकी ग़लतियों को नज़रअंदाज़ करो। उसके पाप को क्षमा कर दो। उसके साथ बड़प्पन भरा व्यवहार करो।"
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैः ख़ुदा की याद में रहोगे तो दूरियां तुम्हारे लिए निकट और कठिनाइयां तुम्हारे लिए आसान हो जाएंगी। अल्लाह के निकट सबसे प्रिय वह है जिसका चरित्र अच्छा हो। जिसका व्यवहार अच्छा हो वह ख़ुदा के अधिक निकट है। जिसका हाथ अपने बच्चों और बीवी के लिए खुला होता है, ख़ुदा उससे अधिक ख़ुश रहता है और ख़ुदा के निकट सबसे सम्मानीय वह है जो सबसे ज़ियादा सदाचारी है।