हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अली ख़ामनेई ने इस मौक़े पर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अहम ख़ेताब किया जिसके कुछ अहम बिंदु पेश किए जा रहे हैं।
आज की दुनिया में दो मोर्चों के बीच मुक़ाबला है। एक मोर्चा इस्लामी व्यवस्था का है और दूसरा झूठ का मोर्चा है जिसने अपना नाम लिबरल डेमोक्रेसी रख रखा है जबकि वो लिबरल है न डेमोक्रेटिक।
आप अगर वाक़ई लिबरल और आज़ादी पसंद हैं तो भारत जैसे कई मिलियन की आबादी वाले मुल्क को सौ साल से ज़्यादा मुद्दत तक आपने अपना उपनिवेश कैसे बनाए रखा और उसकी दौलत लूट कर उसे एक ग़रीब देश में बदल दिया। यही लिबरलिज़्म है?
फ़्रांसीसियों ने अलजीरिया में सौ साल से ज़्यादा समय तक क्राइम किए और इंसानों को मौत के घाट उतारा। कुछ ही साल के भीतर शायद दसियों हज़ार लोग क़त्ल कर दिए गए। यह लिबरलिज़्म है?
लिबरल डेमोक्रेसी के झूठे दावेदारों को यह गवारा है कि #यूक्रेन जैसी एक मजबूर और बेसहारा क़ौम को आगे कर दें कि अमरीका की हथियार बनाने वाली कंपनियों की जेबें भरें। वह जंग करे, उसके लोग क़त्ल हों ताकि उनके हथियार बिकें और हथियार बनाने वाली कंपनियों की जेबें भरी जा सकें।
इस्लाम की शिक्षाओं को अपना आदर्श मानने के नाते इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था अलग अलग क़ौमों के शोषण उनके अलग अलग प्रकार के हितों की राह में रुकावट डाले जाने के ख़िलाफ़ है।