हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अली ख़ामनेई ने फरमाया:दुआ पूरी होने की शर्तों में एक यह है कि दुआ पूरे ध्यान के साथ की जाए, कभी सिर्फ़ ज़बान हिलाने की तरह कुछ जुमले जैसे “या अल्लाह मुझे बख़्श दे”, “या अल्लाह मेरे रिज़्क़ में बरकत दे”, या “या अल्लाह मेरे क़र्ज़ को अदा कर दे”, होठों पर जारी हो जाते हैं,
दस साल तक इंसान इस तरह दुआ करता रहता है और बिल्कुल पूरी नहीं होती, इसका कोई फ़ायदा नहीं है। दुआ के क़ुबूल होने की शर्तों में एक यह है जैसा कि (मासूम ने) फ़रमाया हैः “याद रखो!
जिसका दिल ग़ाफ़िल हो यानी जिसका ध्यान इस बात की ओर न हो कि वह क्या दुआ मांग रहा है या यह कि किससे बात कर रहा है, अल्लाह उसकी दुआ क़ुबूल नहीं करता। ज़ाहिर है वह दुआ जो इस तरह की ग़फ़लत और बिना ध्यान के की जाती है, क़ुबूल नहीं होती,
गिड़गिड़ाना चाहिए, पूरी गंभीरता के साथ (अल्लाह को सर्वशक्तिमान समझते हुए) उससे मांगना चाहिए, इलतेजा करना चाहिए, रोते हुए मांगिए और बार बार मांगते रहिए तो इस हालत में निश्चित तौर पर अल्लाह दुआओं को क़ुबूल फ़रमाएगा।