हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हिन्दुस्तान के सूबा उत्तर प्रदेश के ज़िला जौनपुर की मशहूर बस्ती बड़ागांव शाहगंज जो अपने जुलूसे अमारी की वजह से आलम ए अज़ा में मशहूर है इस क़दीम जुलूस अमारी की तारीखी मालूमात जानने के लिए छानबीन शुरू कि तो हमें एक तहरीर मौलाना सैय्यद अली हाशिम आब्दी साहब की मिली जिससे इस्तेफ़ादा करते हुए यह मज़मून आप तक पहुंचाने कि कोशिश की हैं।
मीर औलाद हुसैन साहब मरहूम ने पहली बार 8 रब्बीअव्वल 1322 हिजरी मुताबिक़ 23 मई 1904 को इस जुलूस की बुनियाद रखी
यह जुलूस बाद नमाज़ सुबह पंजा शरीफ से बरामद हो कर कदीम रास्तों से होता हुआ मगरिब के वक्त चाहार रौज़ा (रौज़ा-ए रसूल) पर पहुंच कर ख़त्म होता है ।
बानिय ए जुलूस मीर औलाद हुसैन साहब रोशनी के लिए लालटेन ले कर चलते और मीर मोहम्मद मुस्लिम साहब मरहूम नका़बत फ़रमाते थे सन 1942 तक इस जुलूस अमारी के एहतेमाम का शरफ़ मीर औलाद हुसैन साहब मरहूम और उनके बाद उनकी औलाद को हासिल होता था,
लेकिन 1942 में इमामिया मिशन बड़ागांव" कायम हुआ तो इस जुलूसे अमारी की ज़िम्मेदारी इसके हवाले कर दी गई ।
इमामिया मिशन बड़ागांव के पहले सदर मीर अहसन साहब मरहूम थे। जिन्होंने 1942 से 1947 तक इसकी ज़िम्मेदारी को निभाया
1947 मे जब मीर अहसन साहब मरहूम पाकिस्तान चले गये तो मीर इमरान रिज़वी "आसी" इमामिया मिशन बड़ागांव के दूसरे सदर चुने गए और नायब सदर मौलाना अली हाशिम आब्दी हुए मीर इमरान साहब मरहूम ओस्ताद शायर थे और उनका कहा हुआ अशआर आज भी पोस्टर व बैनर पे लिखा हुआ पाया जा रहा है
मीर इमरान साहब का ही वो तारीखी नौहा आज भी जुलूसे अमारी के एख्तेताम पर पढ़ा जाता है
अहले मदीना आबिदे बीमारी आते है
बे वारिसो के काफ़िला सालार आते है
हट जाओ पहले नाना के रौज़े पर जायेंगे
जब 1952 मे मीर इमरान हुसैन साहब पाकिस्तान चले गये तो जुलूस अमारी के बानी मीर इमदाद हुसैन साहब मरहूम के नवासे जनाब अब्बास हुसैनी साहब इमामिया मिशन बड़ागांव के तीसरे सदर चुने गये अब्बास हुसैनी साहब एक नेक व दीनदार इन्सान थे ओलमा व खोतबा का बहोत एहतेराम व उनकी मेज़बानी को अपने लिए शरफ़ समझते थे और यह भी हक़ीक़त है कि अब्बास हुसैनी साहब ने जुलूसे अमारी को काफ़ी फ़रोग दिया
चुकीं इमामिया मिशन बड़ागांव होकूमत मे रजिस्टर नहीं था और इस नाम का एक ऐदारा लखनऊ मे पहले से कायम हो गया था तो जनाब अब्बास हुसैनी साहब ने मिम्बरान की राय से इसका नाम (हुसैनी मिशन) रख दिया,
जब 1990 मे अब्बास हुसैनी साहब का इलाहाबाद मे इन्तेकाल हो गया तो उनके बड़े लड़के जनाब सैय्यद वसीम हैदर साहब (साबिक़ ग्राम प्रधान बड़ागांव ) हुसैनी मिशन के चौथे सदर चुने गये और अपनी ज़िम्मेदारी को निभाते रहे।
16 नवम्बर 2020 को वसीम हैदर साहब का इन्तेका़ल हो गया और यह ज़िम्मेदारी उनके बड़े लड़के सैय्यद ज़ीशान हैदर साहब ने ली और आज तक व मसरूफ़े ख़िदमत हैं।
जुलूस अमारी बड़ागांव हिन्दुस्तान का पहला जुलूस अमारी हैं।
जब इस जुलूस की शोहरत व मकबूलियत का दायरा बढ़ने लगा तो दूर दराज़ के मोमनीन शिरकत करने के लिए एक दिन पहले बड़ागांव पहूंचने लगे तो मीर औलाद हुसैन साहब मरहूम व मीर काज़िम हुसैन आब्दी साहब मरहूम ने आपस मे यह मशवेरा किया कि एक मजलिस शब मे पंजा शरीफ़ के नज़दीक हो ताकि बेरूनी मोमनीन इसमे शिरकत करे और शब मे वहां पर आराम फ़रमा कर सुबह जुलूस मे शिरकत करें तो मीर काज़िम हुसैन ने इस मजलिस की बुनियाद रखी जिसको उनके फरज़न्द मौलाना सैय्यद हाशिम आबिदी ने काफी फ़रोग दिया
बाद मे हकीम सैय्यद मोशर्रफ़ हुसैन साहब मरहूम ने शब्बेदारी का एहतेमाम किया जिसमे हज़रत इमाम हसन अस्करी अ:स के शबीह ताबूत की ज़ियारत कराई जाती है जो अलहम्दोलिल्लाह आज भी क़ायम है।