۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
سامره

हौज़ा/हज़रत इमाम हसन असकरी अ.स. द्वारा यह अहम काम विशेष कर उस दौर में किए गए जब आख़िरी इमाम अ.स. की ग़ैबत का समय शुरू होने वाला था, तभी इमाम अ.स. ने अपने चाहने वालों को पैग़ाम दिया कि उन से सीधे मुलाक़ात के बजाए उनके वकीलों से मुलाक़ात कर के अपने सवाल और अपनी ज़रूरतें इमाम अ.स. तक पहुंचाएं ताकि धीरे धीरे लोगों के दिमाग़ में वकालत की अहमियत रौशन हो जाए

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , हज़रत इमाम अली नक़ी अ.स. ने कुछ रिवायतों के हिसाब से 8 और कुछ रिवायतों के हिसाब से 10 रबीउस्सानी सन् 232 हिजरी को पैदा होने वाले अपने बेटे का नाम पैग़म्बर स.अ. के बड़े नवासे और जन्नत के सरदार इमाम हसन अ.स. के नाम पर हसन रखा और आपकी कुन्नित अबू मोहम्मद रखी।

इमाम हसन असकरी अ.स. ने 254 हिजरी में अपने वालिद की शहादत के बाद 22 साल की उम्र में इमामत की ज़िम्मेदारी को संभाला, आप ने 6 साल तक लोगों की हिदायत और घुटन के माहौल में उनका मार्गदर्शन करते रहे, और मोतमद की मक्कारी के चलते 8 रबीउस्सानी 265 सन् हिजरी में केवल 28 साल की उम्र में आपको शहीद कर दिया गया, आपकी क़ब्र इराक़ के सामरा नामी शहर में है।

इमाम हसन असकरी अ.स. ने अपने बा बरकत जीवन और इनती कम उम्र में हर तरह की कठिनाई, परेशानी, सख़्ती होने और अब्बासी हुकूमत की ओर से आप पर कड़ी निगरानी के बावजूद इस्लाम और उसकी तालीमात को उसकी असली सूरत में बाक़ी रखा।

आपकी इस्लाम की सेवा, इस्लाम विरोधी विचारों को कुचलने के प्रयास और उस घुटन के माहौल में आपकी गतिविधियां सरहानीय हैं, जिनमें से अहम गतिविधियों को हम यहां पर बयान कर रहे हैं।

इस्लाम और शरीयत की रक्षा करते हुए उस पर संदेह जताने वालों को जवाब देना और उनके लिए इस्लाम के सही विचारों को पेश करना।

अलग अलग जगहों पर रहने वाले अपने शियों से अलग अलग तरह से संबंध बनाए रखना और अपने वकीलों और कुछ विशेष लोगों द्वारा ज़रूरत के समय उन तक अपना संदेश पहुंचाना।

हर तरह की कड़ी निगरानी और हुकूमत की देख रेख के बावजूद सियासी मामलों पर नज़र बनाए रखना और समय और शियों का ज़रूरत को देखते हुए उन्हें ख़तरों और उस से बचने के तरीक़ों से आगाह करना।

अपने शियों की विशेष कर अपने सहाबियों की आर्थिक यौर दूसरी सहायता करना कठिन राजनीतिक परिस्तिथियों में शियों की मदद करना

इमामत के इंकार करने वालों को ग़ैब की मालूमात से फ़ायदा हासिल करते हुए मुंह तोड़ जवाब दे कर शियों में जोश पैदा करना और सबसे अहम, शियों को अपने बेटे की ग़ैबत के लिए मानसिक तौर से तैय्यार करना।

इमाम हसन असकरी अ.स. द्वारा यह अहम काम विशेष कर उस दौर में किए गए जब आख़िरी इमाम अ.स. की ग़ैबत का समय शुरू होने वाला था, तभी इमाम अ.स. ने अपने चाहने वालों को पैग़ाम दिया कि उन से सीधे मुलाक़ात के बजाए उनके वकीलों से मुलाक़ात कर के अपने सवाल और अपनी ज़रूरतें इमाम अ.स. तक पहुंचाएं ताकि धीरे धीरे लोगों के दिमाग़ में वकालत की अहमियत रौशन हो जाए।

ध्यान रहे तारीख़ गवाह है कि वह दौर ऐसा दौर था जिसमें वकीलों से खुलेआम मुलाक़ात भी आसान नहीं थी, क़दम क़दम पर हुकूमत के जासूस लगे हुए थे, इसीलिए इमाम अ.स. के वकील कभी तेल के कारोबार कभी किसी और तरीक़े से इमाम अ.स. के शियों से मिलते और उनकी बातों और ज़रूरतों को इमाम अ.स. तक पहुंचाते।

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