۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
स.ल.

हौज़ा/इमाम अली अ.स. का मरसिया ,या रसूलल्लाह बहुत जल्द आपकी बेटी आपको बताएगी कि इस उम्मत ने उनके साथ कैसा सुलूक किया, आप पूछिएगा ज़रूर, उनसे उनकी हालत के बारे में बार बार सवाल कीजिएगा

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,कुछ दर्द और ज़ख़्म ऐसे होते हैं जिनको महरम के सामने भी इंसान ज़ाहिर नहीं कर सकता लेकिन दुनिया का इकलौता रिश्ता पति पत्नी का होता है जिसमें किसी तरह का दर्द हो या ज़ख़्म लेकिन वह छिपता नहीं है, लेकिन अल्लाह रे हज़रत ज़हरा स.अ. का सब्र कि कैसे कैसे ज़ख़्म आपको दिए गए

लेकिन आपने अपने शौहर इमाम अली अ.स. के सामने भी ज़ाहिर नहीं किए, आप सभी को इमाम अली अ.स. की वह चीख़ तो याद होगी जब मदीने की उस दर्द भरी रात में जहां इतनी बड़ी मुसीबत यानी हज़रत ज़हरा स.अ. की शहादत जैसी क़यामत की रात में जब हर तरफ़ सन्नाटा फैला हुआ था क्योंकि शहज़ादी की वसीयत थी कि ऐ अली अ.स. बस इन कुछ लोगों के अलावा मेरे जनाज़े में किसी और को आने मत दीजिएगा

इसी लिए बच्चे भी घुट घुट कर रो रहे थे उस सन्नाटे भरी रात में अचानक एक चीख़ ने वहां मौजूद लोगों के कलेजे को हिला कर रख दिया और इमाम अली अ.स. की इस चीख़ के दर्द का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि ओहद की जंग में आपके बदन पर 15 से भी ज़्यादा ऐसे ज़ख़्म थे जिनमें फ़तीले डाल कर उनमें मरहम लगाया जाता था

लेकिन फिर भी इमाम अली अ.स. की चीख़ इस तरह किसी ने नहीं सुनी और जब आपसे उस रात की चीख़ के बारे में पूछा गया तो आपने आंसू भरी आंखों से जवाब दिया कि मेरी ज़हरा (स.अ.) की पसलियां टूटी हुई थीं लेकिन उनका सब्र किस मंज़िल पर था कि एक बार भी मुझे ज़हरा (स.अ.) ने बताया नहीं।

जैसाकि बुज़ुर्ग मराजे और उलमा का कहना है कि हज़रत ज़हरा स.अ. की शख़्सियत वह जिनके बारे में बोलने के लिए हमारा क़द छोटा है, आपके फ़ज़ाएल को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता, बिल्कुल उसी तरह आप पर ढ़ाई गई मुसीबतें भी ऐसी हैं जिनको शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।

इस लेख में शहज़ादी पर ढ़ाई गई मुसीबतों को ख़ुद इमाम अली अ.स. की ज़बानी पेश किया जा रहा है जिसको आपने एक ख़ुत्बे में बयान किया और उसे नहजुल बलाग़ा में भी पढ़ा जा सकता है।

आपका यह मरसिया वह है जो आपने हज़रत ज़हरा स.अ. को दफ़्न करते समय पैग़म्बर स.अ. से बातें करते हुए अपने दिल का हाल बयान किया।

रिवायत इस तरह शुरू होती है कि आप हज़रत ज़हरा स.अ. को दफ़्न करते हुए इस तरह मरसिया पढ़ रहे थे जैसे कि पैग़म्बर स.अ. से अपना दर्दे दिल बयान कर रहे हों, आप इस तरह मरसिया पढ़ते हैं.....

सलाम हो आप पर ऐ अल्लाह के रसूल, मेरी और आपकी उस बेटी की तरफ़ से आप पर सलाम हो जो आज आपके पहलू में पहुंच गई, और जल्द ही वह आपसे मुलाक़ात करेगी, ऐ अल्लाह के रसूल आपकी चहेती बेटी की जुदाई से मेरे सब्र का बांध टूट रहा हैंं।

और मेरा हौसला साथ छोड़ रहा है, लेकिन बस आपसे जुदाई के लम्हों को याद कर लेता हूं तो थोड़ा सब्र आ जाता है, क्योंकि मैंने ही आपको अपने हाथों से क़ब्र में दफ़्न किया था, और वह पल भी याद है जब आपका सिर मेरी आग़ोश ही में था और आपकी रूह आपके बदन से निकली थी,

बेशक हम अल्लाह के लिए हैं और उसी की बारगाह में पलट कर जाना है, ऐ अल्लाह के रसूल यह आपकी अमानत तो वापस हो गई लेकिन अब रात की तंहाई ही मेरी उस समय तक साथी है जब तक अल्लाह मुझे भी उस जगह पर बुला ले जहां आप हैं।

या रसूलल्लाह बहुत जल्द आपकी बेटी आपको बताएगी कि इस उम्मत ने उनके साथ कैसा सुलूक किया, आप पूछिएगा ज़रूर, उनसे उनकी हालत के बारे में बार बार सवाल कीजिएगा, (इमाम अली अ.स. का यह अंदाज़ इस बात को दर्शाता है कि हज़रत ज़हरा स.अ. से अगर कई बार नहीं पूछेंगे तो आप इतनी साबेरा हैं कि एक दो बार में नहीं बताएंगी)

या रसूलल्लाह अभी तो आपको गुज़रे हुए ज़्यादा समय भी नहीं हुआ और लोगों के दिलों से आपका नाम तक नहीं मिटा था और हम पर मुसीबतों के पहाड़ तोड़ दिए गए।

उसके बाद आप इसी तरह पैग़म्बर स.अ. से दिल का हाल बयान करते जाते हैं और फिर आख़िर में कहते हैं, ऐ रसूलल्लाह आप दोनों पर मेरा सलाम हो।

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