۹ تیر ۱۴۰۳ |۲۲ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jun 29, 2024
الرغائب

हौज़ा / रजब महीने की पहली शुक्रवार की रात को लैलातुर रग़ाइब (रग़बतो वाली रात) कहा जाता है।


हौज़ा न्यूज़ एजेंसी | रजब के महीने में शुक्रवार की पहली रात को लैलातुर रगाइब (रग़बतो वाली रात) कहा जाता है। इस रात के लिए पैगबर (स) से एक नमाज नकल हुई है जिसके फ़ज़ाइल अत्यधिक है जिसको सय्यद ने किताब इकबाल और अल्लामा मजलिसी ने इजाजा बनी जोहरा मे बयान किया है। उनमे से एक यह है कि इस नमाज की बरकत से पाप माफ हो जाएंगे और कब्र की पहली रात को यह नमाज सुंदर शरीर, मुस्कुराता हुआ चेहरा और स्पष्ट और मीठी जीभ के साथ आएंगी और खुशखबरी सुनाएंगी, हे मेरे प्रिय। क्या तुम जान सकते हो कि तुमने मुझे सभी कठिनाइयों से बचाया है। वह व्यक्ति पूछेगा, तुम कौन हो? भगवान की कसम , मैंने आपसे अधिक सुंदर और मधुर वाणी तथा सुगंध वाला कोई नहीं देखा। वह उत्तर देगी कि मैं तुम्हारी प्रार्थना नमाज़ और उसका प्रतिफल हूं जो तुमने उस रात और उस महीने और उस वर्ष में पढ़ी थी। आज मै तेरे हक अदा करने के लिए हाज़िर हूं और इस भयानक समय मे मेरी तेरा मदगार एंव सहायक कल जब कयामत मे सूर फ़ंका जाएगा। तो उस समय मैं तुम्हारे सिर पर साया करूंगी इसलिए खुश रहना और अच्छाई तुमसे कभी दूर नहीं होगी।

इस बा बरकत नमाज़ की तरकीब इस प्रकार है कि बारह रकअत दो-दो करके पढ़ें। हर रकअत में

1- सूरह हमद एक बार

2- इन्ना अंज़लना तीन बार

3- क़ुल हो वल्अलाहो अहद बारह बार

नमाज से फ़ारिग होने के बाद  अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिन नबीयिल उम्मी व अला आलेहि  सत्तर बार कहें:

फिर सज्रदे मे जाकर सुब्बूहुन कुद्दूसुन रब्बुल मलाएकते वर रूह सत्तर बार कहे

सज्दे से सर उठाकर रब्बिग फ़िर वर हम व तजावज़ अम्मा ताअलम इन्नका अन्तल अलीयुल आजम सत्तर बार कहे

दुबारा सज्दे मे  सुब्बूहुन कुद्दूसुन रब्बुल मलाएकते वर रूह सत्तर बार कहे

उसके बाद अपनी हाजत तलब करे इंशाल्लाह वह पूरी हो जायेगी।

यह याद रखना चाहिए कि रजब के महीने में इमाम अली रज़ा (अ) की ज़ियारत करना मुस्तहब है, क्योंकि इस महीने में उमरा करने का अधिक सवाब है और उमरा का सवाब हज के करीब है। एक रिवायत मे बयान हुआ है कि इमाम जैनुल आबेदीन (अ) रजब के महीने मे उमरा करते थे खाना ए खुदा मे नमाज पढ़ते थे।

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