हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने यह (शब्द) कलेमात हज़रत फ़ातिमा ज़हेरा स.अ.के दफ़्न के मौक़े पर हज़रत पैग़म्बरे इस्लाम स.ल.व. से राज़दाराना गुफ़्तगू के अन्दाज़ में बयान फ़रमाए थे।
सलाम हो आप पर ऐ ख़ुदा के हज़रत रसूल (स.ल.व.)
मेरी तरफ़ से और आप की उस दुख़्तर की तरफ़ से जो आप के जवार में नाज़िल हो रही है और बहुत जल्दी आप से मुलहक़ हो रही है!
या रसूलल्लाह! मेरी क़ुव्वते सब्र आप की मुन्तख़ब रोज़गार (बरगुज़ीदा) दुख़्तर के बारे में ख़त्म हुई जा रही है और मेरी हिम्मत साथ छोड़े दे रही है सिर्फ़ सहारा यह है कि मैंने आप के फ़िराक़ के अज़ीम सदमे और जानकुन हादसे पर सब्र कर लिया है तो अब भी सब्र करूंगा कि मैंने ही आपको क़ब्र में उतारा था और मेरे ही सीने पर सर रखकर आपने इन्तेक़ाल फ़रमाया था!
बहरहाल मैं अल्लाह ही के लिये हूँ और मुझे भी उसी की बारगाह में वापस जाना है!
आज अमानत वापस चली गई और जो चीज़ मेरी तहवील में थी वह मुझ से छुड़ा ली गई। अब मेरा रंज व ग़म दायमी है और मेरी रातें नज़रे बेदारी हैं!
जब तक मुझे भी परवरदिगार उस घर तक न पहुंचा दे जहाँ आप का क़याम है!
अनक़रीब आपकी दुख़्तरे नेक अख़्तर उन हालात की इत्तेला देगी कि किस तरह आप की उम्मत ने उस पर ज़ुल्म ढ़ाने के लिये इत्तेफ़ाक़ कर लिया था, आप उस से मुफ़स्सल सवाल फ़रमाएं और जुमला हालात दरयाफ़्त करें!
अफ़सोस कि यह सब उस वक़्त हुआ है जब आप का ज़माना गुज़रे देर नहीं हुई है और अभी आप का तज़किरा बाक़ी है। मेरा सलाम हो आप दोनों पर, उस शख़्स का सलाम जो रूख़सत करने वाला है और दिल तंग व रंजीदा है!
मैं अगर इस क़ब्र से वापस चला जाऊं तो यह किसी दिले तंगी का नतीजा नहीं है और अगर यहीं ठहर जाऊं तो यह उस वादे की बे एतबारी नहीं है जो परवरदिगार ने सब्र करने वालों से किया है।
(नहजुल बलाग़ाः ख़ुत्बा 202)