हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने सोमवार 5 फ़रवरी की सुबह एयर फ़ोर्स और सेना के एयर डिफ़ेन्स विभाग के कुछ कमांडरों से मुलाक़ात में अमरीका की ओर से ज़ायोनी शासन को सपोर्ट से ग़ज़्ज़ा में मानवता को शर्मसार करने वाले ज़ुल्म की ओर इशारा करते हुए, ज़ायोनी शासन पर निर्णायक वार किए जाने पर बल दिया।
8 फ़रवरी सन 1979 के पूर्व शाही एयर फ़ोर्स के विशेष दस्ते 'हुमाफ़रान' की ओर से इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह की बैअत (आज्ञापालन) किए जाने को, क्रांति को रफ़्तार देने वाला तत्व बताया और इसमें अहम लोगों के रोल की व्याख्या करते हुए कहा कि क्रांति के लक्ष्य को व्यवहारिक बनाने के लिए ज़रूरी रफ़्तार पैदा करने में एलीट वर्ग पर भारी ज़िम्मेदारी है।
उन्होंने एलीट वर्ग को समाज के बड़े कामों को रफ़्तार देने वाला वास्तविक तत्व बताया और कहा कि एलीट से तात्पर्य वे लोग हैं जो राष्ट्र के हर वर्ग में सोच विचार, समझ और सही काम का चयन करने की ताक़त के साथ काम करते हैं और अपने आस पास के माहौल के प्रभाव में आए बिना, पूरी बहादुरी के साथ सही समय पर अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करते हैं।
उन्होंने अत्याचार और अत्याचारी से मुक़ाबले, दुनिया भर के मुंहज़ोर लोगों के मुक़ाबले में डट जाने, जनता की दुनिया और देश के भविष्य पर ध्यान और साथ ही अध्यात्म पर पूरी तरह ध्यान जैसे इस्लामी क्रांति के भीतरी आकर्षक मामलों को नई नई कामयाबियों का कारक बताया और कहा कि इन आकर्षक मामलों के बावजूद इस्लामी क्रांति और देश को रफ़्तार देने वाले तत्वों की ज़रूरत है ताकि बड़े बड़े कामों में हमारी रफ़्तार धीमी न पड़ने पाए।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने कहा कि जो भी यूनिवर्सिटी वालों, स्टूडेंट्स, राजनेताओं, धर्मगुरुओं, व्यापारियों, मीडिया वालों और किसी भी दूसरे वर्ग के बीच मामलों की समझ और दोस्त तथा दुश्मन के मोर्चे की पहचान के साथ काम करता है, वो एलिट में शामिल है।
उन्होंने इस बात पर बल देते हुए कि दुश्मन के मोर्चे ने एलिट के लिए ख़ास योजना बना रखी है, कहा कि दुश्मन का लक्ष्य यह है कि एलिट संदेह में फंस कर और सांसारिक मोहमाया में गिरफ़्तार होकर ज़रूरी व संवेदनशील मौक़ों पर, ज़रूरी काम न करें और रफ़्तार देने का अपना किरदार अदा न कर सकें।
उन्होंने इस साज़िश के मुक़ाबले में सत्य को बयान करने के जेहाद और दुश्मनों की ओर से शक व संदेह पैदा किए जाने की कोशिश को नाकाम बनाना, एलिट की ज़िम्मेदारी बताया।
इस्लामी इन्क़ेलाब के नेता ने कहा कि एलिट की ज़िम्मेदारी हक़ीक़त को साफ़ साफ़ बयान करना और दो अर्थ वाली बातों से परहेज़ करना है। उन्होंने कहा कि आज धर्मगुरुओं, विद्वानों, राजनेताओं और मीडिया वालों सहित इस्लामी जगत के एलिट के लिए अपना किरदार अदा करने का गंभीर मैदान, ग़ज़्ज़ा का विषय है।
उन्होंने अमरीका की ओर से ज़ायोनी शासन को सपोर्ट को, ग़ज़्ज़ा में होने वाले मानवता को शर्मसार करने वाले ज़ुल्म की ओर इशारा करते हुए, ज़ायोनी शासन पर निर्णायक वार किए जाने के लिए मुस्लिम राष्ट्र के अंदर अपनी सरकारों से जनता के स्तर की मांग पैदा करने को अहम हस्तियों और एलिट क्लास की अहम ज़िम्मेदारी बताया और कहा निर्णायक वार का मतलब ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ़ जंग में शामिल हो जाना नहीं है बल्कि इसका मतलब ज़ायोनी शासन से आर्थिक संबंध ख़त्म कर लेना है।
इस्लामी क्रांति के नेता ने इस बात पर बल देते हुए कि राष्ट्रों में, सरकारों को सही लाइन पर लाने और उन्हें ज़ायोनी शासन को सपोर्ट ख़त्म करने पर मजबूर करने की क्षमता पायी जाती है, कहा कि यद्यपि ये ज़ालिम व ख़ूंख़ार सरकार औरतों, बच्चों और बीमारों पर हमले कर रही और उसने हज़ारों लोगों को क़त्ल कर दिया है लेकिन इसके बावजूद कुछ इस्लामी देश न सिर्फ़ यह कि उसकी आर्थिक मदद कर रहे हैं बल्कि यहां तक सुनने में आया है कि वो ज़ायोनी सेना को हथियार भी दे रहे हैं।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अपनी स्पीच के एक दूसरे भाग में एयर फ़ोर्स के कर्मचारियों की ओर से 5 फ़रवरी 1979 को इमाम ख़ुमैनी की बैअत (आज्ञापालन) की आश्चर्यजनक घटना को कभी भी ख़त्म न होने वाला पाठ बताया और कहा कि एयरफ़ोर्स के कर्मचारी अपनी जान की परवाह न करते हुए इस पवित्र व बहादुरी से भरे काम के साथ, क्रांति से जुड़ने में सबसे आगे हो गए और 22 बहमन मुताबिक 11 फ़रवरी को इस्लामी क्रांति की कामयाबी में उन्होंने रफ़्तार देने वाले बहुत ही अहम तत्व का किरदार अदा किया।
उन्होंने उदंड और तानाशाही के दौर की एयरफ़ोर्स को कमान, नीति और हथियारों के लेहाज़ से पूरी तरह अमरीकियों के कंट्रोल में और उनके आदेश के अधीन बताया और कहा कि मोमिन व इन्क़ेलाबी कर्मचारियों ने आत्मनिर्भरता के जेहाद से एयरफ़ोर्स को अमरीका के चंगुल से बाहर निकाला और उसे पूरी तरह एक ईरानी फ़ोर्स में बदल दिया।
इस्लामी इन्क़ेलाब के नेता ने 22 बहमन (11 फ़रवरी) और इस्लामी इन्क़ेलाब की कामयाबी की सालगिरह के क़रीब आने की ओर इशारा करते हुए कहा कि जिस तरह पिछले 45 बरसों में जनता बिना गैपके मुल्क के सभी शहरों और ग्रामीण इलाक़ों में सड़कों पर आई और नारे लगाकर उन्होंने अपनी क्रांति की रक्षा की है और इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह का अनुसरण और उनके आज्ञापालन का एलान किया है, उसी तरह इस साल भी प्रिय जनता 22 बहमन की रैलियों में, जो राष्ट्रीय शक्ति की एक निशानी है, भरपूर तरीक़े से शिरकत करेंगे।