۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
रहबर

हौज़ा/हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने मंगलवार 17 अक्तूबर की सुबह जीनियस व प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों से मुलाक़ात में, वैज्ञानिक सेंटरों और यूनिवर्सिटियों में इनोवेशन पर आधारित सरगर्मियों के नए चरण में दाख़िल होने के लिए एक नई वैज्ञानिक छलांग लगाने पर बल दिया हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने मंगलवार 17 अक्तूबर की सुबह जीनियस व प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों से मुलाक़ात में, वैज्ञानिक सेंटरों और यूनिवर्सिटियों में इनोवेशन पर आधारित सरगर्मियों के नए चरण में दाख़िल होने के लिए एक नई वैज्ञानिक छलांग लगाने पर बल दिया हैं।

उन्होंने इसी तरह ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनी सरकार के हाथों फ़िलिस्तीनी अवाम के क़त्ले आम के जुर्म की ओर इशारा करते हुए बमबारी के फ़ौरन रुकने का मुतालेबा किया और ज़ायोनियों के ऐक्शन प्लान में अमरीकियों का हाथ साफ़ तौर पर नज़र आने की बात कही। उन्होंने कहा कि मुसलमान क़ौमें यहाँ तक कि दुनिया की ग़ैर मुसलमान क़ौमें भी क़ाबिज़ ज़ायोनी सरकार के अपराध जारी रहने पर बहुत ज़्यादा क्रोध में हैं और अगर यह दरिंदगी जारी रही तो दुनिया भर के मुसलमानों और प्रतिरोध फ़ोर्सेज़ का सब्र ख़त्म हो जाएगा और फिर कोई भी उन्हें रोक नहीं पाएगा।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने फ़िलिस्तीन में जारी वाक़यात को, ज़ायोनी सरकार का खुल्लम खुल्ला जुर्म और पूरी दुनिया की नज़रों के सामने खुला नस्ली सफ़ाया बताया और कहा कि हमारे अधिकारियों से बातचीत में कुछ मुल्कों के अधिकारियों का एतेराज़ यह था कि क्यों फ़िलिस्तीनियों ने ग़ैर फ़ौजियों को क़त्ल किया है? यह बात हक़ीक़त के बरख़िलाफ़ है क्योंकि ज़ायोनी कालोनियों में रहने वाले सभी, ग़ैर फ़ौजी नहीं हैं बल्कि हथियारों से लैस हैं लेकिन अगर ये मान भी लिया जाए कि वो ग़ैर फ़ौजी हैं तो उनमें कितने लोग मारे गए हैं? और इन दिनों कितने फ़िलिस्तीनी आम शहरी शहीद हुए हैं?

उन्होंने कहा कि क़ाबिज़ ज़ायोनी सरकार ने उनसे 100 गुना ज़्यादा यानी कई हज़ार फ़िलिस्तीनी औरतों, बच्चों, बूढ़ों और जवानों को, जो आम नागरिक थे क़त्ल किया है।  वह भीड़भाड़ वाले इलाक़ों पर बमबारी करके और उन इमारतों को निशाना बनाकर जिनके बारे में वो जानती है कि वहाँ आम नागरिकों के घर हैं, पूरी दुनिया के लोगों की नज़रों के सामने भयानक जुर्म कर रही है। उन्होंने इस बात पर बल देते हुए कि इन अपराधों की वजह से क़ाबिज़ ज़ायोनी सरकार पर मुक़दमा चलाया जाना चाहिए, अमरीकी सरकार को क़ाबिज़ सरकार की नीतियों के लिए ज़िम्मेदार ठहराया और कहा कि अनेक सूचनाओं से पता चलता है कि ज़ायोनी सरकार की आज कल की नीतियों को तैयार करने वाले अमरीकी हैं और अमरीका इस मामले में ज़िम्मेदार है और उसे अपनी ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने कहा कि कि ग़ज़्ज़ा पर बमबारी तुरंत बंद होनी चाहिए, इस्लामी मुल्कों में मुसलमान क़ौमों यहाँ तक कि अमरीका और यूरोप में ग़ैर मुसलमानों के प्रदर्शन, ज़ायोनी सरकार के अपराध पर क़ौमों के भारी क्रोध की निशानियां हैं।

उन्होंने कहा कि अगर ये जुर्म जारी रहे तो मुसलमानों और प्रतिरोध फ़ोर्सेज़ का धैर्य टूट जाएगा और फिर कोई भी उन्हें रोक नहीं पाएगा। इस सच्चाई को समझें और यह उम्मीद न रखें कि कोई फ़ुलां गिरोह को फ़ुलां काम न करने से रोके।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने इसी के साथ कहा कि अलबत्ता ज़ायोनी सरकार चाहे जो कर ले, इस घटना में उसे जो अपमानजनक शिकस्त उठानी पड़ी है, उसकी भरपाई वह हरगिज़ नहीं कर पाएगी।

उन्होंने ज़ुल्म के मुक़ाबले में मज़लूम को पहचानने और उसका साथ देने के लिए धर्मगुरुओं और विद्वानों की ज़िम्मेदारी के बारे में अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम के कथन का हवाला देते हुए कहा कि ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनी सरकार के जुर्म पर रिएक्शन उन ज़िम्मेदारियों में शामिल है जो अल्लाह ने धर्मगुरुओं के कांधों पर रखी हैं।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने क़रीब दो दशकों पहले यूनिवर्सिटियों में एक नए वैज्ञानिक अभियान और नतीजा देने वाली सरगर्मियों का आग़ाज़ होने की ओर इशारा करते हुए कहा कि मुल्क की इल्मी व वैज्ञानिक तरक़्क़ी की रफ़्तार में इज़ाफ़ा और उसका दुनिया की अवसत रफ़्तार से 12 गुना ज़्यादा होना इस अभियान के मुबारक नतीजों में से एक था और अब जीनियस लोगों, स्टूडेंट्स और वैज्ञानिक व इल्मी सेंटरों को इनोवेशन पर आधारित सरगर्मियों के नए चरण में दाख़िल होने के लिए, कमर कस लेनी चाहिए।

उन्होंने ईरान की वैज्ञानिक तरक़्क़ी देखने के बाद क्षेत्र के कुछ मुल्कों में इल्मी व वैज्ञानिक सरगर्मियां शुरू होने की ओर इशारा करते हुए कहा कि हमें पिछले अभियान के नतीजे पर संतुष्ट नहीं होना चाहिए और दुनिया में जारी वैज्ञानिक व इल्मी प्रतियोगिता में पीछे नहीं रह जाना चाहिए क्योंकि इतनी सब तरक़्क़ियों के बावजूद हम इल्म व साइंस की नज़र से अब भी पीछे हैं।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इल्म की ताक़त के बारे में अमीरुल मोमेनीन के उस क़ौल का हवाला दिया जिसमें उन्होंने इल्म को ताक़त कहा है। इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि अगर हम अपने मुल्क को दुनिया में प्रचलित नुक़सान से बचाना चाहते हैं तो हमें इल्म व साइंस के मैदान में तरक़्क़ी के लिए गंभीरता से कोशिश करनी होगी। उन्होंने मुल्क के भविष्य को रौशन व आशाजनक बताया लेकिन इसी के साथ कहा कि तजुर्बा हमें यह बताता है कि मौजूदा मौक़े से ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा उठाना चाहिए और मुल्क के इरादे, सलाहियत, मूलभूत ढांचे की मदद से सामने मौजूद कठिन रास्तों को पूरी ताक़त से तय करना चाहिए।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इरादे के अभाव, मायूसी और अपनी सलाहियतों पर भरोसा न होने को किसी भी क़ौम की तरक़्क़ी की राह में मौजूद अहम रुकावटों में बताया और मिट्टी के लोटे की टोटी तक बनाने में ईरानी क़ौम की असमर्थता के बारे में दुष्ट शाही शासन के दौर के एक प्रधान मंत्री के अपमानजनक बयान की ओर इशारा करते हुए कहा कि दुष्ट शाही शासन के दौर में, पिछड़ापन जारी रहने के सभी कारण इकट्ठा हो गए थे लेकिन आज अल्लाह की कृपा से मुल्क में वैज्ञानकि तरक़्क़ी का इरादा और सलाहियत दौनों मौजूद हैं।

उन्होंने नॉलेज बेस्ड कंपनियों को मुल्क की आर्थिक व वैज्ञानिक तरक़्क़ी व रौनक़ की वजह बतायी और इसी के साथ इसे प्रतिष्ठित वैज्ञानिक सलाहियत वालों व जीनियस लोगों में उनके फ़ायदेमंद होने का एहसास पैदा होने का भी सबब बताया और कहा कि नॉलेज बेस्ड कंपनियों को सपोर्ट कीजिए और उन्हें सपोर्ट करने व मज़बूत बनाने का एक रास्ता, सरकारी दफ़तरों और कंपनियों की ओर से ऐसी विदेशी चीज़ों के आयात को पूरी तरह रोकना है जो चीज़ें मुल्क की नॉलेज बेस्ड कंपनियां तैयार कर रही हैं।

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