۳۱ اردیبهشت ۱۴۰۳ |۱۲ ذیقعدهٔ ۱۴۴۵ | May 20, 2024
रहबर

हौज़ा /हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली खामेनेई ने बुधवार को सुबह ईदे सईदे फ़ित्र के ख़ुत्बे में दमिश्क़ में ईरान के काउंसलेट पर ज़ायोनी शासन के हमले का उल्लेख करते हुए कहा है कि दुनिया में यह बात मानी जा चुकी है कि किसी भी देश के दूतावास या उसके काउन्सलेट पर हमला, उस देश की धरती के अर्थ में समझा जाता है। सिर से लेकर पैर तक अपराधों में डूबे हुए अवैध ज़ायोनी शासन को इस काम के लिए दंडित किया जाना चाहिए और ऐसा होगा।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली खामेनेई ने बुधवार को सुबह ईदे सईदे फ़ित्र के ख़ुत्बे में दमिश्क़ में ईरान के काउंसलेट पर ज़ायोनी शासन के हमले का उल्लेख करते हुए कहा है कि दुनिया में यह बात मानी जा चुकी है कि किसी भी देश के दूतावास या उसके काउन्सलेट पर हमला, उस देश की धरती के अर्थ में समझा जाता है।

सिर से लेकर पैर तक अपराधों में डूबे हुए अवैध ज़ायोनी शासन को इस काम के लिए दंडित किया जाना चाहिए और ऐसा होगा।

उन्होंने कहा कि ईरानी राष्ट्र, शहीद ज़ाहेदी, शहीद रहीमी और उनके साथियों की शहादत से दुखी है।  इसी के साथ उन्होंने यह भी कहा कि यह लोग वर्षों से प्रतिरोध करते हुए शहादत की तलाश में थे।  ईश्वर ने उनकी मेहनत का बदला उनको दे दिया और उनको सफल कर दिया।

ईद के ख़ुत्बे में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने ग़ज़्ज़ा की रक्ति रंजित घटनाओं को रमज़ान के पवित्र महीने में मुसलमान राष्ट्रों के लिए दुख का कारण बताया। 

आपने रमज़ान के पवित्र महीने में ज़ायोनियों के अपराधों के जारी रहने की ओर संकेत करते हुए कहा कि प्रतिरोध के मुक़ाबले में विफल रहने की स्थति में इस क्रूर शासन ने बच्चों को उनकी माओं की गोद में और बीमारों को अस्पतालों में बहुत ही निर्दयी ढंग से विश्ववासियों के सामने शहीद करना शुरू कर दिया।

सर्वोच्च नेता ने पश्चिमी सरकारों विशेषकर अमरीका और ब्रिटेन की ओर से ज़ायोनियों के सैनिक, कूटनीतिक और आर्थिक समर्थन की निंदा करते हुए कहा कि इन सरकारों ने ग़ज़्ज़ा त्रासदी के दौरान पश्चिमी सभ्यता के दुष्ट स्वभाव को पूरी दुनिया के सामने खोलकर रख दिया। 

हालांकि हमने और पश्चिमी सभ्यता के आलोचकों ने तो पहले ही कह दिया था कि इस सभ्यता की वास्तविकता, मानवीय मूल्यों के साथ दुश्मनी पर आधारित है।  ग़ज़्ज़ा की पिछले छह महीनों की घटनाओं के संबन्ध में अवैध ज़ायोनी शासन की समर्थक सरकारों के क्रियाकलापों ने इस वास्तविका को पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने पश्चिम के मानवाधिकारों के समर्थकों के दावों पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्या ग़ज़्ज़ा में शहीद होने वाले तीस हज़ार से अधिक शहीद फ़िलिस्तीनी, इंसान नहीं हैं? क्यों अब पश्चिम से आवाज़ नहीं उठ रही है?

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