हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,किरमान प्रांत और ख़ूज़िस्तान प्रांत से भारी संख्या में लोगों ने तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई से मुलाक़ात की,
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने ईरान के ख़ुज़िस्तान और किरमान प्रांतों के लोगों के साथ मुलाक़ात में पहली मार्च 2024 को होने वाले चुनाव को बहुत ही मत्वपूर्ण, निर्णायक, समस्याओं का समाधान करने वाले और परिवर्तन की भूमिका बताया।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इस्लामी गणतंत्र के भीतर चुनाव के महत्व को समझाते हुए कहा कि लोकतंत्र और व्यवस्था का इस्लामी होना दोनो ही चुनाव से संबन्धित हैं। इसका कारण यह है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था का गठन अर्थात देश में जनता की इच्छा का राज, बिना चुनाव के संभव ही नहीं है।
वरिष्ठ नेता के अनुसार चुनाव न होने के कारण तानाशाही या फिर अशांति, असुरक्षा और अराजकता जन्म लेती है। उन्होंने उन लोगों की आलोचना की जो विभिन्न रास्तों से लोगों को चुनाव में भाग न लेने के लिए प्रेरित करते हैं। वरिष्ठ नेता ने इस बारे में कहा कि केवल चुनाव ही वह सही और वास्तविक रास्ता है जो लोगों की राष्ट्रीय संप्रभुता को सुनिश्चित करता है।
अपने संबोधन के दूसरे भाग में ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने ग़ज़्ज़ा के संबन्ध में बात की। उन्होंने कहा कि यह घटना दो आयामों से अद्वितीय है। एक तो यह कि जिस प्रकार से ग़ज़्ज़ा में क्रूरता, हिंसा, रक्तपात, बच्चों की हत्याएं, अस्पतालों और लोगों पर बमों को गिराए जाने जैसी घटनाओं को नहीं देखा गया।
दूसरी ओर फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधकर्ताओं की ओर से शत्रु के मुक़ाबले में कड़ा प्रतिरोध, धैर्य और संघर्ष भी अद्वितीय है। सर्वोच्च नेता ने कहा कि ग़ज़्ज़ा वासियों के लिए हालांकि खाने, पानी, ईंधन और बिजली जैसी चीज़ों की कमी के बावजूद वे पहाड़ की भांति डटे रहे।
ग़ज़्ज़ा वासियों का यही कड़ा प्रतिरोध उनको विजयी बनाता है क्योंकि ईश्वर धैर्य करने वालों के साथ है। वैसे विजय की निशानियां अब दिखाई देने लगी हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने ज़ायोनियों के पास बेहिसाब हथियारों और सैन्य उपकरणों की मौजूदगी के बावजूद उनकी अक्षमता को एक अन्य आयाम से अद्वितीय बताया।
उन्होंने कहा कि इस घटना में अवैध ज़ायोनी शासन की पराजय, अमरीका की भी पराजय है। आज के समय में दुनिया में कोई भी इस्राईल, अमरीका और ब्रिटेन के बीच कोई अंतर नहीं समझता। सबको पता है कि यह सबएक ही हैं।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने ग़ज़्ज़ा में संघर्ष विराम के लिए सुरक्षा परिषद के कुछ प्रस्तावों के वीटो किये जाने को अमरीका की बेशर्म हरकत बताया। उन्होंने कहा कि प्रतिरोध की सहायता करना सबका कर्तव्य है जबकि ज़ायोनियों की सहायता करना अपराध और विश्वासघात है।
सर्वोच्च नेता तेल, ईंधन और वस्तुओं के ज़ायोनी शासन तक पहुंचने में बाधा को सारे इस्लामी देशों का कर्तव्य बताते हुए कहते हैं कि आज विश्व की अन्तर्रात्मा को ठेस पहुंची है। अमरीका और यूरोप में लोग सड़कों पर निकल रह हैं।
बहुत से राजनेता, यूनिवर्सिटियों के प्रमुख और विद्वान सब ही अपनी सरकारों द्वारा ज़ायोनी शासन के समर्थन का विरोध कर रहे हैं। इसके बावजूद कुछ सरकारें अब भी इस क्रूर शासन की सहायता को जारी रखे हुए हैं।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने बल देकर कहा कि जीत सच के मोर्चे की होगी। अवैध ज़ायोनी शासन का विनाश होगा। मैं आशा करता हूं कि युवा पीढ़ी, इसको अपनी आंखों से देखेंगे।