۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
مکارم اخلاق

हौज़ा/इस संसार के अन्त में लौटने का कोई मार्ग नहीं है ठीक उसी प्रकार जैसे अविकसित व विकरित बच्चा विकास करने एवं विकार दूर करने के लिये पुनः माता के पेट में नहीं जा सकता तथा पेड़ से टूटा हुआ फल दोबारा पेड़ में नहीं लग सकता।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इस संसार के अन्त में लौटने का कोई मार्ग नहीं है ठीक उसी प्रकार जैसे अविकसित व विकरित बच्चा विकास करने एवं विकार दूर करने के लिये पुनः माता के पेट में नहीं जा सकता तथा पेड़ से टूटा हुआ फल दोबारा पेड़ में नहीं लग सकता।

यह एक प्रकार से हमारे लिये चेतावनी है कि हम जान लें कि सम्भव है कि एक पल में सब कुछ समाप्त हो जाये, तौबा व प्रायश्चित के मार्ग बन्द हो जायें, भले कर्मों का कोई अवसर न बचे और हम लालसा और हसरत के साथ इस संसार से चले जायें। अतः रमज़ान के पवित्र समय को हमें अपने नैतिक विकास का महत्वपूर्ण अवसर समझना चाहिये।

हज़रत अली (अ) का कथन है कि पापी विचारों से दूरी मन का रोज़ा है जो पेट के रोज़े अर्थात भूख-प्यास सहन करने से बढ़ कर होता है।

अब आइये पैगम्बरे इस्लाम(स) के पौत्र इमाम सज्जाद(अ) की दुआ मकारेमुल अखलाक़ अर्थात शिष्टाचार व नैतिकता के चरण का एक भाग सुनते हैः हे ईश्वर मेरे प्रति पापियों एवं अत्याचारियों की ईष्या को प्रेम व मित्रता में परिवर्तित कर दे।

ईष्या किसी के पास से उस अनुकंपा के समाप्त हो जाने की आरज़ू को कहते हैं जिसे वह अनुकंपा प्राप्त होनी ही चाहिये। जो लोग ईश्वर एवं इस्लामी शिक्षाओं पर पूर्ण विश्वास रखते हैं वे कभी दूसरों के पास से अनुकंपाओं के समाप्त होजाने की कामना नहीं करते बल्कि ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि स्वयं उनको भी वह अनुकंपा प्राप्त हो जाये।

परन्तु पाखंण्डी एवं बिना ईमान वाले लोग ईर्ष्या करते हैं और चाहते हैं कि दूसरों के पास कोई अच्छी वस्तु या गुण न रहे। पैगम्बरे इस्लाम(स) के एक अन्य पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़(अ) का कहना है कि ईमान वाला व्यक्ति ईर्ष्या नहीं करता बल्कि इच्छा करता है कि ईश्वर उसे भी वैसी ही अनुकंपा प्रदान करदे जबकि पाखंण्डी ईर्ष्या करता है और अनुकंपा के अन्त की इच्छा करता है।

इस आधार पर दूसरों को प्राप्त अनुकंपाओं से ईर्ष्या का कारण अधिकतर धन या पद होता है परन्तु इमाम सज्जाद(अ) के पास न तो धन था कि ईर्ष्यालु लोग ईर्ष्या करते न ही शासन व सरकार में उन्हें कोई पद प्राप्त था कि जलने वाले उससे जलते, इस लिये उनसे शत्रुओं की ईर्ष्य़ा का कारण उनकी उत्तम क्षमतायें, महान गुण, अद्वतीय आध्यात्मिक स्थान एवं ईश्वर पर उनका दृढ़ विश्वास था।

इमाम की दृष्टि में मनुष्य के लिये सर्वश्रेष्ठ मूल्य अपने पालनहार से उसका विशुद्ध संपर्क है और इमाम के पास यह अनुकंपा मौजूद थी और इसी लिये वे किसी भी भौतिक व सांसारिक वस्तु की परवा नहीं करते थे। इस्लाम में यही वास्तविक वैराग है।

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