अल्लामा इब्ने हसन जार्चवी चार मुहर्रम सन तेरह सौ बाईस हिजरी में पैदा हुए । आप के वालिद “सय्यद महदी हसन रिज़वी” थे । मौसूफ़ की उम्र पाँच साल थी के शफ़’क़ते पिदरी से मेहरूम हो गए और अपने नाना के ज़ेरे साया पर्वरिश पाई ।
सरज़मीने जारचा ज़िला नोएडा पर क़दीम ज़माने से ओलमाए किराम का वुजूद रहा है जिस में से अल्लामा इबने हसन रिज़वी , अल्लामा हाफिज़ क़ारी जाफ़र अली रिज़वी और शमसुल ओलमा अल्लामा हाफिज़ क़ारी अब्बास हुसैन रिज़वी के असमाए गिरामी सरे फ़ेहरिस्त हैं ।
अल्लामा जार्चवी चौधवीं सदी के आला मुदर्रेसीनो मुफ़क्केरीने बर्रे सगीर में शुमार किए जाते थे । तफ़सील के लिए मुराजेआ कीजिए: नुजूमुल हिदाया, जिल्द एक सफ़हा अठठावन ।
अल्लामा ने अपने तालीमी सफ़र में मुख़्तलिफ़ दर्सगाहों से मुता’अद्दिद असनाद हासिल कीं जो कुछ इस तरीक़े से हैं: फ़ेज़े आम इंटर कॉलेज मेरठ से हाइ स्कूल और इंटर किया, इस्लामिया कॉलेज लाहौर से एफ़ ए , बी ए , एम ए, और एम ए औ एल की डिग्रियाँ लीं, ओरिएंटेल कॉलेज रामपुर से मौलवी फ़ाज़िल और मुंशी फ़ाज़िल की असनाद दर्याफ़्त कीं और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवेर्सिटी से बी टी सी की सनद हासिल की ।
मौसूफ़ एक बा सलाहियत आलिमे बा अमल होने के साथ साथ अपने ज़माने के एक नायाब मश’हूरे ज़माना ख़तीब थे ।
आप ने सन उन्नीस सौ बीस ईस्वी से उन्नीस सौ तीस ईस्वी तक सिंध, पंजाब और देहली में अपनी हैजान आवर तक़ारीर के ज़रिए फ़लक बोस शोहरत हासिल कर ली थी । तफ़सील के लिए मुराजेआ कीजिए: अनवारे फ़लक, जिल्द एक सफ़हा चौदह ।
मौसूफ़ सिंध में इमामे जमाअत के फ़राएज़ भी अंजाम देते थे । आप के अंदर ख़िदमते क़ौम का जज़्बा कूट कूट कर भरा हुआ था इसी सबब तेहरीके जन्नतुल बक़ी का आग़ाज़ किया । सिंधी ज़बान में एक रिसाला भी शाए किया और ऑल इंडिया कोंफिरेंस की कामयाबी का सेहरा भी आप ही के सर रहा । अल्लामा की एक मारूफ़ सरगर्मी यह रही के मजालिसो महाफ़िल को इमामबारगाहों से निकाल कर मैदानों में ले आए जिस के सबब पब्लिक गार्डन में मजालिस बर्पा होने लगीं और दस हज़ार का मजमा शिरकत करने लगा । जब मुलतान में आले सऊद के ख़िलाफ़ आवाज़े एहतेजाज बुलंद की तौ चालीस हज़ार का मजमा नज़र आया । मुम्बई, लखनऊ, देहली और दीगर बड़े बड़े शहरों की जानिब ज़ाकरी का सफ़र भी दीदा ज़ैब है ।
सन उन्नीस सौ इकत्तीस से सन उन्नीस सौ अड़तीस तक जामिया मिल्लिया इस्लामिया देहली में प्रोफ़ेसर के उनवान से पहचाने जाते रहे और सन उन्नीस सौ अड़तालीस ईस्वी से सन उन्नीस सौ इक्कियावन ईस्वी तक शीआ अरबी कॉलेज लखनऊ के प्रिन्सिपल रहे ।
अल्लामा इबने हसन; इसलामी फ़लसफ़ा, मग़रिबी फ़लसफ़ा और सियासत में महारत रखते थे । आप शिया वक़्फ़ बोर्ड, लखनऊ यूनिवेर्सिटी और महमूदाबाद के दारुत्तालीफ़ में रुक्न के उनवान से पहचाने जाते थे । हिंदुस्तान के मुसलमानों के मसाइल को बहुत अच्छे अंदाज़ से हल करते थे ।
तेहरीके पाकिस्तान की सफ़े अव्वल में होने के बावुजूद आप की इंकेसारी क़ाबिले दीद थी । उनके मर्तबे का अंदाज़ा इस तरह आसानी से लगाया जा सकता है के क़ाएदे आज़म मौहम्मद अली जिनाह के जनाज़े पर दौ नमाज़े हुईं जिन में से पहली नमाज़े जनाज़ा मौसूफ़ की क़यादत में अंजाम पाई ।
अल्लामा जार्चवी हक़ के हामी और बयाने हक़ में निडर थे । आप लखनऊ में इस्लामी इदारे से मुंसलिक हुए और सन उन्नीस सौ सत्तर ईस्वी में रिटायरमेंट लिया ।
मौसूफ़ चूंके इल्मे फ़लसफ़ा और इल्मे कलाम में महारत रखते थे इसी लिए फ़न्ने मुनाज़ेरा से ब’ख़ूबी वाक़िफ़ थे और उनका सन उनीस सौ उनतालीस ईस्वी का मुनाज़ेरा करना यादगार है । आप आख़री दम तक मुसलिम लीग से मुंसलिक रहे । नौजवानों के रौशन मुस्तक़बिल की ख़ातिर इंस्टीट्यूट ऑफ इस्लामिक रिसर्च की बुनयाद रखी ।
अल्लामा जार्चवी ने बहुत सी किताबें तालीफ़ फ़रमाईं जिन में से फ़लसफ़ा ए आले मौहम्मद, शहीदे नै’नवा, दैव माला, जदीद ज़ाकरी और तज़केराए आले मौहम्मद सरे फ़ेहरिस्त हैं । अल्लाह ने मौसूफ़ को दौ फ़र्ज़न्दे नरीना अता फ़रमाए जिन को सय्यद मौहम्मद मशहूद और सय्यद अली हसन के नाम से याद किया जाता है । आप ने रहबर नामी रिसाला भी निकाला जिस को ख़ोजा जवानो ने गुजराती ज़ुबान में तर्जुमा कर के शाए किया, इस के अलावा मौसूफ़ की मुता’अद्दिद किताबों का भी गुजराती ज़ुबान में तर्जुमा हुआ ।
आख़िर कार यह इलमो अदब का चमकता आफ़ताब, यरक़ान जैसी मोहलिक बीमारी में मुबतेला हो गया, मासूमीन नामी अस्पताल में एडमिट किया गया और चौदह जमादियुस सानी सन तेरह सौ तेरानवे हिजरी में दाई ए अजल को लब्बैक कह दिया । आप के इंतेक़ाल की ख़बर बिजली की तरह फैल गई, बड़े बड़े सियासी लोग, ओलमा , फ़ोज़ाला, तुल्लाब और कसीर तादाद में मौमेनीने किराम जनाज़े में शरीक हुए , रिज़विया सोसाइटी के इमाम बारगाह में अल्लामा नसीर इजतेहादी साहब क़िबला की क़यादत में नमाज़े जनाज़ा अदा हुई और इंस्टीट्यूट ऑफ इस्लामिक रिसर्च में सुपुर्दे लहद किए गए ।
मौमेनीन की जानिब से तसलियत के पैग़मात का अजीबो ग़रीब सिलसिला शुरू हो गया , तमाम सियासी लीडरान और तमाम ओलमाओ फ़ोज़ाला की जानिब से पैगामात आए ।
माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़ : मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-१ पेज-५६ दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०१९ ईस्वी।