۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
मौलाना इंतेज़ार हुसैन नक़वी

हौज़ा / पेशकश: दनिश नामा ए इस्लाम, इन्टरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, मौलाना इंतेज़ार हुसैन नक़वी सन तेरह सौ चवालीस हिजरी में उसमानपुर ज़िला अमरोहा में पैदा हुए । आप के वालिद “ इफ़्तेख़ार हुसैन नक़वी ” थे ।

मौलाना के मूरिसे आला “ सैय्यद चाँद बिन नूर ” हैं जिन का सिलसिलाए नसब बारह वासतों से इमाम अली नक़ी अलेहिस्सलाम तक पहुँचता है और मौलाना मौसूफ़ छब्बीसवीं पुश्त में इमामे अली नक़ी अलेहिस्सलाम से मिल जाते हैं ।

अल्लामा ने इब्तेदाई तालीम अपने वतन में हासिल की फिर फ़रोग़े तालीम के लिए मदरसा ए बाबुलइल्म नौगावाँ सादात का रुख़ किया , वहाँ रहकर आयतुल्लाह सैय्यद आक़ा हैदर , आयतुल्लाह सैय्यद मौहम्मद तक़वी बास्टवी और अल्लामा जवाद असग़र नातिक़ जैसे जय्यद ओलमाए आलाम की ख़िदमत में ज़ानुए अदब तेह किए । (तफ़सील के लिए मुराजेआ कीजिये : अनवारे फ़लक , जिल्द एक , सफ़्हा तीस )

तालीम से फ़राग़त के बाद दुनिया के मुख़्तलिफ़ ममालिक में ख़िदमते दीन की ख़ातिर मुताअद्दिद सफ़र किए जिन में सन उन्नी सौ च्व्वन ईस्वी में तन्ज़ानिया , सन उन्नी सौ अठ्ठावन ईस्वी में टाँगा , सन उन्नी सौ इकसठ ईस्वी में टबूरा और मडागास्कर के सफ़र यादगार हैं ।

यह बात भी क़ाबिले ज़िक्र है के मौसूफ़ अपने ज़माने में बेहतरीन मुबल्लिग़ , मौअल्लिफ़ , मुतर्जिम , मुताकल्लिम और आलिम के उनवान से पहचाने जाते थे । जब आप अफ़्रीक़ा से हिंदुस्तान वापस आए तो सन उन्नी सौ छियासी ईस्वी में इमामिया हाल ( देहली ) में इमामे जुमा के मनसब पर फ़ाइज़ हुए । इस के बाद बरेली में भी इमामे जुमा के उनवान से पहचाने गए ।

इस के अलावा बंगाल और गुजरात के मुताअद्दिद इलाकों में तबलीग़े दीन के फ़राइज़ अंजाम दिये जिन में से बंगाल में मुर्शिदाबाद और गुजरात में कानोदर सरे फ़ेहरिस्त हैं ।

मौलाना इंतेज़ार हुसैन ने मुस्तक़िल चौदह साल तक मोहर्रमुलहराम में अशरा ए मजालिस मेमन सादात ज़िला बिजनौर में ख़िताब फ़रमाया । आप अपने ज़माने के बेहतरीन मनाज़िर थे । मौलाना ने मुताअद्दिद मुनाज़रे किए जिन में से मौलाना ग़ुलाम रसूल फ़ारूक़ी ( इमामे जुमा

मंगुपूरा ) और डॉक्टर हाफ़िज़ रईस अहमद ( बिहार ) के साथ मुनाज़रे यादगार हैं । आप की कोशिशों के सबब पूरीना ( बिहार ) के इलाक़े में एक बड़ी तादाद ने मज़हबे शिया क़ुबूल किया ।

मौलाना को कुछ लोगों ने ताअस्सुब के पैशे नज़र , कुछ लोगों ने मालूमात में इज़ाफ़े की ख़ातिर और अक्सर लोगों ने राहे हिदायत की तलाश में मुताअद्दिद ख़ुतूत लिखे जिन के आप ने मुदल्लल जवाब दिये और इस के नतीजे में बहुत से लोगों ने मज़हबे इस्ना अशरी को क़ुबूल किया ।

हाज़िर जवाबी का यह आलम था के एक मर्तबा सन उन्नी सौ अठ्ठावन ईस्वी में सैद वाड़ा पूरीना ( बिहार ) में अशरा ए मजालिस ख़िताब करने गए जहाँ आप का बीस रोज़ क़याम रहा , जब आप अपने वतन वापस आने को तय्यार हुए तो मोमेनीन की जानिब से एक कैसिट दी गई जिस में मज़हबी सवालात किए गए थे । अल्लामा ने वतन पहुँच कर सब से पहला काम यह किया के कैसिट को सुना और सवालों के जवाबात लिखना शुरू किया , सवालात की तादाद इतनी थी के इन के जवाबात इक्कीस स्फ़्हात पर मुश्तामिल किताबचे की सूरत में तय्यार हुए ।

आप ने काफ़ी मिक़दार में इल्मी सर्माया छोड़ा है जिस में से सुतूने सदाक़त ( तीन जिल्दों पर मुश्तामिल ) , तलाशे हक़ , आईने के दो रुख़ , इज़हारे हक़ीक़त , अज़ादारी ए सैय्यदुश शोहदा पर एक नज़र , दर्दे दिल और है राज़े दिल और वग़ैरा के अस्मा क़ाबीले ज़िक्र हैं ।

मौलाना मौसूफ़ को ख़ुदावंदे आलम की जानिब से तीन बेटे अता हुए जिन के अस्मा ए गिरामी कुछ इस तरह हैं : (1) सैय्यद मौहम्मद (2) सैय्यद मौहम्मद असग़र (3) सैय्यद बेज़ाअत अली । तीन नेमतों के अलावा आप को एक रहमते इलाही भी अता हुई । इन के ख़ानदान में से इन के पोते “ मौलाना मंज़ूर अली उर्फ़ मोहसिन नक़वी ” क़ुमुल मुक़द्दिसा में मशग़ूले तालीम हैं ।

इंतेज़ार साहब निहायत मुन्कसेरुल मिज़ाज शख़्सियत के मालिक थे और आप का इरादा कोहे मुस्तहकम की मानिंद अटल रहा करता था । ख़ुद नुमाई को बिल्कुल पसंद नहीं फ़रमाते थे । रूहानीयत इस मैराज पर थी के ज़माने के लहवो लआब अपनी तरफ़ माइल नहीं कर पाते थे ।

यह इल्मो अमल का आफ़ताब चौबीस ज़ीक़ादा सन चौदह सौ अठ्ठारा हिजरी में सरज़मीने देहली पर ग़ुरूब हो गया और चाहने वालों की हज़ार आहो बुका के हमराह अमरोहा में सुपुर्दे लहद किया गया ।

(अरबाबे तहक़ीक़ : नुजूमुल हिदाया , जिल्द तीन , सफ़्हा उन्चास , की जानिब रुजू कर सकते हैं। )

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़ : मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-३ पेज-४९ दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०१९ ईस्वी।

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