हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, मौलाना सैयद मौहम्मद मुजतबा साहब 4 रजबुल मुरज्जब सन 1323 हिजरी में नौगांवाँ सादात ज़िला मुरादाबाद में पैदा हुए , आपने इब्तेदाई तालीम अपने वालिदे मोहतरम “साहिबे तज़किरा ए बेबहा” अल्लामा सैयद मौहम्मद हुसैन साहब से हासिल की ।
इब्तेदाई तालीम के बाद मदरसा ए मनसाबिया अरबी कॉलेज मेरठ के लिए आज़िमे सफ़र हुए और मुख़तलिफ़ असातेज़ा से कस्बे फ़ैज़ किया, सदरुल मिल्लत ने मदरसा ए मंसबिया को तर्क कर के मदरसा ए आलिया रामपुर का रुख़ किया और वहाँ रह कर मौलाना तासीर हुसैन फंदेड़वी और मौलाना सैयद मौहम्मद दाऊद की ख़िदमत में ज़ानूए अदब तेह किए ।
मौलाना मुजतबा साहब कुछ मुद्दत बाद रामपुर को तर्क कर के मदरसा ए सैयदुल मदारिस अमरोहा में तशरीफ़ ले आए और वहाँ मौलाना सैयद मौहम्मद (मुज्तहिद) अमरोहवी की ख़िदमत में रहे और उन से फ़िक़्ह, उसूल, मनतिक़, फ़लसफ़ा, कलाम और अक़ाएद का दर्स लेकर आलिमो फ़ाज़िल के इम्तेहानात में अच्छे नंबरों से कामयाबी हासिल की, मौलाना मौसूफ़ अपने असातेज़ा का बेहद एहतेराम करते थे ।
सदरुल मिल्लत, इज्तेहाद की तालीम के पैशे नज़र, सन 1355 हिजरी में आज़िमे इराक़ हुए ; कुछ अरसे तक करबलाए मोअल्ला में आयतुल्लाह सैयद अब्दुलहुसैन अल-हुज्जत के दर्से ख़ारिज में शिरकत करने के बाद नजफ़े अशरफ़ पहुंचे और वहाँ आयतुल्लाह सैयद अबुल हसन इसफ़हानी, आयतुल्लाह ज़ियाउद्दीन इराक़ी, आयतुल्लाह अब्दुल हुसैन रशती और आयतुल्लाह शेख़ मौहम्मद हुसैन इसफ़हानी वगेरा से कस्बे फ़ैज़ किया ।
मौलाना को ईरान व इराक़ के ओलमाए किराम ने इजाज़ए इजतेहाद अता फरमाए, उन ओलमा में से चंद ओलमा के असमाए गिरामी कुछ इस तरह हैं: आयतुल्लाह सैयद अबुल हसन इसफ़हानी, आयतुल्लाह शेख़ अब्दुल हुसैन रशती, आयतुल्लाह ज़ियाउद्दीन इराक़ी, आयतुल्लाह शेख़ मौहम्मद हुसैन काशीफ़ुलगिता, आयतुल्लाह मौहम्मद हादी काशीफ़ुलगिता, आयतुल्लाह शेख़ मौहम्मद काज़िम शीराज़ी, आयतुल्लाह शेख़ अब्दुल हुसैन अल-हुज्जत, आयतुल्लाह सैयद अब्दुल्लाह शीराज़ी, आयतुल्लाह मिर्ज़ा मौहम्मद हादी ख़ुरासानी और आयतुल्लाह मोहसिनुल हकीम तबातबाई ।
मौलाना तदरीस में अपनी मिसाल आप थे, इराक़ जाने से पहले कई साल तक मदरसा ए सैयदुल मदारिस अमरोहा में मुदर्रिस के उनवान से रहे और इराक़ से वापसी के बाद दर्सों तदरीस का सिलसिला बाक़ी रखने के लिए नौगांवाँ सादात में मदरसा ए आलिया जाफ़रिया की बुनयाद रखी जो आप की ज़िंदगी का एक अज़ीम शाहकार है, मौलाना की वफ़ात के बाद उन के बड़े फ़र्ज़न्द “मौलाना सलमान हैदर साहब” ने मदरसे को तरक़्क़ी की मंज़िलें तेय कराईं, फिर मौलाना सलमान साहब ने ये ज़िम्मेदारी अपने छोटे भाई “मौलाना अम्मार हैदर साहब” के सुपुर्द कर दी और यह इदारा आज तक जारी है ।
आप एक अच्छे वाएज़ और ज़ाकिर होने के साथ साथ , फ़ार्सी और उर्दू ज़बान के अच्छे शाएर भी थे ।
मौसूफ़ ने मूताअद्दिद मौज़ूआत पर क़लम उठाया और किताबें तसनीफ़ कीं, जिन में से ज़ीनतुल मजालिस, रिसाला ए इर्गामुल कफ़रह, आसहाबे रसूल और बहारिस्ताने तब्लीग़ के असमा क़ाबिले ज़िक्र हैं ।
मौलाना मौहम्मद मुजतबा साहब हसबे मामूल 26 जमादियुस सानी सन 1377 हिजरी में अपनी बस्ती (नौगांवाँ सादात) की कर्बला में ज़ियारत की ग़रज़ से गए , उस के बाद अपने वालिदे मोहतरम “अल्लामा सैयद मौहम्मद हुसैन साहब” की क़ब्र पर फ़ातेहा पढ़ी फिर आप नमाज़ अदा करने के लिए मस्जिद में तशरीफ़ ले गए, वुज़ू मुकम्मल होते ही मस्जिद के फर्श पर क़िबले की तरफ़ पैर कर के लेट गए और अपने मालिके हक़ीक़ी से जा मिले, देखते ही देखते आप के इंतेक़ाल की ख़बर आम हो गई और लोगों का जम्मे गफ़ीर मस्जिद और आप के घर की तरफ़ उमंड पड़ा ।
जनाज़ा मस्जिद से घर लाने के बाद ग़ुस्ल व कफ़न दिया गया, उसके बाद आबाई क़ब्रुस्तान में लाया गया, सैयद मौहम्मद साहब (मुज्तहिद) अमरोहवी ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई, वोरसा, ओलमा और मोमिनीन की मोजूदगी में मौलाना के जनाज़े को सुपुर्दे ख़ाक किया गया ।
(माख़ूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, जिल्द 1, सफ़्हा 243, तहक़ीक़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी – मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी – दानिशनामा ए इस्लाम, नूर माइक्रो फ़िल्म, दिल्ली)