हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, मौलाना सय्यद मौहम्मद यूनुस रिज़वी क़िबला जार्चवी इब्ने सैयद मौहम्मद यूसुफ़ रिज़वी जार्चवी (दिल्ली) की विलादत तक़रीबन सन तेरह सौ इकत्तीस हिजरी ब्मुताबिक़ सन उन्नीस सौ गियारह ईस्वी में सरज़मीने जार्चा सादात पर हुई ।
मौलाना की इब्तेदाई तालीम उनके वतन (जार्चा सादात) में अंजाम पाई, उस के बाद आप ने लखनऊ में तालीम हासिल की और कुछ अर्से बाद इराक़ के लिए आज़िमे सफ़र हुए और इराक़ की राजधानी (बग़दाद) में काज़ेमेन के इलाक़े में रह कर अपनी तालीम को आगे बढ़ाया ।
जब इराक़ के सद्र “अब्दुससलाम आरिफ़” की हुकूमत तहलील हुई उस वक़्त आप इराक़ को तर्क कर के लाएलपुर आ गए और वहाँ ज़िंदगी शुरू की । लाएलपुर धोबी घाट में मोजूद इमाम बारगाह “अज़ा ख़ाना ए शब्बीर” के ज़रिए तक़ारीर और इस्लामी तालीमात का आग़ाज़ किया ।
आप तक़रीबन सन उन्नीस सौ सेंतालीस ईस्वी तक बर्तान्वी फौज में मुलाज़ेमत करते रहे और उसके ज़रिए आप ने P 114 B, पियूपल्ज़ कॉलोनी नंबर 1 समोसा चोक डी ग्राउंड, फ़ेसलआबाद मैं प्लाट ख़रीदा ।
मौलाना ने दुआ ए मशलूल और दुआ ए सबासब का अमल किया था और ये चिल्ला आप ने इमाम मूसा काज़िम अलेहिससलाम और इमाम मौहम्मद तक़ी अलेहिससलाम के हरमे मुतहहर में बेठ कर अंजाम दिया ।
मौलाना यूनुस रिज़वी, आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद मोहसिनुल हकीम तबातबाई के शरई वकील थे । सन उन्नीस सौ पचपन ईस्वी से मोजिज़ा नामी अख़बार के एडीटर क़रार पाए नीज़ फ़ेसलआबाद की पच्चीस रजब में शहादते इमाम काज़िम अलेहिससलाम की मुनासेबत से मुनअक़िद होने वाली मशहुरो मारूफ़ , क़दीमी और मरकज़ी मजलिस के बानी, सर परस्त और लाइसन्स होल्डर के उनवान से पहचाने गए ।
मौलाना की ज़ुबान में इस क़दर मिठास थी के आप ने अपनी तक़ारीर के ज़रिए शीआ और सुन्नी, दोनों फ़िरकों को एक प्लेटफ़ार्म पर जमा कर दिया था और आप मुनादी ए वहदत के उनवान से पहचाने जाते थे ।
शीआ सुन्नी इत्तेहाद का नतीजा वाज़ेह था, इमाम काज़िम अलेहिससलाम की शहादत की मुनासेबत से मुनअक़िद होने वाली अज़ादारी के लिए अहलेसुन्नत हज़रात भी राज़ी हुए और उन्हों ने अर्ज़ी पर दस्तख़त भी किए जिस का सेहरा मौलाना मौसूफ़ के सर रहा ।
यह अज़ादारी आज भी बरक़रार है जिस को मौलाना यूनुस साहब के बेटे (१)सैयद हैदर अली रिज़वी (२)सैयद नजफ़ अली रिज़वी और मौलाना मौसूफ़ के पौते अंजाम देते हैं ।
यह अज़ादारी पच्चीस रजब बवक़्त नौ बजे सुबह शुरू होती है, बादे मजलिस ताबूते इमाम काज़िम अलेहिस सलाम बरआमद होता है और ताबूत की हमराही में जुलूस का एहतेमाम होता है, मौलाना मरहूम के तेय शुदा क़वानीन की बुनियाद पर आज भी दौराने जुलूस नमाज़े ज़ोहरेन बा जमाअत अदा की जाती है । जुलूस के
इख़्तेताम पर इमाम काज़िम अलेहिससलाम के नाम से मनसूब दस्तरख़ान, नज़्र, शर्बत और चाए वगेरा का माक़ूल इंतेज़ाम रहता है ।
जिस पौदे की मौलाना ने काष्तकारी की थी, हाले हाज़िर में वो पौदा एक तनावर दरख़्त की सूरत इख़्तियार कर चुका है, जिस का मुशाहेदा हर साल क़ाबिले दीद है, हमें उम्मीद है के इस अज़ादारी को उनकी नस्लें इमामे ज़माना अज्जलल्लाह के ज़हूर तक एसे ही जारीओ सारी रखेंगी ।
मौलाना यूनुस जार्चवी तीस ज़ीकादा सन चौदह सौ सात हिजरी बमुताबिक़ सत्ताइस जून सन उन्नीस सौ सतासी ईस्वी में छियत्तर साल की उम्र में दारे फ़ानी से दारे बक़ा की जानिब कूच कर गए और नमाज़े जनाज़ा अदा होने के बाद शहरे फ़ैसलाबाद के क़ब्रुस्तान में दफ़्न किए गए ।
माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़ : मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-८- पेज-२४९ दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०२१ ईस्वी।