۱۵ تیر ۱۴۰۳ |۲۸ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 5, 2024
अल्लामा सय्यद राहत हुसैन रिज़वी भीकपुरी

हौज़ा / पेशकश: दानिशनामा इस्लाम, इंटरनेशनल नूरमाइक्रो फिल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद गाफ़िर रिज़वी छोलसी और मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फ़ंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, अल्लामा सय्यद राहत हुसैन रिज़वी भीकपुरी येकुम मुहर्रमुल हराम सन तेरह सौ छ हिजरी में अपने वतन अलीनगर(भीकपुर) ज़िला सारन(सीवान) सूबा बिहार में पैदा हुए । आप के पिदरे बुज़ुर्गवार मौलाना सय्यद मौहम्मद इब्राहीम बड़ी खूबियों के बुज़ुर्ग, बा अमल और आला दर्जे के आलिम थे ।

अल्लामा अभी तीन साल ही के थे के सायाए पिदरी से महरूम हो गए । राहत हुसैन साहब की तालीमो तर्बियत उन के हक़ीक़ी ख़ालू “अल्लामा मौहम्मद महदी – साहिबे किताबे लवाएजुल एहज़ान”, उन के मामू “उम्दतुल ओलमा मौलाना हकीम सय्यद वाजिद अली ” और “मौलाना हाजी दिलदार हुसैन” ने संभाली । साहिबे लवाएजुल एहज़ान ने उन्हे हमेशा अपने

साथ रखा और अपनी मुस्तक़िल क़याम गाह (मौहल्ला कमरा – मुज़फ़्फ़र पूर) ले गए और वहाँ मदरसाए ईमानिया में दाख़िल करा दिया और मौसूफ़ वहाँ तालीम हासिल करने में मसरूफ़ हो गए ।

फिर आप ने पटना का रुख़ किया और सुल्तानुल मुफ़स्सेरीन मौलाना हाफ़िज़ सय्यद फ़रमान अली की सर’परस्ती  में तहसीले उलूम में मशगूल हो गए , चंद बरस तालीम हासिल करने के बाद अपने तालीमी सफ़र को आगे बढ़ाते हुए लखनऊ और रामपुर का सफ़र तै किया । रामपुर में ख़तीबे मिल्लत मुतर्जिमे क़ुरआन मौलाना मक़बूल अहमद साहब की सरपरस्ती में कस्बे फ़ैज़ किया और जब तक लखनऊ में क़याम रहा तब तक नासेरुल मिल्लत अल्लामा नासिर हुसैन मूसवी के किताब ख़ाने “नासिरिया” में रहे । नासेरुल मिल्लत, मौलाना की ज़ेहानतो ज़कावत को देख कर उन से अपने हक़ीक़ी फ़र्ज़न्द की मानिंद लगौओ रखते थे ।

आप ने जिन असातेज़ा से कस्बे फ़ैज़ किया उन के असमाए गिरामी कुछ इस तरह हैं : मौलाना ज़हूर हुसैन, नासेरुल मिल्लत अल्लामा नासिर हुसैन, मुफ़्ती मौहम्मद अली, मौलाना आबिद हुसैन वगेरा ।

मौसूफ़ निहायत मेहरबान आलिम और अज़ीम शख़्सिय्यत के मालिक थे । इलमो दानिश से बेहद लगाऔ उनकी ज़िंदगी का एहम हिस्सा था यही सबब है के वो हमेशा तहक़ीक़ और तबलीगे दीन में सर्गर्मे अमल रहते थे । 

अल्लामा मौसूफ़ में अख़लाक़ी तर्बिय्यत के साथ क़ौमी ख़िदमत का जज़्बा भी बहुत ज़ियादा था जिस की वजह से हर तबक़े और हर ख़ानवादे में हर दिलअज़ीज़ और मक़बूल थे । अहले हुनूद में आनरेबल राए बहादुर और बाबू गंगा प्रशाद वर्मा से बहुत अच्छे रवाबित थे । ओलामाए अहले सुन्नत में अल्लामा शिबली नौमानी और हज़रत ख़ाजा निज़ामी से गहरे तअल्लुक़ात थे जो आप की इल्म दौस्ती और कमाल पर्वरी की दलील है ।

अल्लामा को ग्यारह साल की उम्र ही से अख़बार बीनी का शौक़ हो गया था, मौसूफ़ फ़रमाते हैं : हमारे ख़ालू अल्लामा मौहम्मद महदी की ख़िदमत में इस्लाह पर्चा और पैशा अख़बार आया करता था और में उसे कभी कभी देख लिया करता था, रफ़्ता रफ़्ता शौक़ और दिलचस्पी इस हद तक हो गयी के में ख़ुद भी मंगाने लगा, जब घर वालों को ख़बर हुई तो सब ने एक ज़बान हो कर कहा: यह अख़बार बीनी के अय्याम नहीं हैं बल्के तहसीले उलूम के अय्याम हैं । मैं फिर अज़ीज़ो अक़ारिब से छुप कर सेहरा में और दरख़्तों पर चढ़ कर अख़्बारात पढ़ने लगा ।

अख़्बारबीनी के फ़ित्री शौक़ और दिली रुजहान ने मज़मून निगारी का शौक़ पैदा कर दिया और उस ज़माने के मशहूरो मारूफ़ अख़्बारात में मज़ामीन लिखने लगे और एक दिन स्कॉलर की हेसिय्यत से क़ल्मी दुनिया पे छा गए आप मज़मून निगारी में इतने ऊंचे मक़ाम के हामिल हो चुके थे के तमाम अख़्बार आप से मज़मून नवेसी की दर्ख़ास्त करते थे । 

तमाम मज़ाहिब के अफ़राद पीर मानते और जब कभी किसी को कोई मुश्किल पैश आती तो आप से दुआ के लिए कहते, आप की ज़बान में अल्लाह ने वो तासीर रखी थी के जब दुआ करते तो अल्लाह उनकी दुआ को क़ुबूल कर लेता था ।

आप को किसी ने ख़बर दी के सरकार हुनर हाएन्स  नवाब साहब खम्बात आप के अशरे की ख़ास मजलिस में शिरकत के लिए तशरीफ़ लाने वाले हैं और कुछ दैर तक बयान जारी रखने की फ़रमाइश की गयी है मगर नवाब साहब रियासत के कामों में उलझे और ताख़ीर हो गयी जब इमाम बारगाह में पहुंचे तो मजलिस शुरू हुई मगर सिर्फ़ पाँच मिनट आप ने बयान फ़रमाया और कहा : “अफ़सौस अब मग़रिब का वक़्त क़रीब है और कर्बला वालों ने जमाअत का सबक़ दिया है के आशेक़ाने इमाम हुसैन अ॰ स॰ को कभी नहीं भुलाना चाहिए, में फ़रमाइश के बा वुजूद भी चंद मिनट से ज़ियादा नहीं पढ़ सकता” यह कह कर आप ने एसी मजलिस पढ़ी के दरो दीवार से हाये हाये की सदाएँ आ रही थीं , मजलिस के बाद अल्लामा अव्वले वक़्त मेहराबे इबादत में थे । आप को जब भी वक़्त मिलता तो तसबीहे ख़ुदा में मसरूफ़ हो जाते थे । अल्लामा कभी किसी से मरऊब न होते थे, हमेशा बड़े छोटे का एहतेराम करते, ग़रीबों की अयादत और फ़ोक़रा की ख़िदमत वगेरा आप की तबीअत में कूट कूट कर भरी हुई थी । आप हर हाल में साबिरो शाकिर थे हत्ता औलाद के दाग़े मुफ़ारेक़त के वक़्त भी सहीफ़ा ए सज्जादिया की दुआ ए शुक्र पढ़ रहे थे ।

तीस मार्च सन उन्नीस सौ बारह ईस्वी में रौज़ा ए इमाम रज़ा अलेहिस्सलाम (मशहदे मुक़द्दस) का क़यामत ख़ेज़ वाक़ेआ जिस में रूसियों के हाथों गोला बारी हुई और रौज़ा ए अक़्दस के बेशबहा ख़ज़ाने लूट लिए गए, जब ये ख़बर अख़बारात में शाए हुई तो तमाम इस्लामी दुनिया में हलचल मच गयी और हिंदुस्तान में बेशुमार जलसों में रूसियों से नफ़रत का इज़हार किया गया । आप पर इस वाक़े ए का गेहरा असर हुआ, कई रौज़ तक खाना न खाया, लखनऊ से अपने वतन तशरीफ़ लाये और अट्ठाइस मई सन उन्नीस सौ बारह ईस्वी में जार्ज लाएब्रेरी और अली नगर के मौमेनीन की तरफ़ से अज़ीमुश्शान जलसा कर के अख़बारात में भेज दिया । बयान किया जाता है के हिंदुस्तान के शियों का ये पहला जलसा था और इसके बाद सेंकड़ों जलसे हुए , आप के जलसे के बाद आयतुल्लाह सय्यद नजमुल हसन ने मौलाना हाफिज़ सय्यद फ़रमान अली साहब से फ़रमाया: एक बच्चे ने भीकपुर में जलसा कर दिया लेकिन लखनऊ, अमरौहा, पटना, वगेरा के मौमेनीन ने अब तक कोई जलसा नहीं किया! । 

इब्तेदाई ज़माने में आप ने लखनऊ और दिल्ली से क़लमी ख़िदमतें अंजाम दीं और माया नाज़ अहले क़लम बनकर चमके, अल्लामा की पूरी ज़िंदगी क़लमी ख़िदमात की अंजाम देही में गुज़र गयी और आप जहां दीगर ख़िदमात की ख़ाहिश रखते थे वहीं चुनिन्दा अफ़राद की सवानेह हयात की तालीफ़ भी शामिल थी, वो बयान करते हैं: तब्लीगी नोहोन, मरासी, मुबल्लेगीन और वाएज़ीन की ख़िदमात और उनकी सवानेह उम्री की ताबाअत की जाए मसलन मीर अनीस, मिर्ज़ा दबीर, मौलाना मक़बूल अहमद, मौलाना सिब्ते हसन, मौलाना मोहम्मद रज़ा फ़लसफ़ी, मौलाना बहादुर आली शाह वागेरा और इसी तरह तमाम ताज़ियादारों और अज़ादारों मसलन मीर नवाब अली, महा राजा गुवालियर, फ़क़ीर बख़्शी वगेरा की ज़िंदगी को पैश किया जाए, हज़रात मुजतहेदीने एज़ाम मसलन अल्लामा मज्लेसी, शेख़े मुफ़ीद, सय्यदे मुर्तज़ा अलमुल हुदा, सय्यदे रज़ी के साथ ओलमाओ मुजतहेदीने बर्रे सगीर की सवानेह हयात और उनकी तसनीफ़ो तालीफ़ की ईशाअत का बेहतरीन इंतेज़ाम किया जाए ।

आप दौ मर्तबा अत्बाते आलियात की ज़ियारात से मुशर्रफ़ हुए और वहाँ हिंदुस्तानो इराक़ के मुजतहेदीन ने आप की इल्मी बुलंदियों को देख कर इजाज़ात अता फ़रमाए ख़ुसूसन आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अबुलहसन इसफ़हानी ने अपने गिरांक़द्र इजाज़े से सरफराज़ फ़रमाया जिस के आप मुसतहक़ थे ।

मौसूफ़ सारी ज़िंदगी इल्मी काम अंजाम देते रहे सन उन्नीस सौ बयालीस ईस्वी में सूबा बिहार में क़यामत ख़ेज़ सेलाब आया जिस से हज़ारों अफ़्राद मुताअस्सिर हुए और आप के घर का एक हिस्सा भी गिर पड़ा जिस में आप की किताबें और अख़बारात ज़ाए हो गए । अल्लामा ने इल्मी सरमाये को ज़ाए देख कर वो सदमा लिया के तबीअत अलील हो गयी, आप ज़िंदगी के आख़री अय्याम तक काठियावाढ़ (गुजरात) में इमामे जुमा व जमाअत  की हेसियत से ख़िदमात अंजाम देते रहे । अवाएले जून में गुजरात से वतन वापस आते हुए कानपुर स्टेशन पीआर पानी पीने के लिए उतरे तो अचानक दाईए अजल को लबबैक कहा और इस इलमो फ़ज़ल के दरख़्शाँ क़मर को पाँच जून सन उन्नीस सौ अठठावन ईस्वी में कानपुर के क़ब्रुस्तान में सुपुर्दे ख़ाक किया गया ।  

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़ : मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-५पेज-७५ दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०२१ ईस्वी।

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