۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
अल्लामा सैयद रज़ी रिज़वी

हौज़ा / पेशकश: दनिश नामा ए इस्लाम, इन्टरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार,  रईसुल वाएज़ीन अलहाज अल्लामा सैयद रज़ी अब्बास रिज़वी सात जमादिउस सानी सन तेरह सौ तैईस हिजरी ब’मुताबिक़ बारह जून सन उनीस सौ पाँच ईस्वी में छौलस सादात ज़िला बुलंद शहर (ज़िला ए हाज़िर – गौतम बुध नगर “नोएडा”) के एक इल्मी घराने में पैदा हुए । आप के वालिद का नाम सैयद हफ़ीज़ुल हसन रिज़वी था जो छौलस के एक मोअज़्ज़िज़ बाशिंदे थे ।

अल्लामा की इब्तेदाई तालीम छौलस सादात में हुई फिर मदरसा ए मंसबिया मेरठ का रुख़ किया, इसी तरह मदरसा ए नूरुल मदारिस अमरोहा, मदरसा ए वाएज़ीन लखनऊ और मदरसा ए नाज़िमिया लखनऊ में ज़ेरे तालीम रहे ।

मौलाना के मशहूरो मारूफ़ असातेज़ा के अस्माए गिरामी कुछ इस तरह हैं: उस्ताज़ुल ओलमा मौलाना सैयद मुर्तज़ा हुसैन, मौलाना सैयद यूसुफ़ हुसैन नजफ़ी, मौलाना सैयद

ख़ुर्शीद हसन फ़लसफ़ी, आयतुल्लाह सैयद सिब्ते नबी नजफ़ी, सैयदुल फ़ोक़हा सैयद अहमद अली ।

आपने मदरसतुल वाएज़ीन लखनऊ के मुदीर “नज्मुल मिल्लत आयतुल्लाह सैयद नज्मुल हसन रिज़वी” के दस्ते मुबारक से वाइज़ की सनद हासिल की और उनही के दस्ते मुबारक से अरबी में इजाज़ा लिया जिस पर चंद दीगर असातेज़ा के दस्तख़त मौजूद थे, उन में से मौलाना यूसुफ़ हुसैन साहब क़िबला, मौलाना अहमद अली साहब क़िबला और मौलाना सिब्ते नबी साहब क़िबला के अस्माए गिरामी क़ाबिले ज़िक्र हैं ।

तालीम से फ़राग़त के बाद सन उन्नीस सौ छब्बीस ईस्वी से सन उन्नीस सौ अट्ठाईस ईस्वी तक मदरसा ए नूरुल मदारिस अमरोहा में कुछ अरसा मुदर्रिस की हैसियत से पहचाने गए और कुछ मुद्दत तक फ़ारसी ज़बान के प्रोफ़ेसर की जानशीनी संभाली, मदरसे के प्रिंसपल “मौलाना मुर्तज़ा हुसैन” ने आप के तर्ज़े तालीम को बहुत ज़ियादा पसंद फ़रमाया इसी लिए सन उनीस सौ सत्ताईस ईस्वी और सन उन्नीस सौ अट्ठाईस ईस्वी में हुस्ने कारकर्दगी की बाबत उर्दू ज़बान में असनाद इनायत फ़रमाईं इसके अलावा सन उन्नीस सौ छब्बीस ईस्वी में नूरुल अफ़ाज़िल की सनद अरबी ज़बान में अता कर चुके थे । मदरसा ए वाएज़ीन लखनऊ से फ़ारिग़ होने के बाद सन उन्नीस सौ अट्ठाईस ईस्वी के माहे रमज़ानुल मुबारक में तबलीगे दीन की ग़रज़ से कोराला ज़िला इलाहबाद के लिए आज़िमे सफ़र हुए और अपनी ज़िम्मेदारी को ब’नहवे अहसन निभाया । सन उन्नीस सौ उन्तीस ईस्वी से सन उन्नीस सौ तीस ईस्वी तक केमबल “अटक” में मुक़ीम रहे और सन उन्नीस सौ इकत्तीस ईस्वी में “अटक” के क़ुर्बो जवार में तबलीगे इस्लाम के फ़राइज़ अंजाम दिए । वो मोमेनीन जो उस से पहले मसाइले शरई को सुलझाने की ख़ातिर, ओलमाए अहले सुन्नत की जानिब रुजू करते थे, उन्हें फ़िक़्हे जाफ़री से आशना किया ।

सन उन्नीस सौ तेंतीस ईस्वी में ज़ियारात की ग़रज़ से सफ़र किया । सन उन्नीस सौ चौंतीस ईस्वी में दुबारा “अटक” तशरीफ़ ले गए । सन उन्नीस सौ पैंतीस ईस्वी के नज़दीक “कामरा”  में ओलमाए अहले सुन्नत से मुनाज़ेरा हुआ जिस के नतीजे में फ़ख़रो मुबाहात के साथ फ़त्हो कामयाबी ने क़दम चूम लिए । इस मुनाज़ेरे का असर यह देखा गया के लोग जूक़ दर जूक़ मज़हबे तशय्यो में दाख़िल होने लगे और शिईयत को क़ुबूल करने लगे ।

“अटक” में जो शीआ मस्जिद थी उसको तौसी दी, इस मस्जिद में अहले सुन्नत हज़रात भी नमाज़ अदा करते थे । मौलाना ने तौसी के बाद इस ख़ौफ़ के पैशे नज़र के शीआओ अहले सुन्नत में फ़साद का सबब क़रार न पाए, तारीख़ी क़ता भी मरक़ूम फ़रमाया जो इस तरह है:

मस्जिदे जामे ए सादाते जलील         -          जिस की है बज़्मे हुसैनिय्या कफ़ील

फ़ज़्ले हक़ से हुई तकमील तमाम       -          शुक्र कीजे रज़ीय्ये नेक अंजाम

कहिए तारीख़े बला कारीगरी      -          मस्जिदे हक़्क़ाए इसनाए अशरी

इस तारीख़ी क़ते में “मस्जिदे हक़्क़ाए इसनाए अशरी” तारीख़ी माद्दा है । इस क़ते से यह मालूम होता है के मौलाना मौसूफ़ शाएरी के फ़न में माहिर थे क्योंके इस क़ते में मौलाना का नाम “रज़ी” भी मौजूद है ।

मौलाना मौसूफ़ ने “अटक” में एक मदरसा भी क़ायम किया जिस का नाम “मदरसा ए रिज़्विया” रखा । मौलाना के मशहूर शागिर्दों के उनवान से मौलाना सैयद गुलाब अली शाह नक़वी और क़ाज़ी अहमद हसन सरे फ़ेहरिस्त हैं ।

आप ने क़ौमे तशय्यो की फ़लाहो बहबूद के पैशे नज़र, मिल्लते तशय्यो के दर्से अख़्लाक़ का ख़ुसूसी एहतेमाम किया और इस दर्स का असर यह हुआ के दीने इस्लाम की तरवीजो इशाअत का मज़ीद ज़मीना फ़राहम हो गया । मौलाना ने सेंकड़ों लोगों को शीआ किया है जिन में से कुछ इस तरह हैं:

बुघेरा तहसील फ़तह जंग: चौदह अफ़्राद को शीआ किया, मुजाहिद ज़िला रावलपिंडी: तीन अफ़्राद को शीआ किया, चक्री ज़िला रावलपिंडी: तेरह अफ़्राद को शीआ किया, मूरत तहसील फ़तह जंग: सत्रह अफ़्राद को शीआ किया, भंडरदिली छांगला ज़िला केमबलपुर: दस अफ़्राद को शीआ किया, दौकौहा सादात ज़िला जालंधर: चार अफ़्राद को शीआ किया, चहारन ज़िला रावलपिंडी: पाँच अफ़्राद को शीआ किया ।

सन उन्नीस सौ अड़तीस ईस्वी में शिकारपुर ज़िला बुलंद शहर (यू॰ पी॰) के लिए आज़िमे तबलीग़ हुए । सन उन्नीस सौ बावन ईस्वी में दुबारा पाकिस्तान गए और गुज्रानवाला में मुक़ीम हुए । सन उन्नीस सौ सत्तावन ईस्वी में ख़ाना ए ख़ुदा की ज़ियारत से मुशर्रफ़ हुए और हज जैसी अहम इबादत के अरकान बजा लाने का शरफ़ हासिल हुआ । आप ने मुताअद्दिद मक़ामात पर मसाजिद की तौसी फ़रमाई और मुख़तलिफ़ जगहों पर मसाजिद की बुनयादें रखीं ।

मौलाना रज़ी रिज़वी साहब मैदाने ख़िताबत के सूरमा थे, फ़ज़ाइल के मैदान में हंगामा बपा कर देने वाले और मसाइब की दुनिया के एसे शहंशाह के चंद जुमलों से ही मौमेनीन में बैताबी का आलम पैदा हो जाए! ।

अल्लामा ने एक रिसाला तहरीर फ़रमाया जिस का उनवान “फ़ल्सफ़ा ए शहादते हुसैन” क़रार दिया । यह रिसाला पहली बार सन उन्नीस सौ उंतालीस ईस्वी में माहनामा ए अलवाइज़ में शाए हुआ और उसके बाद, गुज्रानवाला में किताबी सूरत में नश्र हुआ । मौलाना ने हिंदुस्तानो पाकिस्तान के मुख़तलिफ़ शहरों, क़स्बों, दीहातों और मोहल्लों में मजालिसो तक़ारीर के ज़रिए दीने इस्लाम की ख़िदमत अंजाम दी और नौजवानो को राहे हिदायत पर गामज़न फ़रमाया । मौलाना को अरबी और फ़ारसी ज़बान पर मुकम्मल उबूर हासिल था । मौलाना ने आख़री दम तक तबलीगे दीन से हाथ नहीं उठाया और आख़िर कार राहे दीन में आने वाली तारीकियों को ख़त्म करते करते यह चराग़ छ ज़िलहिज्जा सन चौदह सौ नौ हिजरी ब’मुताबिक़ दस जुलाई सन उन्नीस सौ नवासी ईस्वी में ख़ुद ही गुल हो गया और लाहौर में वाक़े इक़बाल टाउन क़ब्रुस्तान में सुपुर्दे लहद किया गया । 

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़ : मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-३ पेज-६७ दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०१९ ईस्वी।

     

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