۳۱ اردیبهشت ۱۴۰۳ |۱۲ ذیقعدهٔ ۱۴۴۵ | May 20, 2024
حضرت خدیجہ سلام اللہ علیہا

हौज़ा / उस ज़माने में भी जनाबे ख़दीजा स.अ. की शख़्सियत इतनी अज़ीम और इज़्ज़तदार थीं कि आप को औरतों का सरदार कहा जाता था। उम्मत की मां जनाबे ख़दीजा स.अ एक बा फ़ज़ीलत ख़ातून हैं. आपका नाम ख़दीजा, कुन्नियत उम्मे हिन्द थी, आप के वालिद ख़ुवैल्द इब्ने असद और वालिदा का नाम फ़ातिमा बिन्ते ज़ायदा इब्ने असम था।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,उस ज़माने में भी जनाबे ख़दीजा स.अ. की शख़्सियत इतनी अज़ीम और इज़्ज़तदार थीं कि आप को औरतों का सरदार कहा जाता था।

उम्मत की मां जनाबे ख़दीजा स.अ एक बा फ़ज़ीलत ख़ातून हैं. आपका नाम ख़दीजा, कुन्नियत उम्मे हिन्द थी, आप के वालिद ख़ुवैल्द इब्ने असद और वालिदा का नाम फ़ातिमा बिन्ते ज़ायदा इब्ने असम था।

इन दोनों का नसब आगे चल कर पैग़म्बरे इस्लाम स.ल.व. के नसब से मिल जाता है, आप की वफ़ात माहे मुबारक रमज़ान की दसवीं तारीख़ (बेअसत के दसवें साल) में मक्का शहर में हुई और मक्का के मशहूर क़ब्रिस्तान जन्नतुल मोअल्ला में आप दफ़्न हुईं जहां आज भी आपकी क़ब्र साहिबाने मारेफ़त की ज़ियारतगाह बनी हुई है।

जनाबे ख़दीजा स.अ की शादी

जनाबे ख़दीजा की उम्र २८ बरस की थी जब आप की शादी पैग़म्बरे इस्लाम (स) से हुई और आप रसूले ख़ुदा (स) से ख़ानदानी रिश्तेदारी तो रखती ही थीं उसके अलावा आप ने चचाज़ाद भाई वरक़ह इब्ने नौफ़िल से आप के फ़ज़ाएल सुने थे और यहूदी और ईसाई उलमा से आप की नबुव्वत और रिसालत की जो ख़बरें उन तक पहुंची थीं इन्हीं सब चीज़ों की वजह से अपने दिमाग़ में पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स) को जगह दे चुकी थीं और दिल ही दिल में आप पर ईमान ला चुकी थीं।

इस्लाम के एलान से पहले आप के अलक़ाब

इस्लाम के एलान से पहले आप के बहुत सम्मानित अलक़ाब थे जैसेकि:

मुबारकह: इंजील में जहां पैग़म्बरे इस्लाम (स) की बशारत का ज़िक्र है वहीं पर जनाबे ख़दीजा (स) के मुबारकह होने और जन्नत में जनाबे मरयम (स) के साथ हमनशीनी का भी ज़िक्र है।

ताहिरा: अरब के ज़माने जाहिलिय्यत में पाकदामन औरतों की तादाद बहुत कम थी और समाज की ख़राबियों की वजह से ज़ियादातर औरतों का किरदार दाग़दार होता था, उस दौर में भी जनाबे ख़दीजा को अपनी पाकीज़गी की वजह से ताहिरा के लक़ब से नवाज़ा गया जो आप के बुलंद मर्तबे की दलील है।

सय्यदुन निसा: उस ज़माने में भी जनाबे ख़दीजा की शख़्सियत इतनी अज़ीम और इज़्ज़तदार थीं कि आप को औरतों का सरदार कहा जाता था।

क़ुरआन और रिवायात में आप का ज़िक्र

जैसा कि ज़िक्र हुआ है कि आप अपने चचेरे भाई से पैग़म्बरे इस्लाम (स) के फ़ज़ाएल और अज़मत के बारे में सुन चुकी थीं जिस के बाद न केवल यह कि आप पैग़म्बरे ख़ुदा (स) की नबुव्वत और रिसालत के बारे में जानती थीं बल्कि दिल ही दिल में ईमान भी ला चुकी थीं.

इमाम अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा में क़ासेआ नामी ख़ुत्बे में फ़रमाते हैं कि: जिस समय पैग़म्बरे इस्लाम (स) की रिसालत का नूर चमका उसकी रौशनी पैग़म्बरे ख़ुदा (स) और जनाबे ख़दीजा के घर के अलावा किसी और घर में नहीं थी और मैं उनमें तीसरा शख़्स था जो रिसालत के नूर को देखता और नबुव्वत की ख़ुशबू सूंघता था। आप का मर्तबा इतना बुलंद था कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) आप से फ़रमाते थे: ऐ ख़दीजा! अल्लाह रोज़ाना कई मर्तबा तुम्हारी वजह से फ़रिश्तों पर फ़ख़्र करता हैं।

टैग्स

कमेंट

You are replying to: .