हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इस रिवायत को "अलकाफी"पुस्तक से लिया गया है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
:قال رسول اللہ صلی الله علیه و آله
ألا اُخْبِرُكُمْ بِاَشبَهِكُم بي؟ قَالوا: بَلي يا رَسولَ اللّه ِ. قالَ: اَحسَنُكُم خُلقا وَ اَليَنُكُم كَنَفا وَ اَبَرُّكُم بِقَرَابَتِهِ وَ اَشَدُّكُم حُبّا لاِخوانِهِ في دينِهِ وَ اَصبَرُكُم عَلَي الحَقِّ وَ اَكظَمُكُم لِلغَيظِ وَ اَحسَنُكُم عَفْوا وَ اَشَدُّكُم مِن نَفْسِهِ اِنْصافا فِي الرِّضا وَ الْغَضَبِ
हज़रत रसूल अल्लाह (स) ने फ़रमाया:
आया मैं तुम्हें तुम में से अपने मुशाबह तरीन लोगों की पहचान ना करोऊ?
सब ने मिलकर कहा :जी बिल्कुल, या रसूल अल्लाह स.ल.व.
तो स.ल.व.आपने फरमाया:
ऐसा आदमी जो तुम में से सबसे ज़्यादा खुश अख्लाक, नरम मिजाज़, रिश्तेदारों के साथ मेहरबान, अपने दीनी भाइयों के साथ ज़्यादा मोहब्बत करने वाला, हक़ के साथ सब्र करने वाला, गुस्से को बर्दाश्त करने वाला, और ज्यादा माफ करने वाला, और खुशी और गुस्से में ज़्यादा इंसाफ करने वाला हो।
अलकाफी,भाग 2,पेंज 240,241,हदीस नं 35