हौज़ा न्यूज़ एजेंसी !
शौकत भारती द्वारा लिखित
हजरत अबू तालिब को मोमिन न मानने वाले नीचे लिखी हुई कुरानी आयतों पर गौर फिक्र कर के तौबा करें और फिर से कलमा पढ़ कर मुसलमान बनें।
याद रखिए जो लोग हजरत अबुतालिब को मोमिन नहीं मानते वो अपने इस अमल से रसूल अल्लाह को माज अल्लाह जहन्नम की आग में जलने वाला साबित करते हैं।
कुराने मजीद ने सूरए लुकमान की आयत नंबर 13 में शिर्क को बड़ा जुल्म कहा है और अल्लाह ताला ने साफ साफ एलान कर दिया है की।
"अल्लाह के साथ किसी को शरीक मत करना,शिर्क ज़ुल्मे अज़ीम है।
क्यों की शिर्क करने वाला बड़ा ज़ालिम होता है इस लिए जो लोग हजरत अबू तालिब को ईमान वाला नहीं मानते वो माज अल्लाह हजरत अबू तालिब को मुशरिक समझते हैं यानी बड़ा ज़ालिम समझते हैं।
सूरए हूद की आयत नंबर 113 में रसूल अल्लाह को हुक्म दिया गया है।
"और जालिमों की ओर न झुकना,अन्यथा तुम्हें भी अग्नि स्पर्श कर लेगी और अल्लाह के सिवा तुम्हारा कोई सहायक नहीं है,फिर तुम्हारी सहायता नहीं की जायेगी"।
दोनों आयतों ने साफ कर दिया की क्यों की मुशरिक ज़ालिम है इस लिए जालिम की तरफ झुकने वाले को जहन्नम की आग जलाए गी ये किसी और का नहीं अल्लाह का फैसला है जिसे कोई बदल नहीं सकता।
दुनिया का कोई भी मौलाना ये नहीं साबित कर सकता की रसूल अल्लाह का झुकाओ हजरत अबू तालिब की तरफ नही था? या रसूल अल्लाह अपने चचा हजरत अबू तालिब और अपनी चची जनाबे फातिमा बिनते असद को दिल से नहीं चाहते थे ? उनकी इज़्जत नहीं करते थे?
सब जानते हैं की रसूल अल्लाह के दिल में हजरत अबू तालिब की और हजरत अबू तालिब के दिल में रसूल अल्लाह की बेपनाह मोहब्बत थी, सब जानते हैं की दोनो का झुकाओ एक दूसरे की तरफ बहुत ज्यादा था इतना था की हजरत अबू तालिब के इंतकाल के साल को रसूल अल्लाह ने "आमुल हुजन" बना दिया यानी गम का साल कहा और रसूल अल्लाह ने खुद साल भर हजरत अबू तालिब का गम मनाया और गम मानने को कहा भी। इसका मतलब हजरत अबू तालिब के इंतेकाल के बाद भी रसूल अल्लाह का दिल हजरत अबू तालिब की तरफ पूरी तरह से झुका हुआ था और इसी लिए साल भर रसूल अल्लाह ने उनका गम मनाया और गम मानने का हुक्म दिया। इससे बड़ा ईमाने अबू तालिब के लिए और क्या सुबूत हो सकता है।
आखरी वक्त में कलमा पढवाने के इसरार की रवायत बुग्जे अली में गढ़ लेने वाले जाहिलों क्या कुरान के हुक्म के बाद भी रसूल अल्लाह किसी ईमान न रखने वाले मुशरिक की मौत के बाद भी उसकी तरफ झुक सकते थे? याद रखिए हजरत अबू तालिब और रसूल अल्लाह जैसी मोहब्बत की कोई मिसाल दुनिया नहीं पेश कर सकती।
दोनों आयतों और सीरते अबु तालिब पर गौर करने से ये नतीजा निकला की जो लोग हजरत अबू तालिब को मोमिन नहीं मानते हैं वो रसूल अल्लाह को माज अल्लाह जालिम की तरफ झुकाओ रख कर जहन्नम की आग में जलने वाला समझते हैं ऐसे लोग अपने अपने ईमान पर गौर करें की वोह हजरत अबू तालिब के ईमान का इंकार कर के रसूल अल्लाह पर बोहतन बांध रहे हे और खुद जहन्नम के दहाने पर कहां खड़े हो गए हैं।
जब तक अबू तालिब जिंदा रहे रसूल अल्लाह ने उनकी तरफ अपना झुकाओ रख कर और उनके इंतकाल के बात भी उनके तरफ झुकाओ रखा जिसका सुबूत उनके इंतकाल के साल का नाम रसूल अल्लाह ने आमुल हूजन रख दिया और अपने इस अमल से हजरत अबू तालिब के ईमान को रहती दुनिया तक कुरान की आयतों से साबित कर दिया।
अब वो लोग जो हजरत अबू तालिब को मोमिन नहीं मानते हैं वो अपना ईमान बचाने के लिए तौबा करें और कलमा पढ़ कर फिर से मुसलमान बनें और दोबारा कभी अपनी जुबान से हजरत अबू तालिब के ईमान का इंकार न करें इसी में उनकी खैर है।
काश मुसलमान मुल्ला की किताबों के बजाए अल्लाह की किताब मे गौर फिक्र कर के रसूल अल्लाह की सही मायनों में मदद करने वाले हजरत अबू तालिब के खिलाफ़ अपनी ज़ुबान न खोलता या कलम न चलाता तो उसका ईमान कभी बर्बाद न होता।
हजरत अबू तालिब के ईमान का इंकार करने वाले मुसलमानों सूरए लुकमान और सूरए हूद की आयत नंबर 113 में गैरो फिक्र करो,हजरत अबू तालिब की दी हुई बेशुमार कुर्बानियों पर गौर करो और तौबा कर के फिर से कलमा पढ़ लो ताकि तुम अपने आपको मुसलमान कह सको।
नोटः हौज़ा न्यूज़ एजेंसी हिंदी की साइट पर होने वाला लेख लेखक के ज़ाती विचार है। हौज़ा न्यूज़ एजेंसी का लेखक के विचारो से सहमत होना ज़रूरी नही है।