हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इस रिवायत को "सवाबुल अलआमाल" पुस्तक से लिया गया हैं इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
:عَنْ اِسْماعيلِ بنِ سَهْلٍ قال
كَتَبْتُ اِلى اَبى جَعفرِالثّانى عليه السلام: عَلِّمِنى شَيْئا إذا أنَا قُلْتُهُ كُنْتُ مَعَكُمْ فِى الدُّنيا وَالآخِرةِ، قالَ: فَـكَتَبَ بِخَـطِّهِ أَعْـرِفْهُ: اَكْثِرْ مِنْ تِلاوَةِ «إنّا أنزَلْناهُ» وَرَطِّبْ شَفَتَيْكَ بِالأسْتِغْفارِ
ईस्माइल बिन सहल कहते हैं: मैंने इमाम मोहम्मद तकी अलैहिस्सलाम की खिदमत में लिखा कि मुझे ऐसी चीज़ की तालीम दे!कि अगर मैं इसे पढ़ूं तो दुनिया और आखिरत में आप के साथ रहूं तो हज़रत ने लिखकर फरमाया सूरह( انا انزلناہ)की ज़्यादा तिलावत करो,और आपके होठ इस्तेग़फार कहने से तर हो, यानी इतना इस्तेग़फार करो कि आप का होठ कभी सुख नहीं।
सवाबुल अलआमाल,पेंज 197