हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इस रिवायत को "कामिल अलज़ियारत" पुस्तक से लिया गया है इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
:قال الامام الصادق علیه السلام
عن أَبی عَبْدِ اللَّه: الزَّائِرُ لِلْحُسَیْنِ (ع) ... فَیَنْصَرِفُ وَ مَا عَلَیْهِ ذَنْبٌ وَ قَدْ رُفِعَ لَهُ مِنَ الدَّرَجَاتِ مَا لَا یَنَالُهُ الْمُتَشَحِّطُ بِدَمِهِ فِی سَبِیلِ اللَّه.
हज़रत इमाम जफार सादीक अलैहिस्सलाम ने फरमाया:
ज़ायरे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का,ज़ियारत से पलटते वक्त कोई गुनाह बाकी नहीं रहता और उसका मर्तबा इस कद्र ऊपर चला जा जाता है की अल्लाह ताला की खातिर अपने ख़ून में लट पत शख्स भी इसके मरतवे तक नहीं पहुंचता।
कामिल अलज़ियारत,पेंज 279