हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, निम्नलिखित रिवायत "कामिल अल-ज़ियारत" पुस्तक से ली गई है। इस रिवा.त का पाठ इस प्रकार है:
قال الامام الصادق علیہ السلام:
أَنَّ زَائِرَهُ لَیَخْرُجُ مِنْ رَحْلِهِ فَمَا یَقَعُ فَیْئُهُ عَلَى شَیْءٍ إِلَّا دَعَا لَهُ، فَإِذَا وَقَعَتِ الشَّمْسُ عَلَیْهِ، أَکَلَتْ ذُنُوبَهُ کَمَا تَأْکُلُ النَّارُ الْحَطَب. وَ مَا تُبْقِی الشَّمْسُ عَلَیْهِ مِنْ ذُنُوبِهِ شَیْئاً، فَیَنْصَرِفُ وَ مَا عَلَیْهِ ذَنْب
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया:
इमाम हुसैन (अ) का ज़ायर जब ज़ियारत के इरादे से अपने घर से निकलता है तो जिस पर भी उसकी छाया पड़ती है वह उसके लिए दुआ करता है और जब सूरज की गर्मी उस पर पड़ती है तो वह उसके पापों को मिटा देता है जैसे आग ईंधन को नष्ट कर देती है।
कामिल अल-ज़ियारत, पेज 279