۱۵ مهر ۱۴۰۳ |۲ ربیع‌الثانی ۱۴۴۶ | Oct 6, 2024
मौलाना मोहम्मद हुसैन आज़ाद

हौज़ा / पेशकश: दानिशनामा इस्लाम, इंटरनेशनल नूरमाइक्रो फिल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद गाफ़िर रिज़वी छोलसी और मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फ़ंदेड़वी

 हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार शमसुल औलमा मौलाना मोहम्मद हुसैन आज़ाद बतारीख़ 18 ज़िल्हिज्जा सन 1245 हिजरी बामुताबिक़ 10 जून 1830ई॰ में हिंदुस्तान के दारुस्सलतनत देहली की सरज़मीन पर पैदा हुए, मौलाना को आज़ाद   देहलवी के नाम से शोहरत हासिल हुई, मोसूफ़ के वालिद “मौलवी मोहम्मद बाक़िर अपने ज़माने के मशहूर आलिमे दीन और सियासतमदार थे।

   मौलाना आज़ाद के ख़ानदान में नूरानी सिलसिला मोजूद रहा जो कुछ इस तरह है: मौलाना मोहम्मद हुसैन आज़ाद इबने मौलवी मोहम्मद बाक़िर इबने अल्लामा आखूंद मोहम्मद अकबर इबने अल्लामा मोहम्मद अशरफ़ इबने अल्लामा आखूंद मोहम्मद शिकोह, मौलाना का सिलसिला ए नसब जनाबे सलमाने फ़ारसी अ: तक पोहुंचता है।

मौलाना आज़ाद उस नस्ल से हैं जो जनाबे सलमाने फ़ारसी की नस्ल  ईरान के मशहूर शहर “हमदान” में आबाद थी, मौसूफ़ के जद्दे बुज़ुर्गवार यानी आयतुल्लाह आखूंद मोहम्मद शिकोह बादशाहे आलमगीर के ज़माने में हमदान से देहली तशरीफ़ लाये थे।

मौलाना के तखल्लुस “आज़ाद” से साफ़ ज़ाहिर है की आप शायरी से भी दिलचस्पी रखते थे, उर्दू अदब की तरफ़ आपका बहुत ज़्यादा रुजहान था, उर्दू में अशआर लिखते थे और अपने अशआर की इसलाह अपने वालिद नीज़ उस ज़माने के मशहूर शायर “ज़ौक़” से लेते थे।

सन 1873 ई॰ में कर्नल बिलराइड ने “अंजुमने पंजाब” के नाम से एक अंजुमन बनाई, उस अंजुमन की जानिब से महफ़िले शेर सजाई जाती थी जिसमें मिसरे के बजाय नज़्म की दावत दी जाती थी, इस बज़मे शेरी में मौलाना आज़ाद और मौलाना हाली मुस्तक़िल शिरकत करते थे ।

मौलाना आज़ाद अपनी इब्तेदाई तालीम से फ़रागत के बाद “देहली यूनिवर्सिटी” में पोंहचे, इस यूनिवर्सिटी में मौलवी नज़ीर अहमद, मौलवी ज़काउल्लाह और प्यारे लाल आपके हमदर्स क़रार पाये, मौलाना मोसूफ़ की बहुत ज़्यादा तारीफ़ व तोसीफ़ मिलती है यहाँ तक कि बाज़ तज़किरा निगारों ने ये भी लिखा है कि मौलाना आज़ाद जुनून के आलम में भी अक़्लमंदों से बेहतर थे, इसका सबब ये है कि मौसूफ़ ने जुनून की हालत में भी ऐसे ऐसे काम अंजाम दिये बल्कि मैदाने नज़्म में भी अहम किरदार अदा किया, मौसूफ़ ने तारीखे अदब को एक नई सिम्त दी और “आबे हयात” नामी एक किताब तहरीर की जो उन्हें सदा ज़िंदा व पाइन्दा रखेगी।

मौलाना आज़ाद के वालिद ने सन 1827ई॰ में उर्दू अख़बार का रस्मे इजरा किया जो देहली में उर्दू का सबसे पहला अख़बार था, सन 1854 ई॰ में इस अख़बार की मुदीरियत मौलाना आज़ाद के नाम हो गयी, सन 1857 ई॰ में अंग्रेज़ों से जंग शुरू हुई तो इस अख़बार ने अंग्रेज़ों के खिलाफ़ बहुत ज़्यादा खबरे नश्र कीं और बहुत ज़्यादा मज़ामीन शाया किये।

अंग्रेज़ों की मुखालेफ़त के सबब इस अख़बार को मुश्किलात से दोचार होना पड़ा, अंग्रेज़ों ने मुसलमानों के खिलाफ़ साज़िश शुरू कर दी और मौलाना आज़ाद के वालिद “मौलवी मोहम्मद बाक़िर” अंग्रेज़ी गोलयों का निशाना बनकर शहीद हो गये, मौलाना आज़ाद इस साज़िश से निजात पाकर अपने अहले खाना के साथ लखनऊ की तरफ़ आज़िमे सफ़र हुए।

मौलाना मोसूफ़ ने कस्बे मआश की तलाश में कई साल लखनऊ में गुज़ारे लेकिन कोई फ़ायदा हासिल ना हुआ लिहाज़ा सन 1864ई॰ में लखनऊ से लाहौर का रुख़ किया और वहाँ पहुँच कर एक बुज़ुर्ग की सिफ़ारिश से सरकारी  स्कूल में उस्ताद की हैसियत से मुंतखब कर लिए गये, जहाँ उनकी माहाना तनख़ाह 15 रुपए मुक़र्रर हुई।

मौलाना आज़ाद मुखतलिफ़ उलूम में माहिर थे लिहाज़ा अभी कुछ ज़्यादा अरसा ना गुज़रा था कि लाहौर के लोग मौसूफ़ के मोतक़िद हो गये और आपको मुजताहिद व रहनुमा के उनवान से क़ुबूल कर लिया।

मौलाना मोहम्मद हुसैन ने बहुत से रिफ़ाही उमूर अंजाम दिये मसलन: देहली में मोजूद अपने वालिद का बनाया हुआ इमामबाड़ा अज़ सरे नो तामीर कराई, लाहौर में आज़ाद मंज़िल के नाम से एक इमारत बनाई।

मौसूफ़ की ज़्यादातर किताबें ज़ाया हो गईं, कुछ बाक़ी बचीं थीं जो पंजाब यूनिवर्सिटी में दे दी गईं, उसके बावजूद आग़ा मोहम्मद ताहिर देहलवी के पास सैंकड़ों किताबें मौजूद रहीं, आग़ा मोहम्मद बाक़िर के पास भी कुछ नवादेरात मौजूद रहे।

मौलाना आज़ाद की बेशुमार तालीफ़ात में से कुछ किताबें इस तरह हैं: आबे हयात, शोराए उर्दू, नैरंगे ख़याल, सुखनदाने फ़ारस, क़िससुल हिन्द, सैरे ईरान, दरबारे अकबरी, नज़मे आज़ाद, तज़किरा ए आज़ाद, जानवरिस्तान, खुमकदा ए आज़ाद, दीवाने ज़ौक़, लुगते आज़ाद, जामेउल क़वाइद, कंदे पारसी, तज़किरा ए औलमा ए हिन्द, सिनीने इस्लाम, आमूज़गारे फ़ारसी, मकतूबाते आज़ाद, अफ़साना ए अकबर, शहज़ादा इब्राहीम, हिकायाते आज़ाद, निगारिस्ताने फ़ारस और फलसफ़ा ए इलाहियात वगैरा।

मौलाना मोसूफ़ की नस्ल आपके बेटे “ मोहम्मद इब्राहीम” के ज़रिये आगे बढ़ी, मौलाना आज़ाद की नस्ल के बारे में कहा जाता है कि आपकी मुखतलिफ़ बीवियों से बहुत सी औलाद पैदा हुईं लेकिन वो ज़िंदा ना रह सकीं।

आख़िरकार ये मखज़ने इल्म व अदब, उलूमो फुनून का मालिक बतारीख़ 19 मोहर्रम ( रोज़े अशूरा ) सन 1328 हिजरी बामुताबिक़ 22 जून सन 1910 ई॰ में जहाने फ़ानी से जहाने बाक़ी की जानिब कूच कर गया और नमाज़े जनाज़ा की अदाएगी के बाद शहरे लाहौर में मोजूद “कर्बला गामे शाह” में सुपुर्दे लहद कर दिया गया।   

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-2पेज-298

दानिश नामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, 2020

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