۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
आल्लाम

हौज़ा/पेशकश: दनिश नामा ए इस्लाम, इन्टरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,साहिब ए मतलए अनवार अल्लामा सैय्यद मुर्तजा हुसैन बतारीख १८ ज़िलहिज्जा सन:१३४१ हिजरी मुताबिक़ १ अगस्त सन १९२३ ई॰ में सरज़मीने लखनऊ पर पैदा हुए आपके वालिद भी बुज़ुर्ग अलिमे दीन थे जिनको मौलाना सैय्यद सरदार हुसैन इबने मौलाना सैय्यद ऐजाज़ हुसैन नक़वी के नाम से पहचाना जाता हैं।

इब्तेदाई तालीम हासिल करने के बाद “मदरसे अबिदया” में दाखला लिया उसके बाद “मदरसे सुलतानया में गए वहाँ से सदरुल अफ़ाज़िल की सनद लेने के बाद मदरसे नाज़मिया  में रहकर मुमताज़िल अफ़ाज़िल की सनद हासिल की, मदरसे की तालीम के दौरान “शिया अरबी कालिज” से इमादुल अदब और इमादुल कलाम की असनाद हासिल कीं और इलाहबाद बोर्ड से अरबी से आलिम, फ़ारसी से कामिल, उर्दू से क़ाबिल पास किया,

लखनऊ यूनिवर्सिटी से फ़ाज़िले अदब और दबीरे कामिल की असनाद हासिल कीं और आख़िर में पंजाब यूनिवर्सिटी से मौलवी फ़ाज़िल मुंशी फ़ाज़िल और उर्दू फ़ाज़िल के इम्तेहानात पास किए

सन १९४७ई॰ में रिश्ता ए इज़देवाज में मुंसलिक हुए अल्लाह ने आपको एक रहमत और ५ नेमतों से नवाज़ा आपके बेटों के असमा कुछ इस तरह हैं: मौलाना सैय्यद हुसैन मुर्तज़ा, सैय्यद जाफ़र मुर्तज़ा, सैय्यद बाक़िर मुर्तज़ा, सैय्यद आबिद मुर्तज़ा और सैय्यद काज़िम मुर्तज़ा

मज़हबी  दुनया में आपने अकाबिर ओलमा से कस्बे फ़ैज़ किया जिनमें से आयतुल्लाह अबरार हुसैन पार्वी, अल्लामा इबने हसन नोनहरवि, मुफ़्ती सैय्यद अहमद अली, अल्लामा सय्यद हामिद हुसैन, ज़हीरुल मिल्लत सय्यद ज़हूर हसन, आयतुल्लाह सय्यद कलबे हुसैन, नासेरुल मिल्लत आयतुल्लाह नासिर हुसैन, आयतुल्लाह सय्यद मोहसिन नवाब और मुफ़्ती सय्यद मोहम्मद अली वगैरा के असमा सरे फेहरिस्त हैं।

आपको आयतुल्लाह सय्यद शहाबुद्दीन नजफ़ी मरअशी, शेख़ मोहम्मद मोहसिन आगा बुज़ुर्ग तेहरानी, सय्यद मोहम्मद मोहसिन लखनवी और दूसरे कई ओलमा ने इजाज़ाते रिवायत मरहमत फरमाए

तालीम से फ़रागत के बाद “रस्तोगी पाठशाला” नामी स्कूल और “शिया कालिज स्कूल” के सेक्शन में उस्ताद रहे, इसी दौरान वो घर पर तफ़सीर वा हदीस, फिक़ह वा कलाम मनतिक़ वा फलसफ़ा और तारीख़ वा अदब का दर्स देते रहे, इसके अलावा अदबी हलक़े में भी मोसूफ़ ने जो मर्तबा हासिल किया वो आपके हमअस्र अफ़राद के लिये क़ाबिले रश्क है।

अदब में गालिबयत के माहिर थे और गालिब की सद साला बरसी के मोक़े पर रूस में होने वाले बैनुल अक़वामी सिमिनार में मोहक़्क़ेक़ीन ने मुत्तफ़ेक़ा ताऊर पर  “फ़ाज़िल लखनवी” के मुसतनदतरीन माहिर होने की सनद दी और उनके कामों को लोगों के लिये नमूना क़रार दिया।

आपने तबलीग के सिलसिले से इराक़, शाम, लबनान, सऊदी अरब, बंगला देश, और अमरीका के सफ़र किये थे, मोसूफ़ किताबों के आशिक़ थे और किताबों के साथ ज़िंदगी गुज़ारते थे।

आपने घर मे ही बीस हज़ार किताबों पर मुशतमिल एक कुतुबखाना क़ायम किया था जिसको लखनऊ मे रहते हुए “अल मकतबतुल मजलिसया” के नाम से उमूमी कुतुबखाना क़रार दिया, इस कुतुबखाने की एक खुसुसियत ये थी के इसमें हफ़्ते या महीने में एक इल्मी गुफ़्तगू ज़रूर होती थी जिसमें अहले इल्म शिरकत करते थे,

आपको तसनीफ़ो तालीफ़ से बहुत ज़्यादा दिलचस्पी थी चुनांचे इतनी मसरूफ़यात के बावजूद तक़रीबन ३०० किताबें तालीफ़ कीं जिनमें से २२५ के नाम मालूम हैं, १०० किताबें छपी हैं,तक़रीबन १०२ ग़ैर मतबूआ हैं और २३ मफ़कूद हैं,

बाक़ी का हाल नहीं मालूम, जवानी के सिन में क़लम उठा लिया था और दीनी, तारीख़ी, और अदबी मोज़ूआत पर मुताअद्दिद किताबें और मक़ालात लिखे, १६ साल की उम्र में किताब “रियाज़ुल मसाइल” पर इजतेहादी हाशये लगाये और “मआलेमुल उसूल” का उर्दू में शरह के साथ तरजमा किया, उन दो किताबों की वजह से आपको असातेज़ा की जानिब से दादो तहसीन से नवाज़ा गया, तज़किरा ए औलमा के मोज़ू पर किताब मतलए अनवार तहरीर की जिसके सबब आपको एक ख़ास शोहरत हासिल हुई

इसके अलावा आपके आसार में से: तफ़सीरे मुरतज़वी, तारीखे तदवीने हदीस वा शिया मोहद्देसीन, खतीबे क़ुरान, जिहादे हुसैनी, तज़किरा ए रियाज़ुल फिरदोस, इंतेखाबे आतिश, इंतेखाबे ज़ोक़, इस्लाम में ख़वातीन के हुक़ूक़ और औसाफ़ुल हदीस के असमा सरे फेहरिस्त हैं, इन किताबों के अलावा आपके बेशुमार तहक़ीक़ी मक़ाले, इलमी, अदबी और मज़हबी रिसालों में तबा हुए और अरबी इनसाइक्लोपीडया में मोजूद हैं तसनीफ़ो तालीफ़ का ये सिलसिला ज़िंदगी की आखिरी साँसो तक जारी वा सारी रहा

तक़सीमे हिन्द के बाद १९५० ई॰ पाकिस्तान तशरीफ़ ले गए और साकिने लाहोर हो गये वहाँ जाकर भी अपनी सियासी, इजतेमाई, इलमी और दीनी फ़आलियत को जारी वा सारी रखा, वहाँ जाकर दीनी मदारिस की ज़रूरत महसूस की, चुनांचे जामे उल मुंतज़र लाहोर, जामिया इमामया और मदरसतुल वाईज़ीन के क़याम में नुमायां किरदार अदा किया इसके अलावा इमामया मिशन लाहोर, इदारा ए मआरिफ़े इस्लाम पाकिस्तान वा हुसैनी मिशन रावलपिंडी की तासीस वा तोसी में अहम किरदार अदा किया, लाहौर में आपका एक कुतुबखाना है जिसमें तक़रीबन ५५०० छपी हुई कुतुब और ३०० मखतूतात मोजूद हैं|
मज़कूरा सिफ़ात की हमिल शख्सियत “मेवा अस्पताल लाहौर” में अपनी ज़िंदगी के आखिरी अय्याम में अपनी आखिरी तसनीफ़ यानि तफ़सीरे मूर्तज़वी लिखने में मशगूल थी और मोसूफ़ इसी हाल में २७ जिलहिज १४०७ हिजरी मुताबिक़ २३ अगस्त १९८७ ई॰ में दारे फ़ानी से रुख़सत हो गये ,आपकी वफ़ात की ख़बर पाकिस्तान के रेड्यो और टेलीविज़न से नश्र की गयी पाकिस्तान और दिगर ममालिक की इलमी, दीनी और सियासी शख्सियात यहा तक की पाकिस्तान के रईसे जमहूर और वज़ीरे आज़म ने भी ताज़ियति पैगाम इरसाल किये

नमाज़े जनाज़ा में बेशुमार शिया सुन्नी औलमा और कसीर तादाद में अवाम ने शिरकत की शिया सुन्नी दोनों तरीक़ों के मुताबिक़ नमाज़ अदा की गयी, नमाज़े जनाज़ा के बाद हज़ार आहो बुका के हमराह जनाज़े को “शाह कमाल लाहौर” नामी क़ब्रिस्तान में सुपुर्दे ख़ाक कर दिया गया| 

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-५ पेज-१९९दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०२०ईस्वी।         

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