۳۱ اردیبهشت ۱۴۰۳ |۱۲ ذیقعدهٔ ۱۴۴۵ | May 20, 2024
अल्लामा सय्यद मोहम्मद देहलवी

हौज़ा / पेशकश:  दनिश नामा ए इस्लाम, इन्टरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, खतीबे आज़म मोलाना अलहाज सय्यद मोहम्मद देहलवी सन १३१७ हिजरी मुताबिक़ १८९९ ई॰ में सरज़मीने “पित्तनहेड़ी ज़िला बिजनोर” मे पैदा हुए आपके वालिद “मोलाना आफ़ताब हुसैन” थे जो “पंजा शरीफ देहली” में मदफ़ून हैं, आपके वालिद “एंगलों अरेबिक स्कूल देहली” में उस्ताद थे, इस लिए सय्यद मोहम्मद साहब की नशो नुमा देहली मे हुई, अभी चंद साल ही गुज़रे थे के १३२१ हिजरी में वालिद का इंतेक़ाल हो गया,मोलाना सय्यद मोहम्मद की वालेदा ने “मोलाना आफ़ताब हुसैन” के चेहलुम के बाद आपको तालीम के लिए “मोलाना क़ारी अब्बास हुसैन रिजवी जार्चवी” के सुपुर्द कर दिया, एक साल के बाद वालेदा भी आपको तन्हा छोड़कर इस दुनया से रुख़सत हो गईं।

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अपनी माँ का गम मनाने के बाद आप देहली वापस आ गये यहाँ आपके वालिद के चाहने वालों ओर आपको आपके वालिद का जानशीन देखने वालों की तमन्ना करने वालों में “मोलाना मिर्ज़ा मोहम्मद हसन” ओर “मोलाना सय्यद मोहम्मद हारून उस्तादे अरेबिक स्कूल” ने हिदायतुन नहव, वा काफ़या वगैरा पढ़ाकर लखनऊ के लिये आमादा किया ओर सय्यद मोहम्मद बाक़िर अम्बालवी ने “मदर्सए नाज़मिया लखनऊ” में दाखला कराया, चार साल गुज़रे थे के मोलवी मक़बूल अहमद देहलवी ने रामपुर बुला लिया, तक़रीबन सन १९१२ ई॰ में “मदर्सए आलिया रामपुर” में “शेख़ मोहम्मद तय्यब मक्की” से मोलवी फ़ाज़िल का निसाब पढ़कर “ पंजाब युनिवेर्सिटी” से सनदे इम्तेयाज़ हासिल की, नवाब इमराऊ मिर्ज़ा इसी दिन के मुंतज़िर थे, लिहाज़ा उन्होने अरेबिक स्कूल में उस्ताद के हैसियत से जगह दिलवा दी।

आपके असातेज़ा में : क़ारी सय्यद अब्बास हुसैन रिजवी जार्चवी, आयतुल्लाह नजमुल हसन रिज़वी, मोलाना हारून ज़ंगीपुरी, मोलाना मक़बूल अहमद देहलवी, शेख़ मोहम्मद तय्यब मक्की ओर मोलाना मिर्ज़ा मोहम्मद हसन के अस्मा सरे फेहरिस्त हैं।

मोलाना सय्यद मोहम्मद ने इतमेनान की सांस लेते ही, खुदा दाद ज़हानत, ज़कावत ओर खिताबत का मुज़ाहेरा शुरू किया, दिल्ली वालों ने यतीमे मोलाना आफ़ताब हुसैन को पलको पर बिठाया, उनकी तक़रीर में लोगों को वही लुत्फ़ हासिल हुआ जो आपके वालिद की तक़रीर में हासिल होता था, चुनांचे एक बहुत बड़ी मजलिस में सय्यद मुनीर देहलवी ने मजमे के दरमियान खड़े होकर कहा :

ज़ाहिरो बातिन मे हैं मिसले मसीलो आफ़ताब = मोलवी सय्यद मोहम्मद हैं अदीले आफ़ताब

चूम कर उनके क़दम कहती है दिल्ली की ज़मीं=सच कहा है आफ़ताब आमद दलीले आफ़ताब

मैदाने खिताबत में दिन बा दिन तरक़्क़ी की, दिल लगाकर मुतालेआ किया ओर मेहनते शाक़्क़ा से तरक़्क़ी हासिल की, आपको किताबों का बड़ा शोक़ था शुरू से ही पढ़ने के आदी थे ज़बान रवा  ओर तर्ज़े खिताब दिलकश था, आपकी तक़रीर में शगुफ्तगी, ज़बान ओर सादगी कुछ इस तरह थी के अवाम अश अश कर उठते थे, सीरतुन नबी के जलसे हों या मोहर्रम की मजलिसे, उनके सामेईन  हमेशा मुतमइन ओर ख़ुश जाते थे, घंटो तक़रीर करते मगर सुनने वाले मुस्तक़िल हमा तन गोश रहते, वो इल्मी मज़ामीन को आम फ़हम ज़बान में भी अदा करने पर क़ादिर थे ओर फलसफ़याना ज़ोक़ रखने वालों के मजमे में सख्त मतालिब को आबे रवा बना देते थे।

दिल्ली के एक अज़ीम इजतेमा में बुलबुले हिन्द “सरोजनी नाएडू” की तक़रीर के बाद मोलाना सय्यद मोहम्मद ने कुछ इस अंदाज़ में तक़रीर की के उस तक़रीर के सुनने के बाद “ख्वाजा हसन निज़ामी” के अख़बार “ मुनादी” ने आपको ख़तीबे आज़म से याद किया, मोलाना ने दकन से कश्मीर ओर कराची से ढाका तक फ़िर अफ्रीक़ा, ईरान वा इराक़ में अपनी तक़रीर का सिक्का जमाया ओर अपनी शख्सियत का लोहा मनवाया, सन १९३९ई॰ ओर सन १९५१ ई॰ में ज़ियाराते इराक़ ओर सन १९६६ई॰ में हज से मुशर्रफ़ हुए।

आप एक सखी, फ़आल ओर हमदर्द इंसान थे, क़ोम की फ़लाह वा बहबूद, अवाम की ख़ुशहाली ओर इसलाह के लिये बहुत से तामीरी काम किये मसलन मुज़फ्फ़र नगर में शिया हास्टल की तासीस, झंग में यतीमखाने की तासीस, देहली में शिया हाल, शिया यतीम खाना दरगाह पंजा शरीफ़ की सरपरस्ती की ओर शिया ओक़ाफ़ क़ायम किया मुंबई में ख़ूबसूरत ओर बड़ा हाल “केसर बाग” जैसी तामीर आपकी पुर खुलूस जिद्दों जहद का नतीजा है, आपने रामपुर में तफ़सीरे क़ुराने मजीद के लिए एक बहुत बड़े बोर्ड की तशकील दी उस बोर्ड में अभी पाँच सो सफ़हात का मुक़दमा ही मुकम्मल हुआ था के हिंदुस्तान दो हिस्सो में तक़सीम हो गया ओर उनके दुश्मनों ने रामपुर में उनका कुतुबखाना ओर घर जला दिया उसके बाद वो पाकिस्तान चले गये वहाँ जाने के बाद भी इल्मी ओर समाजी खिदमात के सिलसिले को जारी वा सारी रखा।

इतनी मसरूफ़यात के बावजूद आपने तसनीफ़ो तालीफ़ में भी नुमाया किरदार अदा किया, उनके आसार में नूरुल अस्र, मुक़दमए तफ़सीरे क़ुरान जो पाँच सो सफ़हात पर मुशतमिल था मगर तक़सीमे मुल्क के वक़्त ज़ाया हो गया, तर्जुमए मक़तले अबी मखनफ़, रसूल ओर उनके अहलेबैत, मोजेज़ाते आइम्मा अतहार ओर सो डाईरियो पर मुशतमिल तहक़ीक़ी मज़ामीन लिखे जो अभी तक छप नहीं सके।

आखिरकार ये इलमो फज़्ल का आफ़ताब दिल की बीमारी में मुबतला होकर २९ जमदियुस्सानी सन १३९१ हिजरी मुताबिक़ २० अगस्त सन १९७१ई॰ में सरज़मीने कराची पर गुरूब हो गया, जनाज़े में कसीर तादाद ने शिरकत की, नमाज़े जनाज़ा के बाद मोमेनीन की हज़ार आहो बुका के हमराह शहरे कराची में मोजूद  “ बागे खुरासान” नामी क़ब्रिस्तान में सुपुर्दे ख़ाक कर दिया गया, तमाम सियासी, मज़हबी रहनुमाओ ने इज़हारे ताज़ियत किया अख़बार ने इदारये लिखे ओर मोलाना क़ायम रज़ा “ नसीम अमरोहवी” ने कुछ इस तरह तारीखे वफ़ात रकम की

शमे खामोशे ज़बाने आगही की क़ब्र है

पीरये एहसासे फ़रजे मनसबी की क़ब्र है

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़ : मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-१ पेज-४४२दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०१९ ईस्वी।

       

    

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