۱۵ تیر ۱۴۰۳ |۲۸ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 5, 2024
अल्लामा मुजतबा हसन कामुपुरी

हौज़ा / पेशकश: दानिशनामा इस्लाम, इंटरनेशनल नूरमाइक्रो फिल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद गाफ़िर रिज़वी छोलसी और मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फ़ंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार,अल्लामा मुजतबा हसन कामुपुरी सन 1331हिजरी बामुताबिक़ सन 1913 ई॰ में सरज़मीने कामुपुर ज़िला गाज़ीपुर पर पैदा हुए आपके वालिद जनाब मोहम्मद नज़ीर साहब अपने क़बीले के मोअज़्ज़ज़ व मुकर्रम इंसान थे।

अल्लामा ने इबतेदाई तालीम मऊ और बनारस में तजरबेकार असातेज़ा के ज़ेरे साया हासिल की, उसके बाद जामिया नाज़मिया और फिर जामिया सुलतानया में कस्बे फ़ैज़ किया, आप साल भर में दो इम्तेहान देते थे, इलाहबाद और लखनऊ बोर्ड से अरबी, फ़ारसी और उर्दू की असनाद भी हासिल कीं, सन 1931 ई॰ में जामिया सुलतानया से सदरुल अफ़ाज़िल की सनद दरयाफ्त की, मोसूफ़ के असातेज़ा में से मुफ़्ती मोहम्मद अली जज़ाएरी, हादीयुल मिल्लत मौलाना सय्यद मोहम्मद हादी, मौलाना मोहम्मद रज़ा फ़लसफ़ी, मौलाना आलिम हुसैन और मौलाना सिब्ते हसन वगैरा के असमाए गिरामी निहायत अहम हैं।

अल्लामा को बचपन से अदबयात और शेरो शायरी की तरफ़ रगबत थी, मोसूफ़ की दिली आरज़ू थी की “अलअज़हर यूनिवर्सिटी मिस्र” और “होज़े इलमिया नजफ़े अशरफ़” में तालीम हासिल करें, यही वजह थी की सन 1935 ई में मिस्र की जानिब आज़िमे सफ़र हुए, इस से पहले अलअज़हर ने किसी भी हिंदुस्तानी तालिबे इल्म को दाखला नहीं दिया था, यूनिवर्सिटी में उनका तहक़ीक़ी मोज़ू “उम्मुल मोमेनीन हज़रत उम्मे सलमा” क़रार पाया, मोसूफ़ ने इस मोज़ू पर बहुत ज़हमत उठाई और 2 हज़ार सफ़हात से ज़्यादा पर मुश्तामिल तहक़ीक़ी मुसव्वेदा असातेज़ा की ख़िदमत में पेश किया, मौलाना 5 साल तक “जामिया अल अज़हर” में कस्बे फ़ैज़ करते रहे,  

 मौलाना के मुसव्वेदे पर असातेज़ा में मुबाहेसा हुआ और फ़लसफ़ा, तारीख़, तरबियत व अखलाक़ में (पी एच डी) की सनद अता की गई, सनद हासिल करने के बाद नजफ़ व कर्बला होते हुए लखनऊ वापस आ गए,

मोसूफ़ का तारीख़ी मुतालेआ मग़रिबी मोहक़्क़ेक़ीन से कम नहीं था आपकी अरबी अदबयात भी बहुत क़वी थी यहाँ तक कि अरबी बिलकुल अरबों जैसी बोलते थे, उनके मज़ामीन और मंज़ूम शाहकार भी देखने में आये हैं।

अल्लामा कामुपुरी ने जवान नस्ल को जदीद उलूम से आशना किया और क़दीम व जदीद फिक्र के इमतेज़ाज में क़दम उठाया, मोसूफ़ मदारिस में क़दीमी तर्ज़ पर तदरीस करने के क़ायल नहीं थे, इसी तरह शिया सुन्नी पेचीदगियों को भी पसंद नहीं फ़रमाते थे।

आपने मदरसे दीनी पटना बिहार, मदरसतुल वाएज़ीन, मदरसे नाज़मिया, लखनऊ यूनिवर्सिटी और अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी में तदरीस के फ़राइज़ अंजाम दिये और हज़ारों शागिर्दों की तरबियत की, मुस्लिम युनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर के उनवान से पहचाना जाता था।

मोसूफ़ हमेशा मज़हबे हक़ की दावत देते थे, उनकी दावत का असर ये हुआ कि मोहम्मद अब्दोहु ने नहजुल बलागा की नश्रो इशाअत में ज़िंदा दिली का सुबूत दिया, मौलाना ने चाहा कि सहीफ़े सज्जादया का मुतालेआ कराया जाये तो आपने मुसाबेक़ा रखा जिसमें बड़े बड़े मुतफ़क्केरीन ने सहीफ़ा ए सज्जादया के मुताअल्लिक़ मज़ामीन क़लमबंद किये।

मौलाना मोसूफ़ मैदाने खिताबत के वो सूरमा थे कि उनकी ज़बान की निकली हुई बात जवानों के दिल में उतर जाती थी और शिया सुन्नी का हर फ़िरक़ा आपकी तक़रीर को पसंद करता था, मौलाना रिफ़ाही उमूर की सफ़े अव्वल में दिखाई देते थे मसलन “जामिया नाज़मिया” की हैअते इल्मी में रुक्न, शिया कान्फ्रेंस के रुक्न, तालीमे इस्लामी हिन्द के रुक्न, मदरसे आलिया रामपुर की हैअते इल्मी के रुक्न, कांग्रेस मशरिक़ये हिन्द, मजल्ला अल वाइज़, मजल्ला सरफ़राज़ और मजल्ला अर रिज़वान के रुक्न थे इनके अलावा दीगर अहम इदारों में भी अहम रुक्न की हैसियत से पहचाने जाते थे, आप 23 साल तक अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी में शोबा ए दीनयात के मुदीर रहे, मुतालए का बहुत ज़्यादा शोक़ था इसी लिये किताबखाना भी बनाया।

बावजूद इसके कि मुसव्वेदे को क़ैदे तहरीर में लाने­ के लिये वक़्त की बहुत क़िल्लत थी लेकिन फ़िर भी आपने बहुत सी किताबें तालीफ़ कीं जिनमें से कर्बला, मक़तले अक़बा बिन समआन, मक़तले ज़हाके मशरिक़ी, मक़तलुस सीवती, मक़तले इबने वाज़ेह याक़ूबी, मक़तले अबुल फ़िदा, मक़तले नासिख, मक़तले हुसैन, मक़तले दयार बकरी, अव्वलीन फ़िल्स्यूफ़े इस्लाम, हकीमे इलाही अली इबने अबी तालिब, निगाही बर अहादीसे फ़ज़ाईले अहलेबैत अ: अज़ फ़तहे मक्का ता कर्बला जंग व इस्लाम और अव्वलीन क़दमे हुसैन मज़लूम वगैरा सरेफ़ेहरिस्त हैं।

मौलाना मोसूफ़ को अल्लाह ने 6 रहमतों और 6 नेमतों से नवाज़ा: आपके बेटे कासिम मुजतबा, फ़ैज़ मुजतबा, हसन मुजतबा , इक़बाल मुजतबा, शमीम काज़िम और शब्बीर काज़िम के नामों से मारूफ़ हुए।

आखिरकार ये आलिम व दानिशवरे दीनी खिदमात अंजाम देने के बाद 27 जमादी युस्सानी, सन 1394 हिजरी बामुताबिक़ 5 जुलाई सन 1974 ई॰ को शहरे अलीगढ़ में रहलत फ़रमा गए और नमाज़े जनाज़ा के बाद अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के क़ब्रिस्तान में सुपुर्दे ख़ाक कर दिया गया।

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-2पेज-399

दानिश नामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, 20211

ईस्वी।

टैग्स

कमेंट

You are replying to: .