۱۵ تیر ۱۴۰۳ |۲۸ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 5, 2024
मुमताज़ुल औलमा सय्यद मोहम्मद तक़ी

हौज़ा / पेशकश: दानिशनामा इस्लाम, इंटरनेशनल नूरमाइक्रो फिल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद गाफ़िर रिज़वी छोलसी और मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फ़ंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, फखरूल मुदर्रेसीन, मुमताज़ुल औलमा आयतुल्लाह सय्यद मोहम्मद तक़ी नक़वी सन 1234 हिजरी में शहरे लखनऊ की सरज़मीन पर पैदा हुए, आप आयतुल्लाह सय्यद हुसैन इल्लीयीन मकान के बेटे और गुफ़रानमआब आयतुल्लाह सय्यद दिलदार अली के पोते थे।

आयतुल्लाह मोहम्मद तक़ी खानदाने इजतेहाद के चश्मो चराग थे, बहुत ज़हीन, ज़की, फ़क़ीह, उसूली और बहुत ज़्यादा औसाफ़े हमीदा के मालिक थे, जब मौसूफ़ के वालिद की रहलत हुई तो आप ही उनके जानशीन क़रार पाए, अवध के बादशाह अमजद अली ने ‘मुमताज़ुल औलमा” के ख़िताब से नवाज़ा, आप मदरसे शाही लखनऊ में मुंतज़िम व मोअल्लिम के उनवान से मुंतखब किए गये और “फखरूलमुदर्रेसीन” का लक़ब हासिल हुआ।

अल्लामा मोहम्मद तक़ी ने इब्तेदाई तालीम अपने ख़ानवादे के औलमा से हासिल की फ़िर सय्यदुल औलमा सय्यद हुसैन, सुल्तानुल औलमा सय्यद मोहम्मद, मुफ़्ती सय्यद अहमद अली, मुफ़्ती मोहम्मद अब्बास, मौलवी सय्यद अली भीकपुरी और मौलवी सय्यद अजमल अली मोहम्मदाबादी वगैरा से कस्बे फ़ैज़ किया, सन 1262 हिजरी में सुल्तानुल औलमा सय्यद मोहम्मद, सय्यदुल औलमा सय्यद हुसैन और साहिबे जवाहिर अल्लामा मोहम्म्द हसन ने इजाज़ाते इजतेहाद मरहमत फ़रमाए, आपके दफ़तरे इस्तफ़तआत से लोगों के मसाइल के जवाबात दिये जाते थे।

मुमताज़ुल औलमा अपने चचा “ सुलतानुल औलमा सय्यद मोहम्मद” की ज़िन्दगी में ही मस्जिदे शाही में नमाज़े जुमा की इमामत करते थे, मोसूफ़ की तारीफ़ में मुताअद्दिदद मोअर्रेखीन सनाखाँ नज़र आते हैं, तज़किरतुल औलमा में है कि आप कमसिनी के बावजूद अपने मआसरीन के दरमियान अफ़ज़ल व अकमल थे, फ़िक़ह व उसूल के ऐतबार से ओलमाए इराक़ के मसावी थे, इल्मी ऐतबार से आलम, तक़वे के ऐतबार से अतक़ा थे, आप बचपन के आलम में भी लहवो लाब से दूर थे।

अल्लामा पाबंदिये वक़्त के मामले में बहुत शदीद थे, आपने मस्जिद और इमामबाड़े की तामीर कराई और आशेक़ाने उलूम के लिये किताबखाना भी बनाया जो वक़्फ़ बा औलाद है ये किताबखाना अपनी मिसाल आप है, आपकी अज़मत और जलालत का ये आलम था कि आप अदालत से मुसतसना थे यानी अगर कोई मसअला दरपेश होता आपको अदालत जाने की ज़रुरत पेश नहीं आती थी बल्कि दरबार में ही आपके लिये खुसूसि कुर्सी रहती थी आप अहले इल्म और तुल्लाब का ख़याल रखते थे मोसूफ़ ने चंद घर तय्यार किये और वो तुल्लाबे दीनी के लिये वक़्फ़ कर दिये।

मुमताज़ुल औलमा चौक में तहसीन अली खाँ की मस्जिद में नमाज़े जमाअत पढ़ाते थे, मस्जिद का हुजरा और दिगर जाएदाद जो मस्जिद से मुताअल्लिक़ थी, सबके मुतवल्ली आप ही थे।

मुमताज़ुल औलमा ने बेशुमार शागिर्दों की तरबियत फरमाई जिनमें से : इमादुल औलमा आयतुल्लाह सय्यद मोहम्म्द मुसतफ़ा मारूफ़ बा मीर आगा, आयतुल्लाह अबुल हसन अब्बू, मौलवी आबिद हुसैन सहारनपुरी, मौलवी सय्यद ग़ुलाम मोहम्मद, मौलवी इब्राहीम हुसैन पानीपती, मौलवी सय्यद अम्मार अली सोनीपती, ग़ुलाम हसनैन कंतूरी, मौलवी अली मिया कामिल, नवाब अली जाह लखनवी, मौलवी मुनीब ख़ान रामपुरी, मौलवी सय्यद करामत हुसैन कंतूरी और अली अकबर बिन सुलतानुल औलमा वगैरा के नाम लिये जा सकते हैं, आपके बहुत से शागिर्द दर्जए इजतेहाद पर फ़ाइज़ हुए और हिंदुस्तान की सरज़मीन पर तबलीगे दीन में मसरूफ़ रहे।

आपके इजतेहाद का ये आलम था कि सन 1873 ईस्वी की बात है एक शख़्स ईरान से हिंदुस्तान आया जिसका दावा था कि मैं शमसुल औलमा हूँ उसने हिंदुस्तान में मुखतलिफ़ ज़िलों का सफ़र किया और अपने ज़ामे नाक़िस में ये सोच रहा था कि हिंदुस्तान में कोई आलिम नहीं है लेकिन जब लखनऊ पोंहचा और नाज़मिया में क़याम किया तो वहाँ आयतुल्लाह मोहम्मद तक़ी से मुलाक़ात हुई, उसने फ़िक़ही मसअला छेड़ा तो अल्लामा ने उसका मुँहतोड़ जवाब दिया जिससे वो हैरान रह गया।

मोसूफ़ ने बहुत ज़्यादा किताबें तालीफ़ फरमाईं जिनमें से: इर्शादुल मोमेनीन, इर्शादुल मुब्तदेईन, शरहे मुक़्द्देमातुल हदाइक़, रिसाला ए इमामत, नुख्बतुद दावात, हदीक़तुल वाएज़ीन, नुज़हतुल वाएज़ीन यनाबी उल मवद्दत, हिदायतुल मुस्तरशेदीन, अलइरशाद, अलमवारीस, अलफ़राईदुल बहिया, मंहजुत ताआत, मुंतखबुल आसार और मुर्शेदुल मोमेनीन वगैरा के नाम सरे फ़ेहरिस्त हैं,

मोसूफ़ को ख़ुदावंदे आलम ने मुताअद्दिद रहमतों और नेमतों से नवाज़ा: पहली ज़ोजा से तीन बेटे और दो बेटियां आलमे वुजूद की ज़ीनत क़रार पाए, आपके फ़रज़नदों को ज़माने ने सय्यदुल औलमा मोहम्मद इब्राहीम, सय्यद हसन और सय्यद अली के नामों से पहचाना, दूसरी ज़ोजात से दूसरी नेमतों के असमा भी नज़र आते हैं जैसे सय्यद अबूज़र, हाजी सय्यद यूनुस और सय्यद जाबिर उनके अलावा चंद बेटयों का ज़िक्र भी मिलता है जो औलमा के ख़ानदानों में ब्याही गईं।  

आख़िरकार सन 1289 हिजरी में वबाए हैज़ा पूरी फिज़ा ए लखनऊ पर मुसल्लत हो गई, मोसूफ़ की ज़ईफ़ी उस वबा की ताब ना ल सकी जिसके नतीजे में बुलबुले हज़ार दास्तान हमेशा हमेशा के लिये जहाने खामोशा का राही बन गया, बेशुमार मजमे की मोजूदगी में नमाज़े जनाज़ा अदा की गई और “इमामबारगाह जन्नत मआब” में आगोशे क़ब्र की ज़ीनत बन गया, अल्लामा ने अपनी रहलत के बाद “जन्नतमआब” जैसा गिराक़द्र ख़िताब पाया, बड़े बड़े औलमा व शोअरा ने आपकी तारीखे वफ़ात नज़्म की जो उनकी जानिब से मोसूफ़ की अज़ीम शख्सियत के फ़िराक़ में बेताबी का शाहकार है।     

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-2पेज-299

 दानिश नामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, 2021

ईस्वी।

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