हौज़ा न्यूज़ एजेंसी
بسم الله الرحـــمن الرحــــیم बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम
وَ إِذْ أَخَذَ ٱللَّهُ مِيثَـٰقَ ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ ٱلْكِتَـٰبَ لَتُبَيِّنُنَّهُۥ لِلنَّاسِ وَلَا تَكْتُمُونَهُۥ فَنَبَذُوهُ وَرَآءَ ظُهُورِهِمْ وَٱشْتَرَوْا۟ بِهِۦ ثَمَنًۭا قَلِيلًۭا ۖ فَبِئْسَ مَا يَشْتَرُونَ व इज़ अख़्ज़ल्लाहो मीसाकल लज़ीना ऊतुल किताबा लेतोबय्यनुन्नहु लिन्नासे वला तकतोमूनहू फ़नबज़ुहो वराअ ज़ोहूरेहिम वश्तरो बेहि समानन क़लीलन फ़बेअस् मा यशतरून (आले-इमरान 187)
अनुवाद: और उस वक़्त को याद करो जब ख़ुदा ने अहले किताब के साथ अहद किया था कि वह इस किताब को लोगों को ज़रूर समझाएँगे और छिपाएँगे नहीं, लेकिन उन्होंने इस अहद को छोड़ दिया और इसके बदले में दुनिया का छोटापन हासिल किया। वे कितना ख़राब सौदा कर रहे हैं।
विषय:
यह आयत हमें किताब वालों (यहूदियों और ईसाइयों) के साथ अल्लाह की वाचा की याद दिलाती है कि वे अल्लाह के आदेशों और शब्दों को छिपाने के बजाय लोगों को समझाएंगे।
पृष्ठभूमि:
यह आयत किताब के उन लोगों से संबंधित है जिन्हें अल्लाह ने किताब (तोराह और इंजील) दी और उन्हें लोगों को अल्लाह के आदेशों और शिक्षाओं को स्पष्ट करने की जिम्मेदारी सौंपी। लेकिन उन्होंने अपने निजी हितों के लिए तथ्यों को छिपाया और अल्लाह की आज्ञाओं की अनदेखी की।
तफसीर:
इस आयत में अल्लाह तआला ने किताब वालों के कृत्यों की निंदा की है कि उन्होंने अल्लाह की किताब को छुपाया और उसके बदले में सांसारिक लाभ प्राप्त किये। यह श्लोक संदेश देता है कि ज्ञान को छुपाना और उसका निजी लाभ के लिए उपयोग करना बहुत बुरी आदत है। मुसलमानों को भी सलाह दी गई है कि वे लोगों को सच्चाई समझाएं और धर्म की सही शिक्षाएं बताएं।
परिणाम:
यह आयत इस बात पर जोर देती है कि अल्लाह की आज्ञाओं और ज्ञान को छिपाना अत्यधिक निंदनीय है और इससे सांसारिक लाभों के बदले में अल्लाह की वाचा को अस्वीकार किया जा सकता है। इस आयत में मुसलमानों के लिए यह भी सीख है कि वे धर्म की शिक्षाओं को पूरी ईमानदारी के साथ दूसरों तक पहुंचाएं और उसे छुपाने या कमतर करने से बचें।
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तफ़सीर राहनुमा, सूर ए आले-इमरान