۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
इत्रे क़ुरआन

हौज़ा/ इस कविता का निष्कर्ष है कि चमत्कारों और संकेतों की मांग सच्ची आस्था की आवश्यकता नहीं है, बल्कि अक्सर यह हठ और हठ के कारण होती है। आस्था का संबंध हृदय की पवित्रता और सत्य को स्वीकार करने से है, न कि बाहरी चमत्कारों पर जोर देने से। यह आयत मुसलमानों को अपने विश्वास को संदेह से मुक्त रखने और पैगंबरों की शिक्षाओं पर पूरा विश्वास रखने की सलाह भी देती है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم    बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम

الَّذِينَ قَالُوا إِنَّ اللّهَ عَهِدَ إِلَيْنَا أَلاَّ نُؤْمِنَ لِرَسُولٍ حَتَّى يَأْتِيَنَا بِقُرْبَانٍ تَأْكُلُهُ النَّارُ قُلْ قَدْ جَاءَكُمْ رُسُلٌ مِّن قَبْلِي بِالْبَيِّنَاتِ وَبِالَّذِي قُلْتُمْ فَلِمَ قَتَلْتُمُوهُمْ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ.  अल लज़ीना क़ालू इन्नल्लाहा अहेद इलैना इल्ला नूमेन लेरसूलिन हत्ता यातहना बेख़ुरबानिन ताकोलोहून्नारो क़ुल कद जाअकुम रोसोलुम मिन कब्ली बिल बय्येनात वबिल्लज़ी क़ुलतुम फलेमा कतलतोमूहुम इन कुंतुम सादेक़ीन (आले-इमरान 183)

अनुवाद: ये वो लोग हैं जो कहते हैं कि ख़ुदा ने हम से अहद लिया है कि हम किसी पैग़म्बर पर तब तक ईमान नहीं लाएँगे जब तक वह आग से भस्म होने वाला बलिदान न पेश कर दे। तुम्हें कहना चाहिए कि मुझसे पहले भी तुम्हारे पास बहुत से सन्देष्टा स्पष्ट निशानियाँ लेकर आये थे और वह बलिदान भी लेकर आये थे जिसका तुम उल्लेख करते हो, फिर यदि तुम अपने दावे पर सच्चे हो तो तुमने उन्हें क्यों क़त्ल किया?

विषय:

यह आयत उन यहूदियों के बारे में सामने आई थी जिन्होंने पैगंबर मुहम्मद (स) की नबूवत को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था और तर्क दिया था कि अल्लाह ने उनके साथ एक वाचा बनाई थी कि वे किसी पैगंबर पर तब तक विश्वास नहीं करेंगे जब तक कि वह कोई चमत्कार न दिखा दे उसके द्वारा स्वर्ग की आग से भस्म किया जाना चाहिए।

पृष्ठभूमि:

यह आयत मदीना के यहूदियों के रवैये और उनके इनकार का वर्णन करती है। यहूदी दावा करते थे कि उनके पूर्वजों ने हज़रत मूसा (अ) और अन्य पैगंबरों पर यह शर्त लगाई थी कि जब तक उन्हें स्वर्गीय संकेत नहीं दिखाए जाएंगे, वे उन पर विश्वास नहीं करेंगे। इस कारण से, उन्होंने अल्लाह के रसूल (स) को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और मांग की कि वह भी एक समान संकेत पेश करें।

तफसीर:

इस आयत में अल्लाह तआला यहूदियों की बेबुनियाद शर्त को खारिज करते हैं और कहते हैं कि अगर तुमने जो कहा वह सच था, तो तुमने उन नबियों को क्यों मार डाला जिन्होंने तुम्हारी मांग के अनुसार निशानियाँ दिखाईं। हक़ीक़त यह है कि उनकी माँग महज़ एक बहाना थी और उनके दिलों में अविश्वास और ज़िद थी। पवित्र क़ुरआन ने इस आयत में यह भी स्पष्ट कर दिया कि चमत्कार और संकेत दिखाने के बावजूद इनकार करने वालों का अंत हमेशा विनाश और अपमान होता है। . यहूदियों की यह हठधर्मिता और जिद अपने कार्यों को सुधारने के स्थान पर पैगम्बरों का विरोध करने और उन्हें मारने तक पहुंच गयी थी।

परिणाम:

इस आयत से यह निष्कर्ष निकलता है कि चमत्कारों और संकेतों की मांग आस्था की वास्तविक मांग नहीं है, बल्कि अक्सर यह हठ और हठ के कारण होती है। आस्था का संबंध हृदय की पवित्रता और सत्य को स्वीकार करने से है, न कि बाहरी चमत्कारों पर जोर देने से। यह आयत मुसलमानों को अपने विश्वास को संदेह से मुक्त रखने और पैगंबरों की शिक्षाओं पर पूरा विश्वास रखने की सलाह भी देती है।

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तफ़सीर राहनुमा, सूर ए आले-इमरान

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