हौज़ा न्यूज़ एजेंसी
بسم الله الرحـــمن الرحــــیم बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम
وَدُّوا لَوْ تَكْفُرُونَ كَمَا كَفَرُوا فَتَكُونُونَ سَوَاءً ۖ فَلَا تَتَّخِذُوا مِنْهُمْ أَوْلِيَاءَ حَتَّىٰ يُهَاجِرُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ ۚ فَإِنْ تَوَلَّوْا فَخُذُوهُمْ وَاقْتُلُوهُمْ حَيْثُ وَجَدْتُمُوهُمْ ۖ وَلَا تَتَّخِذُوا مِنْهُمْ وَلِيًّا وَلَا نَصِيرًا. वद्दू लो तकफ़ोरूना कमा कफ़रू फ़तकूनूना सवाउन फ़ला तत्तख़ेज़ू मिन्हुम औलेसाआ हत्ता योहजेरू फ़ी सबीलिल्लाहे फ़इन तवल्लौ फ़ख़ोजूहुम वक्तोलोहुम हयसो वजदतोमूहुम वला तत्तख़ेजू मिन्हुम वलीय्यन वला नसीरा (नेसा 89)
अनुवाद: ये मुनाफ़िक़ चाहते हैं कि तुम भी उनकी तरह अविश्वासी बन जाओ और उनके बराबर हो जाओ, इसलिए सावधान रहो कि जब तक वे ईश्वर की ओर पलायन न कर लें, तब तक उन्हें अपना मित्र न बनाओ, फिर वे भटक जाएँ, फिर उन्हें गिरफ्तार करो और जहाँ भी पाओ मार डालो उनमें से कोई भी आपका मित्र और सहायक है।
विषय:
मुसलमानों के लिए मुनाफ़िक़ों का आचरण और उनके साथ व्यवहार के नियम
पृष्ठभूमि:
यह आयत सूर ए नेसा की है जो मदीना के मुनाफ़िक़ों के बारे में नाज़िल हुई थी। मदीना के पाखंडियों ने ऊपरी तौर पर तो इस्लाम स्वीकार कर लिया था, लेकिन उनके दिल अविश्वास से भरे हुए थे। उन्होंने मुसलमानों को धोखा देने और उन्हें अपनी ही तरह अविश्वास की स्थिति में लाने की कोशिश की। इस आयत में मुसलमानों को पाखंडियों के व्यवहार से अवगत कराया गया है और उनसे निपटने के सिद्धांतों को परिभाषित किया गया है।
तफ़सीर:
1. अविश्वास की चाहत: पाखंडी लोग चाहते हैं कि मुसलमान भी उनकी तरह अविश्वास करें ताकि दोनों में कोई अंतर न रहे। यह उनकी ईर्ष्या और नफरत की अभिव्यक्ति है.
2. दोस्ती से परहेज: मुसलमानों को चेतावनी दी जाती है कि वे पाखंडियों से तब तक दोस्ती न करें जब तक कि वे पलायन न कर लें और अपना विश्वास साबित न कर दें।
3. सजा का सिद्धांत: यदि वे प्रवास और निष्ठा से इनकार करते हैं और इस्लाम-विरोधी बने रहते हैं, तो मुसलमानों को उन्हें गिरफ्तार करने और यदि आवश्यक हो तो मारने की अनुमति है।
4. मददगार बनाने पर रोक: अल्लाह ने आदेश दिया कि ऐसे पाखंडियों को दोस्त या मददगार नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि वे मुसलमानों के लिए हानिकारक हो सकते हैं।
महत्वपूर्ण बिंदु:
• पाखंडियों की पहचान और उनसे सावधान रहने की जरूरत।
• बिना ईमान और अमल के मुसलमानों की कौम में शामिल होने का कोई मतलब नहीं है।
• इस्लामी समाज की सुरक्षा के लिए सख्त नियम।
• हिजरत को आस्था की प्रामाणिकता की कसौटी के रूप में परिभाषित किया गया था।
परिणाम:
इस आयत में पाखंडियों के मोहक चरित्र और उनके विरुद्ध मुसलमानों की रणनीति को स्पष्ट किया गया है। इस्लामी समाज के अस्तित्व और सुरक्षा के लिए ऐसे व्यक्तियों के साथ संबंधों के नियमों को परिभाषित किया गया है। अल्लाह ताला ने मुसलमानों को ईमान और इस्लामी सिद्धांतों की रक्षा करने और पाखंडियों के प्रलोभनों से बचने के स्पष्ट निर्देश दिए हैं।
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सूर ए नेसा की तफ़सीर
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