सोमवार 27 जनवरी 2025 - 11:16
मोहसिने इस्लाम हज़रत अबू तालिब (अ) के बारे में अल्लाह तआला का क्या नज़रिया हैं

अहलेबैत अलैहिस्सलाम से बुग़ज़ रखने वाले कुछ नाम निहाद मुसलमान अक्सर ये बात बोलते हैं कि हज़रत इमरान इब्ने अब्दुल मुत्तलिब अलैहिस्सलाम (हज़रत अबुतालिब अलैहिस्सलाम) मुसलमान नही बल्कि गैर मुस्लिम थे।आज हम इस ही बात को अल्लाह तआला के कलाम मतलब क़ुरआन पाक की आयतों से साबित करते हैं कि हज़रत अबुतालिब अलैहिस्सलाम सिर्फ़ मुसलमान ही नही बल्कि मोमिन के भी आगे के दर्जे मतलब मुत्तक़ी व परहेज़गार भी थे।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार ,अहलेबैत अलैहिस्सलाम से बुग़ज़ रखने वाले कुछ नाम निहाद मुसलमान अक्सर ये बात बोलते हैं कि हज़रत इमरान इब्ने अब्दुल मुत्तलिब अलैहिस्सलाम (हज़रत अबुतालिब अलैहिस्सलाम) मुसलमान नही बल्कि गैर मुस्लिम थे।आज हम इस ही बात को अल्लाह तआला के कलाम मतलब क़ुरआन पाक की आयतों से साबित करते हैं कि हज़रत अबुतालिब अलैहिस्सलाम सिर्फ़ मुसलमान ही नही बल्कि मोमिन के भी आगे के दर्जे मतलब मुत्तक़ी व परहेज़गार भी थे।

बस यहाँ मेरी आप से सिर्फ़ एक ही गुज़ारिश है कि इस पूरी पोस्ट को पढ़ते वक़्त अपने दिमाग़ को खुला रखते हुए अपनी अक़्ल का इस्तेमाल करना है और साथ ही साथ अपने बुग़ज़ का चश्मा भी थोड़ी देर के लिए उतार के साइड में रख देना है।

चलिए बात शुरू करते हैं,ये बात उस वक़्त की है जब अब्रहा नाम के दुश्मने ख़ुदा ने मक्का पर हमला करने और खाना ए ख़ुदा, बैतुल्लाह मतलब काबा को तोड़ने की नीयत से अपनी हाथियों की फ़ौज लेकर निकला।

उस वक़्त मक्का में क़ुरैश के सरदार और बैतुल्लाह (काबा) के मुतवल्ली मतलब काबे के रख रखाव के ज़िम्मेदार रसूलअल्लाह saws के दादा हज़रत अब्दुल मुत्तलिब अलैहिस्सलाम थे।अब्रहा ने हज़रत अब्दुल मुत्तलिब के ऊँटों को अपने क़ब्ज़े में ले लिया तो हज़रत अब्दुल मुत्तलिब अलैहिस्सलाम अपने ऊँटों को छुड़ाने के लिए अब्रहा के पास गए तो उसने हैरत से पूछा कि मुझे तो लगता था कि तुम मेरे पास काबे को बचाने के लिए आओगे क्योंकि तुम उसके ज़िम्मेदार हो ,लेकिन यहाँ तो तुम सिर्फ़ अपने इन मामूली ऊँटों को बचाने आये हो ?

उसके इस सवाल पर हज़रत अब्दुल मुत्तलिब अलैहिस्सलाम ने सिर्फ़ एक जवाब दिया कि में इन ऊँटों का रब (मालिक) हूँ इसलिए में इनको बचाने आया हूँ, और काबे का जो रब है वो काबे को बचाएगा। (लोग तो हज़रत अबुतालिब अलैहिस्सलाम के ईमान के पीछे पड़े हैं,पर यहाँ तो उनके वालिद हज़रत अब्दुल मुत्तलिब अलैहिस्सलाम ने अपने इस जवाब से ये साबित कर दिया कि वो खुद ईमान वाले और अल्लाह पर यकीन रखने वाले थे,जब ही तो उन्होंने ये कहा कि जो काबे का मालिक है वो ही उसे बचाएगा।

फिर वो पूरा वाक़या सबको मालूम है कि किस तरह से अबाबील नाम की छोटी छोटी चिड़ियाओं के ज़रिए अल्लाह ने बड़े बड़े हाथियों के लश्कर को भूसे की तरह मसल दिया था।और खानए काबा को टूटने से बचा लिया था।यहाँ पर कुछ लोग ये सवाल कर सकते हैं कि जब रसूलअल्लाह स.ल. ही नही थे तो फिर उनके दादा को अल्लाह के बारे में कैसे मालूम था ? वो इसलिए मालूम था क्योंकि हज़रत अब्दुल मुत्तलिब अलैहिस्सलाम दीने इब्राहिम के पैरोकार थे।जिसके बारे में अल्लाह ने खुद क़ुरआन में फ़रमाया -

قُلْ صَدَقَ اللَّهُ ۗ فَاتَّبِعُوا مِلَّةَ إِبْرَاهِيمَ حَنِيفًا وَمَا كَانَ مِنَ الْمُشْرِكِينَ

[ अल-ए-इमरान - ९५ ]
(ऐ रसूल) कह दो कि ख़ुदा ने सच फ़रमाया तो अब तुम मिल्लते इबराहीम (इस्लाम) की पैरवी करो जो बातिल से कतरा के चलते थे और मुशरेकीन से न थे।

तो क़ुरआन से ये बात साबित हो गई के जो दीने इब्राहिम अलैहिस्सलाम पर चलता है वो काफ़िर या मुशरिक नही होता,बल्कि अल्लाह को मानने वाला मोमिन ही होता है।अब आगे देखिए...

जब हज़रत अब्दुल मुत्तलिब अलैहिस्सलाम की वफ़ात का वक़्त करीब आया तो उन्होंने बैतुल्लाह मतलब काबे के निगरानी का मुतवल्ली हज़रत अबूतालिब अलैहिस्सलाम को बनाया और साथ ही साथ अपने तमाम बेटों को बुलाया और रसूलअल्लाह saws को भी बुलाया और चूँकि रसूलअल्लाह उस वक़्त बहुत छोटे थे तो हज़रत अब्दुलमुत्तलिब अलैहिस्सलाम ने अपने पोते मतलब रसूलअल्लाह से पूछा कि आप अब मेरे बाद इन सब में से किसकी किफ़ालत में किसकी पनाह में रहना चाहते हैं,तो हुज़ूर ने अपने तमाम चचाओं में से सिर्फ़ हज़रत अबूतालिब अलैहिस्सलाम को ख़ुद के लिए चुना जबकि अल्लाह का क़ुरआन में कलाम देखिए -

لَّا يَتَّخِذِ الْمُؤْمِنُونَ الْكَافِرِينَ أَوْلِيَاءَ مِن دُونِ الْمُؤْمِنِينَ ۖ وَمَن يَفْعَلْ ذَٰلِكَ فَلَيْسَ مِنَ اللَّهِ فِي شَيْءٍ

(अल-ए-इमरान - 28)
मोमिनीन मोमिनीन को छोड़ के काफ़िरों को अपना सरपरस्त न बनाऐं और जो ऐसा करेगा तो उससे ख़ुदा से कुछ सरोकार नहीं

सूरा ए मुबारक आले इमरान की आयत 28 में अल्लाह ख़ुद ये फ़रमा रहा है कि जो ख़ुद मोमिन हो मतलब ईमानवाला हो वो किसी गैर मोमिन या काफ़िर को अपना सरपरस्त न बनाओ, जबकि ऊपर के वाकिए में तो खुद अल्लाह के रसूल saws हज़रत अबूतालिब अलैहिस्सलाम को अपना सरपरस्त बना रहे हैं और वो इसलिए ही हज़रत अबूतालिब अस को चुन रहे हैं क्योंकि अल्लाह का फ़रमान है कि किसी काफ़िर को अपना सरपरस्त न बनाना और वहाँ उस वक़्त उनके चचाओं में हज़रत अबुतालिब अलैहिस्सलाम के अलावा कोई मोमिन नही था इसलिए रसूलअल्लाह ने अपनी सरपरस्ती के लिए एक मोमिन हज़रत अबुतालिब अस को चुना,आख़िर ये कैसे हो सकता है कि रसूलअल्लाह saws ख़ुद ही अल्लाह के हुक्म की मुख़ालिफत कर दें माज़ अल्लाह ?

या तो उम्मत ज़्यादा जानती है या रसूलअल्लाह saws ज़्यादा जानते हैं अबुतालिब अलैहिस्सलाम के बारे में,पता नही किसको ज़्यादा हक़ीक़त मालूम है उनकी ! ख़ैर ...

अब आगे बात करते हैं, में आप की ख़िदमत में एक ऐसी चीज़ पेश करना चाहता हूँ कि उसके बाद तो ये सारा किस्सा ही ख़त्म हो जाएगा कि हज़रत अबुतालिब अलैहिस्सलाम मोमिन थे या नही !

अब फिर में अल्लाह तआला की ही किताब यानी क़ुरआन मजीद जिसमें किसी भी तरह की कमी नही है जिसमे अव्वल से आख़िर तक हर बात का इल्म मौजूद है उसमें से एक आयत पेश करता हूँ, देखिये

وَمَا لَهُمْ أَلَّا يُعَذِّبَهُمُ اللَّهُ وَهُمْ يَصُدُّونَ عَنِ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ وَمَا كَانُوا أَوْلِيَاءَهُ ۚ إِنْ أَوْلِيَاؤُهُ إِلَّا الْمُتَّقُونَ وَلَـٰكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ

(अल-अनफाल - 34)
और जब ये लोग लोगों को मस्जिदुल हराम (ख़ान ए काबा की इबादत) से रोकते है तो फिर उनके लिए कौन सी बात बाक़ी है कि उन पर अज़ाब न नाज़िल करे और ये लोग तो ख़ानाए काबा के मुतवल्ली भी नहीं फिर क्यों रोकते है इसके मुतवल्ली तो सिर्फ परहेज़गार लोग हैं मगर इन काफ़िरों में से बहुतेरे नहीं जानते

सूरा ए अनफाल की आयत नम्बर 34 में अल्लाह तआला फ़रमा रहा है कि जब मक्के के काफ़िर दूसरे मोमिन लोगों को बैतुल्लाह मतलब काबे में इबादत से रोकते हैं तो अब कोनसी बात है कि इन पर अज़ाब नाज़िल न करे, और सबसे बड़ी बात तो ये की *ये जो लोग काबे में इबादत से रोक रहे हैं ये तो काबे के मुतवल्ली (care taker) मतलब वहाँ के ज़िम्मेदार भी नही हैं फिर क्यों रोकते हैं, बल्कि इस काबे के मुतवल्ली तो सिर्फ़ परहेज़गार लोग हैं* मगर इस बात को ये काफ़िर लोग नही जानते।

यहाँ पर एक बात तो अच्छे से समझ में आ गई के काबे के मुतवल्ली जो थे वो सिर्फ़ मुसलमान ही नही बल्कि मोमिन ही नही बल्कि इस से भी एक दर्जा ऊपर यानी मुत्तक़ी (परहेज़गार) के दर्जे पर फ़ाइज़ होते हैं।और दुनिया इस बात को अच्छे से जानती है कि हज़रत अब्दुल मुत्तलिब अस के बाद ख़ान ए काबा के मुतवल्ली हज़रत अबुतालिब अलैहिस्सलाम ही थे उन्ही के पास ख़ान ए काबा की तमाम चाबियाँ मौजूद थीं,तब ही तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम की काबे में विलादत के वक़्त लोग हैरत में थे कि जब काबे की चाबियाँ हज़रत अबुतालिब अलैहिस्सलाम के पास मौजूद थीं तो फिर ये मौला अली की वालिदा के काबे में जाने के वक़्त दीवार क्यों फट गई ??

ख़ैर वो अलग बात है,अब यहाँ क़ुरआन से ही एक और आयत पेश करदूँ,देखिये -

أَلَمْ يَجِدْكَ يَتِيمًا فَآوَىٰ

(अद-धुहा - 6)
क्या उसने (अल्लाह ने) तुम्हें यतीम पाकर (अबू तालिब की) पनाह न दी (ज़रूर दी)

सूरा ए मुबारक धुहा की आयत नम्बर 6 में अल्लाह तआला रसूलअल्लाह saws को मुख़ातिब कर के फ़रमा रहा है कि जब आप यतीम थे तो क्या मेने आपको पनाह नही दी ?? और सबको मालूम है कि रसूलअल्लाह saws को हज़रत अबुतालिब अलैहिस्सलाम के अलावा किसी ने पनाह नही दी बल्कि रसूलअल्लाह के सबसे बड़े मददगार और जाँनिसार हज़रत अबुतालिब ही थे जो रसूलअल्लाह के बिस्तर पर उनकी जगह अपने बेटों को सुला देते थे कि अगर कुफ़्फ़ार उन पर हमला करें तो रसूलअल्लाह की जान बच जाए भले ही खुद के बेटों की जान चली जाए (अल्लाह हो अकबर)

अब यहाँ पर सबसे बड़ा सवाल के क्या मआज़ अल्लाह किसी काफ़िर के अमल को अल्लाह अपना खुदका अमल बता सकता है ? सब यही कहेंगे हरगिज़ नही,क्यों नही ? इसलिए के अगर काफ़िर के अमल को अपना अमल बता दिया तो वो फिर बुरा नही बल्कि अच्छा और सवाब का अमल समझा जाएगा,और करने वाला गुनाहगार नही बल्कि नेक और मोमिन ही समझा जाएगा।

*उम्मीद है कि क़ुरआन से इतने दलाइल देने के बाद अब हर साहिबे अक़्ल को ये बात अच्छे से समझ मे आ गई होगी कि अल्लाह तआला की नज़र में हज़रत अबूतालिब अलैहिस्सलाम सिर्फ़ मुसलमान ही नही बल्कि मोमिन व परहेज़गार भी हैं।जिन्होंने सिर्फ़ ज़बान से चिल्ला चिल्ला के नही बल्कि अपने हर अमल से ख़ुदको मोमिन व परहेज़गार मुसलमान साबित किया।*

आख़िर में कुछ लाइन मोहसिने इस्लाम हज़रत अबुतालिब अलैहिस्सलाम की शान में मुलाहिज़ा फरमाइए -
मै हूँ अबू तालिब मेरी पहचान यही है.!
कहते हो नबुवत जिसे, गोद मे पली है.!
पैदा हुआ घर मे मेरे पयम्बर ए आखिर.!
बेटे की विलादत मेरे काबे मे हुई है.!
घर मे है नबुवत मेरे घर मे है इमामत.!
जो मलिका ए ज़न्नत है बहू मुझको मिली है.!
क्या है मेरा ईमान जाओ पूछो ख़ुदा से.!
बचपन मे रिसालत मेरे सीने पे रही है.!
फतवा तो लगाते हो मगर ये याद रखना.!
गैब से औलाद मेरी सब देख रही है....!

टैग्स

आपकी टिप्पणी

You are replying to: .
captcha