۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
मजलिस

हौज़ा/इमामबाड़ा सिब्तैनाबाद में आयोजित दो रोज़ा मजालिस के सिलसिले की आख़री मजलिस मौलाना कल्बे जवाद नक़वी ने खिताब किया, इस्लामी तालीमात की एहमियत पर भी रोशनी डाली

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,लखनऊ 16 दिसम्बरः पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) की बेटी हज़रत फातिमा ज़हरा (स.अ) की शहादत के मौक़े पर अयातुल्लाह सैय्यद अली खामेनाई के दिल्ली स्थित कार्यालय की ओर से हर साल की तरह इस साल भी इमामबाड़ा सिब्तैनाबाद हज़रतगंज में दो रोज़ा मजालिस का आयोजन हुआ।

इस सिलसिले की पहली मजलिस को मौलाना सै० फ़रीदुल हसन, प्रिंसिपल जामिया नाज़मियां लखनऊ और दूसरी मजलिस को मजलिस-ए-उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना सै० कल्बे जवाद नक़वी ने ख़िताब किया। मजलिस की शुरुआत क़ुरआने मजीद की तिलावत से क़ारी मासूम मेहदी ने की, उसके बाद शायरों ने हज़रत फातिमा ज़हरा (स.अ) की ख़िदमत में नज़राने अक़ीदत पेश किया।

आख़री मजलिस को संबोधित करते हुए मौलाना कल्बे जवाद नक़वी ने कहा कि हज़रत फातिमा ज़हरा (स.अ) का जीवन महिलाओं के लिए सर्वोत्तम आदर्श है। जिस तरह अल्लाह ने अपने रसूल (स.अ.व) को लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए भेजा था, उसी तरह हज़रत फातिमा ज़हरा (स.अ) को भी इंसानों के विकास और मार्गदर्शन के लिए भेजा था।

विशेष रूप से आपका पवित्र चरित्र महिलाओं के लिए एक बेहतरीन उदाहरण है, जिसकी पैरवी निजात की ज़ामिन है। मौलाना ने कहा कि आज के तरक़्क़ी याफ्ता दौर में लोग महिलाओं की आज़ादी और उनके अधिकारों की बात कर रहे हैं और लगातार इसकी मांग कर रहे हैं,

लेकिन अफसोस की बात है कि ऐसे लोग इस्लामी शिक्षाओं पर ग़ौर नहीं करते क्योंकि इस्लाम ने शुरुआत से ही महिलाओं के अधिकारों पर बात की है। मौलाना ने कहा कि इस्लाम महिलाओं को पूरी आज़ादी देता है, मगर यह आज़ादी महिलाओं के लिए खतरनाक साबित न हो,

इसलिए आज़ादी को इस्लामी क़ानून और शिक्षाओं के मुताबिक़ होने का पाबंद बना दिया गया है। मौलाना ने तक़रीर के दौरान हज़रत फातिमा ज़हरा (स.अ) की सीरत पर गुफ़्तुगू करते हुए कहा कि इस दौर में हमारे लिए ज़रूरी है कि हम हज़रत ज़हरा (स.अ) की ज़िन्दगी और उनकी सीरत को अपनों और दूसरों तक पहुंचाएं ताकि बीबी (स.अ) के किरदार के बारे में लोगों को आगाही हो सके।

जब तक हम अपनी मासूम शख्सियतों की शिक्षाओं को दुनिया के सामने पेश नहीं करेंगे, उस वक़्त तक लोगों की राय नहीं बदली जा सकती और उन्हें इस्लामी क़ानून और शिक्षाओं की अफ़ाक़ियत और हमागीरी के बारे में बेदार नहीं किया जा सकता। मजलिस के आख़िर में मौलाना ने हज़रत फातिमा ज़हरा (स.अ) की शहादत के वाक़िये को बयान किया। जिसको सुनकर लोगों ने खूब गिरया किया।

मजलिस में बड़ी तादाद में मोमनीन, छात्रों और ओलेमा ने शिरकत की। निज़ामत के फ़राएज़ अहमद रज़ा बिजनौरी ने अंजाम दिए। इन मजलिसों का आयोजन 'मजलिस-ए-उलेमा-ए-हिंद' द्वारा किया गया।

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