हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, उम्मुल मोमिनीन हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा की दुखद वफ़ात पर क़ुरआन के मुफ़स्सिर अल्लामा सैयद महबूब महदी आबिदी की सदारत में ज़ूम के ज़रिए एक भव्य अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें भारत, ईरान, कुवैत और अमेरिका के प्रसिद्ध उलेमा ने हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा के जीवन पर प्रकाश डाला।
सम्मेलन की शुरुआत बक़ीअ ऑर्गेनाइज़ेशन के संस्थापक मौलाना सैयद महबूब मेंहदी आबिदी के भाषण से हुई उन्होंने हज़रत ख़दीजा (स.ल.) की महानता को दर्शाते हुए कहा कि क़ुरआन में सौ से अधिक आयतें उनकी शान में आई हैं, जो यह साबित करता है कि अल्लाह की नजर में उनकी कितनी उच्च मर्यादा है। उन्होंने सऊदी सरकार को संबोधित करते हुए कहा कि हज़रत ख़दीजा (स.ल.) उम्मुल मोमिनीन हैं और यह अत्यंत अफसोसजनक है कि उनकी क़ब्र आज भी खंडहर बनी हुई है।
शहर क़ुम से मौलाना सैयद मुज़फ्फर मदनी ने क़ुरआन के आधार पर अल्लाह के प्रिय बंदों की क़ब्रों के सम्मान को सिद्ध किया और कहा कि बक़ीअ और जन्नतुल-मअला के पुनर्निर्माण के लिए सभी मुसलमानों को आगे आना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर कब्रों का निर्माण इस्लाम में वर्जित होता, तो पैग़ंबर-ए-इस्लाम (स) इसे रोकते, लेकिन उनका मौन रहना यह दर्शाता है कि यह एक वैध कार्य है।
जौनपुर, यूपी से मौलाना सैयद सफ़दर हुसैन ज़ैदी, संस्थापक एवं प्रबंधक जामिआ इमाम जाफर सादिक़ (अ.स.), ने हज़रत ख़दीजा (स.ल.) के गुणों को उजागर करते हुए कहा कि बक़ीअ में मौजूद अहलुल बैत (अ) की क़ब्रों को अहलुल बैत से शत्रुता के कारण गिराया गया।
उन्होंने कहा कि कुछ शायर यह मानते हैं कि जब इमाम (अ.स.) का ज़ुहूर होगा, तब वे इन गिराए गए रौज़ों का पुनर्निर्माण करेंगे। लेकिन हमें यह सोचना चाहिए कि क्या यह निर्माण इमाम (अ) के आने से पहले नहीं किया जाना चाहिए? ताकि जब वे प्रकट हों, तो हम अपने बनाए हुए रौज़े में उनका स्वागत कर सकें।
रांची, झारखंड से मौलाना सैयद तहज़ीबुल हसन ने अपनी प्रभावशाली तक़रीर में कहा कि पैग़ंबर (स) ने चार महान महिलाओं में हज़रत ख़दीजा (स) को शामिल कर उनकी महानता को दर्शाया है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि 8 शव्वाल को पूरी दुनिया में यौम-ए-सियाह (काला दिवस) के रूप में मनाया जाए और एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया जाए, जिसका विषय हज़रत ख़दीजा (स.ल. का व्यक्तित्व हो।
अमेरिका से मौलाना सैयद नफ़ीस हैदर तक़वी ने कहा कि हज़रत ख़दीजा (स) ने इस्लाम को मज़बूती प्रदान करने में अहम भूमिका निभाई। उनकी कुर्बानियों और योगदान को अल्लाह ने स्वीकार किया, यही कारण है कि सैकड़ों वर्षों बाद भी उनका ज़िक्र हो रहा है। उन्होंने कहा कि जब पैग़ंबर (स.ल.) इस्लाम की तबलीग कर रहे थे तब दुश्मन उन्हें लालच देकर रोकना चाहते थे। वे इस्लाम को ख़त्म करने के लिए धन खर्च कर रहे थे जबकि हज़रत ख़दीजा (स.ल.अपनी पूरी दौलत इस्लाम को बचाने में लगा रही थीं।
कुवैत से मौलाना मिर्ज़ा अस्करी हुसैन ने कहा कि यह एक धार्मिक आंदोलन है, जिसे हमारे उलेमा अपने कंधों पर उठा रहे हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि जब अनैतिक गतिविधियों के केंद्र खुल सकते हैं, तो अहलुल बैत (अ.स.) के पवित्र और पाक रौज़े, जो अल्लाह के चिन्हों में से हैं, क्यों नहीं बनाए जा सकते?
अंत में, पुणे से मौलाना असलम रिज़वी ने सभी उलेमा और ख़ुतबा का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि पैग़ंबर (स.ल.) के बाद बनी उमैया ने अहलुल बैत (अ) के गुणों को छुपाने की पूरी कोशिश की।
हज़रत ख़दीजा (स) की फ़ज़ीलत को भी इसी दुश्मनी के कारण छुपाया गया, क्योंकि वे हज़रत अली (अ) और हज़रत फ़ातिमा (स) से निकट संबंध रखती थीं। उन्होंने आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमुली के कथन को उद्धृत किया कि यदि ईसार को एक इंसानी रूप दिया जाए, तो वह हज़रत ख़दीजा (स.स.) होंगी।
इस कार्यक्रम का संचालन SNN चैनल के एडिटर-इन-चीफ और भारत में बक़ीअ पुनर्निर्माण आंदोलन के एक प्रमुख सदस्य, मौलाना अली अब्बास वफ़ा ने किया।
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