सोमवार 24 मार्च 2025 - 05:30
रोज़े के अहकाम | किस मरीज पर रोज़े की क़ज़ा वाजिब नहीं है

हौज़ा / फ़िक़्ह और शरीयत के प्रोफेसर हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन वहीदपुर ने रमजान के पवित्र महीने के अहकाम की व्याख्या की है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, धार्मिक विद्वान हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन वहीदपुर ने रमजान के पवित्र महीने के आगमन के अवसर पर धार्मिक नियमों की व्याख्या की है। शरिया मुद्दों में रुचि रखने वालों के लिए यहां इनकी व्याख्या की जा रही है।

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम

रमजान के पवित्र महीने से जुड़ी समस्याओं में से एक यह है कि कुछ लोग बीमार होते हैं और किसी भी परिस्थिति में रोज़ा नहीं रख सकते। वे रमजान के पूरे महीने में रोज़ा रखने में असमर्थ हैं और रोज़ा न रखने के अपने बहाने के कारण कोई पाप भी नहीं करते हैं।

ये लोग दो प्रकार के होते हैं:

1. यदि ये लोग रमजान के महीने के बाद ग्यारह महीने के भीतर ठीक हो जाते हैं, तो उन्हें अपने छूटे हुए रोज़े की कज़ा करनी होगी। उन्हें रोजो को ग्यारह महीनों में विभाजित करना चाहिए। यदि वे ऐसा करेंगे तो वे आसानी से अपने छूटे हुए  रोज़े पूरे कर सकेंगे। हालाँकि, इन व्यक्तियों को अगले रमजान माह तक अपने छूटे हुए रोज़े क़ज़ा कर लेने चाहिए।

2. ये लोग वर्ष भर बीमार रहते हैं और शेष समय में रोज़ा नही रख सकते, और यदि वे रोज़ा रखते हैं, तो उनकी बीमारी और भी बदतर हो जाएगी। अब ऐसे लोगों पर न तो रोज़ा रखना वाजिब है और न ही उसकी क़ज़ा करना। इन रोज़ों के बदले में सिर्फ़ फ़िदया (एक छोटा सा कफ़्फ़ारा) ही वाजिब है। वे प्रत्येक दिन के बदले में एक गरीब व्यक्ति को लगभग एक किलोग्राम कच्चा भोजन, जैसे गेहूं का आटा, रोटी, चावल और मैक्रोनी देंगे, लेकिन वे भोजन के बदले में किसी गरीब व्यक्ति को पैसा नहीं दे सकते।

हालांकि, मराज ए एज़ाम के कार्यालयों को धन दिया जा सकता है, क्योंकि इस धन से वहां सामान खरीदा जाता है और गरीबों में वितरित किया जाता है, या फिर रेस्टोरेंट के मालिक को भी धन दिया जा सकता है ताकि वह इस धन का उपयोग योग्य लोगों को उनके पापों के कफ़्फ़ारे के रूप में रोटी वितरित करने के लिए कर सके।

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