हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,आयतुल्लाह उलमा ने माहे रमज़ान के दौरान नैतिकता पर एक पाठ सत्र में जो कि रविवार को क़ुम स्थित हज़रत इमाम ख़ुमैनी रह. हुसैनिया में सर्वोच्च नेता के कार्यालय में आयोजित हुआ अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली अ.ल. की ब्रह्मांडीय स्थिति और उनकी पैगंबर मुहम्मद (स) से संबंध पर चर्चा की।
रसूलुल्लाह (स.ल.व.व.) और अमीरुल मोमिनीन (अ) एक ही नूर से है।
उन्होंने पैगंबर (स) की एक हदीस का हवाला देते हुए कहा,मुझे और अली (अ) को एक ही नूर से पैदा किया गया है उन्होंने इस पर बल दिया कि पैगंबर (स) और अमीरुल मोमिनीन (अ) की विश्व-दृष्टि एक समान है और ये दोनों महान हस्तियां समान स्तर पर हैं।
हज़रत मासूम (अ.स.) ही अस्तित्व और आध्यात्मिक सच्चाइयों के वास्तविक स्रोत:
आयतुल्लाह अलमा ने कहा कि मासूम (अ) ही वे हस्तियां हैं जो अस्तित्व आध्यात्मिक संसार (मलकूत) और रहस्यमयी आध्यात्मिक अवस्थाओं की वास्तविकता को व्यक्त कर सकती हैं। क्योंकि वे पूरी तरह से अस्तित्व की सच्चाइयों को समझते हैं। गैरमासूम व्यक्ति भले ही कुछ हद तक इन वास्तविकताओं को जान ले, लेकिन वह कभी भी पूर्णता तक नहीं पहुँच सकता।
अमीरुल मोमिनीन (अ) बोलता क़ुरान और इलाही ज्ञान का प्रतीक:
उन्होंने हज़रत अली (अ.स.) की महानता को बताते हुए कहा,अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) ने स्वयं फरमाया: 'أنا القرآن الناطق' (मैं बोलता हुआ क़ुरान हूँ)।यानी उनका ज्ञान, उनकी वाणी, और उनके कार्य सभी दिव्य ज्ञान के प्रतिबिंब हैं। वे "लिसानुल्लाह" (अल्लाह की वाणी) हैं और उनका कथन वही है जो ईश्वर का कथन है।
सलमान फ़ारसी (रह.)बोलते क़ुरान के सच्चे अनुयायी:
आयतुल्लाह उलमा ने सलमान फ़ारसी (रह.) के जीवन पर चर्चा करते हुए कहा कि उन्होंने पैगंबर (स.ल.) और अमीरुल मोमिनीन (अ) के प्रति संपूर्ण समर्पण दिखाया, जिसके कारण उन्हें "सलमानु मिन्ना अहलुल बैत" (सलमान हमारे अहलुल बैत में से हैं) का सम्मान प्राप्त हुआ। यह दर्शाता है कि जो भी क़ुरान और अहलुल बैत (अ) के मार्ग पर चलेगा वह उच्च आध्यात्मिक स्थान प्राप्त कर सकता है।
शबे मेराज और अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) का दिव्य स्थान:
इस्लामी विद्वान ने पैगंबर (स.ल.) की मेराज का उल्लेख करते हुए कहा कि उस रात अल्लाह ने पैगंबर (स) को आदेश दिया कि वे सभी पैगंबरों से पूछें कि वे किस उद्देश्य से भेजे गए थे। सभी पैगंबरों ने उत्तर दिया कि हम तौहीद अंतिम पैगंबर (स) की रिसालत और अमीरुल मोमिनीन (अ) की विलायत के प्रचार के लिए भेजे गए हैं।यह स्पष्ट करता है कि हज़रत अली (स.ल.) की विलायत ब्रह्मांडीय और ईश्वरीय व्यवस्था का एक अनिवार्य अंग है।
अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) की ओर देखना सर्वोच्च इबादत:
उन्होंने हज़रत अबूज़र ग़िफ़ारी (रह.) की एक हदीस का उल्लेख करते हुए कहा,अमीरुल मोमिनीन (अ) की ओर देखना भी एक इबादत है क्योंकि वे ईश्वरीय न्याय का मापदंड और न्याय का तराजू हैं। हमें अपने विश्वास, आचरण और कर्मों में अमीरुल मोमिनीन (अ) को अपना संपूर्ण आदर्श बनाना चाहिए।
इमाम मासूम (अ.स.)सीरत-ए-मुस्तकीम" और ईश्वरीय न्याय का तराजू:
अंत में उन्होंने कहा कि हम सभी मासूम इमामों (अ.स.) के प्रति पूर्ण रूप से निर्भर हैं, क्योंकि वे ईश्वरीय प्रकाश के पूर्ण प्रतीक और अल्लाह के सत्य प्रतिबिंब हैं। केवल उन्हीं के माध्यम से हम अस्तित्व की वास्तविकता और ईश्वरीय ज्ञान को समझ सकते हैं।
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