हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई/ खोजा शिया इसना आशरी जामा मस्जिद, पाला गली में ईद-उल-फ़ित्र की नमाज़ 1 शव्वाल 1446 हिजरी को हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना सय्यद रूहे ज़फ़र रिज़वी साहब क़िबला की इमामत में अदा की गई।
मौलाना सय्यद रूहे ज़फ़र रिज़वी ने नमाज़ियों को तक़वा (परहेज़गारी) अपनाने की नसीहत देते हुए फरमाया,तक़वा हमारी ज़िम्मेदारी है और हमें हमेशा अल्लाह से इस पर अमल करने की तौफीक़ माँगनी चाहिए।
मौलाना सय्यद रूहे ज़फ़र रिज़वी ने ईदुल-फ़ित्र की अहमियत बयान करते हुए कहा,ईद का मतलब लौटना है रमज़ान से पहले इंसान जिन बुराइयों और गंदगियों में लिप्त होता है, रमज़ान का मुबारक महीना उसे उन बुराइयों से छुटकारा दिलाता है।
यह महीना दिलों को नरम करता है रूहों को पाक करता है। इस महीने में थोड़ी सी कोशिश से इंसान खुद को रूहानियत, आध्यात्मिकता और नूरानियत से भरपूर बना सकता है। 11 महीनों की सारी गंदगी और बुराइयों से खुद को दूर कर सकता है।
फिर असली ईद यानी लौटना जैसे बच्चा अपनी माँ के पेट से बेगुनाह पैदा होता है वैसे ही इंसान खुद को पाक बना सकता है अब इंसान की ज़िम्मेदारी है कि वह खुद को पाक और सुरक्षित रखे।
मौलाना सय्यद रूहे ज़फ़र रिज़वी ने फरमाया,अवलिया और सालेहीन ने हमेशा अपने नफ्स की मुखालिफ़त (विरोध) की और उसे काबू में रखा। यही 'जिहाद-ए-अकबर' (सबसे बड़ा संघर्ष) है, जिसका हमें हुक्म दिया गया है।
उन्होंने नफ्स की तज़किया पर ज़ोर देते हुए कहा,सूरह शम्स और सूरह अ'ला, जिनकी हमने अभी नमाज़ में तिलावत की उनमें कामयाब उसी को बताया गया है जिसने अपने नफ्स का तज़किया किया, उसे पाक बनाया।
मौलाना सय्यद रूह ज़फ़र रिज़वी ने कहा,हमारी नाकामी का कारण हमारा आपसी मतभेद है हम मज़लूम (अत्याचार के शिकार) हैं, लेकिन आपसी मतभेदों की वजह से कमज़ोर हैं। जबकि हमारे दुश्मन ज़ालिम (अत्याचारी) हैं, लेकिन वे आपस में एकजुट हैं, इसलिए मज़बूत हैं। हमें ज़रूरत है कि हम आपस में एकता बनाए रखें।
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