मंगलवार 1 अप्रैल 2025 - 13:15
भारतीय धार्मिक विद्वानों का परिचय | अल्लामा तक़ी युल हैदरी

हौज़ा /पेशकश: दनिश नामा ए इस्लाम, इन्टरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर दिल्ली

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी, अल्लामा तक़ी हैदरी 1 सितंबर 1946 में सरज़मीने मटिया बुर्ज, कलकत्ता पर पैदा हुए। आपके वालिद हकीम सैयद मोहम्मद नबी कलकत्ता में तबाबत करते थे, इसी लिए मोहल्ला मटिया बुर्ज में मुस्तक़िल सुकूनत इख्तियार की।

अल्लामा ने इब्तिदाई तालीम मटिया बुर्ज में हासिल की, आपके वालिद ने आपका दीनी तालीम की तरफ़ रुजहान देखते हुए मौसूफ़ को फखर-उल-अत्क़िया मौलाना वसी मोहम्मद, प्रिंसिपल वसीका अरबी कॉलेज, फैज़ाबाद के सुपुर्द कर दिया। अल्लामा तक़ी हैदरी सन 1956 ईस्वी में वसीक़ा अरबी कॉलेज में दाख़िल हुए और दीनी तालीम के हुसूल में मशगूल  हो गए। अल्लामा बला की ज़हानत के मालिक थे, जिसकी बिना पर इल्मी मदारिज को तय करते चले गए।

अल्लामा के उस्ताद मौलाना वसी मोहम्मद बे-औलद थे, लिहाज़ा उन्होंने मौलाना तकी हैदरी को अपने बेटे की जगह समझा और उन पर अपनी भरपूर तवज्जो मर्कूज़ कर दी। ऐसे कामिल उस्ताद को पाकर मौसूफ़ की इल्मी लियाक़त में बेपनाह इज़ाफ़ा हुआ। मौलाना वसी मोहम्मद के अलावा दूसरे असातिज़ा ने भी आपको कामयाबी से हमकिनार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जिनमें मौलाना अली इरशाद मुबारकपुरी, मौलाना सैयद मोहम्मद हसन, मौलाना अबरार हुसैन, मौलाना मोहम्मद अहमद जौनपुरी वगैरह के अस्मा-ए-गिरामी सरे फहरिस्त हैं।

सन 1965 ईस्वी में सतहियात की तालीम मुकम्मल करने के बाद आला तालीम के लिए नजफ-ए-अशरफ़ का रुख किया और वहाँ रहकर आयतुल्लाह मोहम्मद तक़ी काशानी, आयतुल्लाह शेख़ अल-राज़ी, आयतुल्लाह सैयद जवाद मुस्तफ़ावी, आयतुल्लाह मोहसेनुल हकीम, आयतुल्लाह अबुल क़ासिम अल-खूई और आयतुल्लाह रुहुल्लाह खुमैनी के सामने ज़ानु-ए-अदब तय किए।

आप सन 1970 ईस्वी में हिंदुस्तान वापस तशरीफ़ लाए। फखर-उल-अत्क़िया ने मौसूफ़ की इल्मी सलाहियतों के पेशे-नज़र वसीका अरबी कॉलेज में उस्ताद की हैसियत से मुन्तख़ब कर लिया। आपने जदीद तर्ज़ पर दर्स देना शुरू किया, जिससे आपको बहुत मक़बूलियत मिली और तुल्लाब हद दर्जा शौक़ से आपके दर्स में शरीक होने लगे।

आपने बेशुमार शागिर्दों की तरबियत की, जिनमें मौलाना सैयद मोहम्मद जाबिर जोरासी, मौलाना सैयद मोहम्मद मोहसिन (मुदीरे वसीक़ा अरबी कॉलेज), मौलाना सैयद मोहम्मद असगर, मौलाना अली अकबर, मौलाना मंजर अब्बास, मौलाना मुस्तफा हुसैन और मौलाना मोहम्मद अब्बास वगैरह के नाम सरे फ़ेहरिस्त हैं।

सन 1978 ईस्वी में मौलाना वसी मोहम्मद को नादिरतुज़-ज़मन मौलाना सैयद इब्ने हसन नोनहरवी, प्रिंसिपल मदरसा-ए-वाईज़ीन ने तलब किया और आपको वाइज़ीन का वाइस-प्रिंसिपल बना दिया। सन 1980 में नादिरतुज़-ज़मन की रहलत के बाद आपको प्रिंसिपल मुक़र्रर किया गया। सन 1978 में फखर-उल-अत्क़िया के लखनऊ जाने के बाद अल्लामा तक़ी हैदरी को वसीक़ा अरबी कॉलेज का प्रिंसिपल मुक़र्रर किया गया।

जब अल्लामा ने वसीका अरबी कॉलेज की ज़िम्मेदारी संभाली, तो इमारत इंतिहाई बोसीदा थी, कोई हिस्सा सालिम न था। आपने पूरी इमारत की तामीरे नौ कराई और वसीक़ा की मस्जिद की मरम्मत करा के उसके फर्श को फिर से मुज़य्यन कराया। साथ ही फैज़ाबाद के मोमिनीन की मज़हबी रहनुमाई फ़रमाई और उलमा-ए-फ़ैज़ाबाद में इत्तेहाद व इत्तिफ़ाक़ को क़ायम रखा।

आप पूरी ईमानदारी के साथ अपने वज़ीफ़े को अंजाम देते रहे। सन 2008 ईस्वी में रिटायर हुए, तो आपके शागिर्द मौलाना मोहम्मद मोहसिन जौनपुरी को मदरसे का प्रिंसिपल बनाया गया, जो आज भी इस मंसब की ज़िम्मेदारियों को बख़ूबी अंजाम दे रहे हैं। मगर आपकी ख़िदमात के पेशे-नज़र वहाँ की इंतेज़ामिया कमेटी ने फैज़ाबाद के डी.एम. की सरपरस्ती में यह तय किया कि मौलाना तकी हैदरी वसीका अरबी कॉलेज के निगरां रहेंगे।

अल्लामा हैदरी एक जय्यद आलिम, बेहतरीन उस्ताद और पाये के ख़तीब ही नहीं, बलके  बेहतरीन शायर भी थे। लेकिन उनकी शायरी कभी मंज़र-ए-आम पर नहीं आई। आप नजफ़-ए-अशरफ़ में तालिब-इल्मी के ज़माने से मोतबर शायरी करते थे।
उनका एक शेर नमूने के तौर पर मुलाहिज़ा हो:

मायूसियों के बाद जो देखा रुख-ए-हुसैन,
आंसू ख़ुशी के आ गए चश्म-ए-हयात में।

आपकी ख़िताबत का लोहा हिंदुस्तान और बैरूने-ए-हिंदुस्तान में माना जाता था।आपने ब्रिटेन, जर्मनी, हॉलैंड और अमेरिका जैसे ममालिक में भी ख़िताब फ़रमाया। आपकी ख़िताबत में क़ुरआनी इस्तदलाल के साथ फलसफ़ियाना फ़िक्र होती थी, जिससे लोग आपको दूर-दूर से सुनने के लिए आते थे।, और आप भी वज़ा-दारी बरतते हुए ऐसे मुक़ामात पर ज़रूर तशरीफ़ ले जाते थे। हिंदुस्तान के अलावा, आपने ख़िताबत के सिलसिले में ब्रिटेन, जर्मनी, हॉलैंड और अमेरिका का सफ़र किया।

आपको किताबों के मुतालेए के बहुत शौकीन थे। रात का खाना खाने के बाद 2-3 बजे तक मुताला करते, फिर नमाज़-ए-सुबह के लिए उठते और थोड़ी देर आराम करने के बाद दर्स देने चले जाते।

आख़िरकार यह इल्म व अदब का आफ़ताब 4 नवंबर 2012 में हरकते क़ल्ब बंद होने की वजह से लखनऊ में ग़ुरूब हो गया।

इंतिक़ाल की ख़बर बिजली की तरह फैल गई। औलमा-ए-लखनऊ ताज़ियत के लिए जमा हो गए। जनाज़ा लखनऊ से फैज़ाबाद लाया गया। मोमिनीन का मज़मा जनाज़े के इस्तक़बाल में खड़ा था, हर तरफ़ क़यामत का समां था। नमाज़े जनाज़ा के बाद मज़मे  की हज़ार आहो बुका के हमराह मौलवी बाग़ नामी क़ब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-ख़ाक कर दिया गया।

माखूज़ अज़: मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-10 पेज-103 दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर,दिल्ली, 2024ईस्वी।  

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