हौज़ा न्यूज़ एजेंंसी के अनुसार, बर्रे स़ग़ीर की सरज़मीन हमेशा इल्म व इरफ़ान के दरख़्शाँ सितारों से रोशन रही है, और उन्हीं में एक ताबिन्दा नाम मौलाना सैयद तसद्दुक़ हुसैन कन्तूरी रह॰का है, जिन्होंने इल्म व तहक़ीक़, तदरीस व तस्नीफ़ और कुतुब ख़ानादारी के मैदान में लाज़वाल ख़िदमात अंजाम दीं।
मौलाना सैयय्द तसद्दुक़ हुसैन 2 जून 1847 ईस्वी को इल्म व अदब के मरकज़ लखनऊ में पैदा हुए। आपका ताअल्लुक़ ख़ानदाने इल्म व फ़काहत से था। आपके वालिद अल्लामा सैयद ग़ुलाम हसनैन कन्तूरी अपने अहद के मुमताज़ औलमा में शुमार होते थे, जिनके इल्मी मक़ाम व मर्तबे को हिन्दुस्तान के इल्मी हल्क़ों में निहायत क़द्र व मन्ज़िलत की निगाह से देखा जाता था।
मौलाना सैयद तसद्दुक़ हुसैन ने इब्तिदाई तालीम अपने आबाई वतन कन्तूर में हासिल की। मौलाना का इल्मी ज़ौक़ बचपन ही से नुमायाँ था। सन 1857 ईस्वी में आपके वालिद अंग्रेज़ सामराज़ के ख़िलाफ़ जंग-ए-आज़ादी के मुजाहिदीन के साथ सफ़-ए-अव्वल में शरीक रहे, और उसके बाद हालात के पेशे नज़र नेपाल मुन्तक़िल हो गए। इस दौरान मोसूफ़ ने अपने वतन वापस आ कर तालीम का सिलसिला जारी रखा। वालिद के नेपाल से वापसी पर आपने उनसे मनतिक़, फ़लसफ़ा,रियाज़ी और दीगर अक़्ली व नक़ली उलूम की बाक़ायदा तालीम हासिल की।
सन 1869 ई॰ में मौलाना ने किंग कॉलेज लखनऊ से फ़ाज़िल की सनद हासिल की, जो उस वक़्त के जदीद इल्मी इदारों में शुमार होता था। इसके बाद दीनी उलूम की तरफ़ मज़ीद रुजू किया और फ़िक़्ह, हदीस, तफ़्सीर और उसूल-ए-दीन की आला तालीम मौलाना हमीदुल हसन रह॰ जैसे जलीलुल-क़द्र आलिम से हासिल की। मज़ीद इल्मी इस्तिफ़ादा आपने मुफ़्ती मोहम्मद अब्बास लखनवी रह॰, आयतुल्लाह सैयद अहमद अली रह॰, और अपने वालिद अल्लामा सैयद ग़ुलाम हसनैन रह॰से भी किया।
इल्म की इशाअत आपका महबूब मशग़ला था। तदरीस से गहरा शग़फ़ रखते थे और इस मैदान में बेमिसाल ख़िदमात अंजाम दीं। आपकी तरबियत से बहुत सी इल्मी व फ़िक्री शख़्सियात उभरीं जिन्होंने बर्रे स़ग़ीर में इल्म का चराग़ रोशन किया। जिनमें से: मौलाना सैयद ग़ुलाम अब्बास (हैदराबाद), हकीम सैयद मुहम्मद रसूल ख़ाँ, मौलाना सैयद अहमद सईद, मौलाना सैयद मुस्तफ़ा कन्तूरी और मौलाना सैयद मुहम्मद अली वग़ैरह के अस्मा-ए-गिरामी सर-ए-फ़हरिस्त हैं। आपकी तदरीस में शफ़क़त, वक़ार, अख़्लाक़ और इख़्लास का हसीन इम्तिज़ाज था जो तुल्लाब की रूहानी व इल्मी तरबियत में निहायत मोअस्सिर था।
मौलाना तसद्दुक़ हुसैन ने मुख़्तलिफ़ इल्मी मौज़ूआत पर गिराँ क़द्र तस्नीफ़ात पेश कीं। उनकी तहरीरें तहक़ीक़ी मेयार और फ़िक्री उम्क़ का नमूना हैं। उनकी अहम तसनीफ़ात में नूरुल ऐन: अल्लामा मोहम्मद बिन ताहिर समावी नजफ़ी की अरबी तसनीफ़ अबसारुल हुसैन फ़ी अंसारिल हुसैन का उर्दू तर्जुमा।, जामेउल अहकाम: एक अहम दीनी व फ़िक़्ही दस्तावेज़ वग़ैरह के नाम लिए जा सकते हैं।
इस के अलावा आपने मौलवी चराग़ अली के साथ भी इल्मी तआवुन किया, जो रिसाला उलूम-ए-जदीदा व इस्लाम की तालीफ़ में मस्रूफ़ थे। मौलाना तक़रीबन चार साल तक उनके साथ इल्मी व फ़िक्री मबाहिस में शरीक रहे।
24 रबीउल अव्वल 1314 हिजरी में मौलाना को नवाब इमादुल मुल्क की जानिब से कुतुबख़ाना आसफ़िया, हैदराबाद का मोहतम्मिम मुक़र्रर किया गया। इस उहदे पर फ़ाइज़ हो कर आपने कुतुबख़ाने को इल्म का ऐसा मरकज़ बनाया जो आज भी तारीख़-ए-दकन का दरख़्शाँ बाब है। मोसूफ़ ने नादिर और क़ीमती मख़्तूतात की तलाश व फ़राहमी, कुतुब की फ़ेहरिस्तसाज़ी और दर्जा बंदी, मुहक़्क़िक़ीन व मुसन्निफ़ीन की राहनुमाई और हज़ारों नायाब कुतुब की नक़लें हासिल कर के कुतुबख़ाना आसिफ़या के ज़ख़ीरे में इज़ाफ़ा कर के इल्म को जिला बख़्शी। आपकी कोशिशों से कुतुबख़ाना आसफ़िया को बेनुल अक़वामी सतह पर शोहरत मिली और ये इदारा तहक़ीक़ी सरगर्मियों का मरकज़ बन गया।
अल्लाह ने मौलाना को दो साहबज़ादे अता फ़रमाए: मौलाना सैयद अब्बास हुसैन (मोहतम्मिम कुतुबख़ाना आसिफ़िया) और मौलाना सैयद अली मुहम्मद जो दकन के सद्र मुहासिब के तौर पर पहचाने गए। और अपने वालिद के इल्मी व अख़्लाक़ी विरसे के अमीन बने।
मौलाना सैयद तसद्दुक़ हुसैन कन्तूरी रह॰ की हयात, इल्म, इख़्लास और ख़िदमत-ए-दीन का एक दरख़्शाँ नमूना है। आपने जिस तरह दर्स व तदरीस, तस्नीफ़ व तहक़ीक़, और कुतुबख़ानादारी में अपनी ज़िंदगी सर्फ़ की, वो बाद वाली नस्लों के लिए एक क़ाबिल-ए-तक़लीद मिसाल है। आपकी इल्मी, अख़्लाक़ी और इदारा जाती ख़िदमात आज भी अहल-ए-इल्म के दिलों में ज़िंदा हैं।
आख़िरकार ये इल्म ओ अदब का दरख़्शाँ आफ़ताब 27 मार्च 1930 ईस्वी, बरोज़ जुमेरात, हैदराबाद दकन में हमेशा के लिए ग़ुरूब हो गया।
मोसूफ़ के इन्तिक़ाल की ख़बर से इल्मी हल्क़ों में ग़म की लहर दौड़ गई। नमाज़-ए-जनाज़ा के बाद मजमे की हज़ार आहो बुका के हमराह क़ब्रिस्तान-ए-क़ुतुबशाही में सुपुर्द-ए-ख़ाक किया गया।
माखूज़ अज़: मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-5 पेज-196 दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, 2024ईस्वी।
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