۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
आयतुल्लाह सैयद यूसुफ़ हुसैन अमरोहवी

हौज़ा / पैशकश: दानिशनामा ए इस्लाम, इंटर नेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर दिल्ली

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट अनुसार, यूसुफ़ुल मिल्लत आयतुल्लाह सैयद यूसुफ़ हुसैन साहब 18 / रजब सन 1312 हिजरी में सरज़मीने अमरोहा पर मेहल्ला दानिशमंदान में पैदा हुए , यूसुफ़ुल मिल्लत के वालिदे मोहतरम मौलाना हाजी सैयद मुर्तज़ा हुसैन साहब क़िबला थे । आयतुल्लाह यूसुफ अमरोहवी अपने ज़ामाने के मुसल्लमुस सुबूत मुजतहिद थे ।

आयतुल्लाह यूसुफ़ हुसैन साहब ने इब्तेदाई नीज़ अरबी वा फार्सी तालीम अपने वालिदे मोहतरम से हासिल की क्योंकि आपके वालिद अपने ज़ामाने के मोतबर ओलमा वा फ़ोज़ला में शुमार होते थे । इब्तेदाई तालीम से फ़राग़त के बाद आपने रामपुर का रुख़ किया और वहां जनाब मोहम्मद अमीन शाह आबादी के पास माक़ूलात की तालीम हासिल की ।

1905 / ईसवी में अपनी तालीम को आगे बढ़ाने की  ग़रज़ से दरबारे मौला ए कायनात ‘’ नजफ़े अशरफ ‘’ में हाज़िर हुए , वहां आयतुल्लाह मोहम्मद काज़िम तबातबाई के मदरसे में क़याम फ़रमाया, वहां रहकर बुज़ुर्ग और तजर्बेकार असातेज़ा ए किराम की ख़िदमत में ज़ानु ए अदब तेह किये ।

मसलन : आयतुल्लाह मोहम्मद काज़िम ख़ुरासानी , आयतुल्लाह मोहम्मद काज़िम तबातबाई, आयतुल्लाह सैय्यद अबुल हसन इसफ़हानी , आयतुल्लाह शेख़ अली क़ूचानी , आयतुल्लाह ज़ियाउद्दीन इराक़ी और आयतुल्लाह सैय्यद अबू तुराब  ख़्वानसारी वग़ैरा ।

आयतुल्लाह यूसुफ़ साहब ने मुताद्दिद असातिज़ा  और आयाते एज़ाम से इजतेहादो रिवायत के इजाज़े हासिल किए जिन मे से कुछ आयाते  एज़ाम के असमा ए गिरामी इस तरह है : आयतुल्लाह सैय्यद मोहम्मद काज़िम तबातबाई , आयतुल्लाह ज़ियाउद्दीन इराक़ी , आयतुल्लाह सैय्यद अबुल हसन इसफ़हानी , आयतुल्लाह मोहम्मद हुसैन माज़ंदरानी , आयतुल्लाह अली ख़ुरासानी क़ूचानी , आयतुल्लाह सैय्यद अबू तुराब ख़ुरासानी , शैख़ुश शरिया आयतुल्लाह फ़तहुल्लाह शीराज़ी और आयतुल्लाह अली गुना आबादी ख़ुरासानी । इन इजाज़ों के ज़रिए आयाते एज़ाम ने आप के इल्म  का एतेराफ़ किया है जिस से आप की सलाहियतों का अंदाज़ा होता है ।

आयतुल्लाह युसुफ़ अमरोहवी साहब सन 1333 / हिजरी मे नजफ़े अशरफ़ से अपने वतन अमरोहा वापस आए और वहाँ तशनगाने उलूमे आले मोहम्मद को सेराब करने लगे ।

जब यूसुफ़ुल मिल्लत इराक़ से हिंदुस्तान वापस आए तो हिंदुस्तान मे पहली जंगे अज़ीम ख़त्म हो चुकी थी । और अँग्रेज़ो के ख़िलाफ़ तहरीक जारी हो चुकी थी ।

जिस वक़्त बर्तान्वी हुकूमत के ख़िलाफ़ ज़रा सी अंगुश्त नुमाई पर गर्दन मार दी जाती थी ऐसे पुर आशोब माहौल में आयतुल्लाह यूसुफ़ हुसैन अमरोहवी ने बर्तान्वी फौज और पुलिस की मुलाज़ेमत पर हुरमत का फ़तवा सादिर किया । इनके फ़तवे का असर यह हुआ के मुस्लिम क़यादत में इस्तहकाम पैदा हो गया और इत्तेहाद बैनूल मुसलिमीन को तक़्वीयत पहुंची ।

आयतुल्लाह युसुफ़ साहब नूरूल मदारिस अमरोहा में प्रिंसिपल की हैसियत से मुक़र्रर हो गए । यह मदरसा आपके वालिदे मोहतरम मौलाना मुर्तज़ा हुसैन साहब की कोशिशों के सबब मुमताज़ मदारिस में शुमार होता था ।

जब बर्तान्वी हुकूमत ने नजफ़ ए अशरफ़ में मौला अली (अ) के रौज़ा ए मुनव्वरा पर हमला किया जिस से रोज़े को काफ़ी नुक़सान पहुंचा तो इन्हो ने अमरोहा में सदा ए एहतेजाज बुलंद की ।

इस मदरसे की तालीम उस आला मैयार की थी के इस मदरसे में दुनियावी तालीम हासिल करने वाला तालिबे इल्म जब फारिग़ होकर निकलता था तो अक्सर पब्लिक या गवर्नमेंट कॉलेज में उस्ताद की हैसियत से मुक़र्रर हो जाता था ।

सन 1922 ईस्वी बमुताबिक़ 1340 हिजरी में जब नूरुल मदारिस नामी मदरसा , ख़ानदान की मीरास में तब्दील होने लगा तो यूसुफ़ुल मिल्लत डिप्टी कलक्टर जनाब मोहम्मद हुसैन साहब के इसरार पर मंसबिया अरबी कॉलेज मेरठ के प्रिंसिपल मुंतख़ब कर लिए गए । आप मंसबिया में 3 साल तक उस्ताद व मुदीर की हैसियत से रहे और इस दौरान मदरसे को आयतुल्लाह यूसुफ़ साहब ने तवक़्क़ो से ज़्यादा तरक़्क़ी के मराहिल तय कराए ।

सन 1925 / ईस्वी बमुताबिक़ 1343 / हिजरी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में शमसुल  ओलमा मौलाना क़ारी सैय्यद अब्बास हुसैन रिज़वी जार्चवी की जगह पर उस्ताद ए दीनियात की हैसियत से आपका तक़ररूर हुआ, उस वक़्त आपकी तनख्वाह रु.500/= थी ।

जब आयतुल्लाह यूसुफ़ साहब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पहुंचे तो उस वक़्त यूनिवर्सिटी में शिया नमाज़े  जुमा का तसव्वुर नहीं था , आपकी काविशों के ज़रिए वहां शिया नमाज़े जुमा क़ायम हुई जो आज तक जारी ओ सारी है ।

आयतुल्लाह युसुफ़ अपनी ज़िंदगी के आख़िरी लमहात तक इसी ओहदे पर बरक़रार रहे । उन के कारनामे देखने दिखाने के क़ाबिल थे । वो बेहद मुंकसीरुल मिज़ाज और बा अख़लाक़ शख़सियत के हामिल थे । मेहमान नवाज़ी उनकी तबियत में कूट कूट कर भरी थी । मौसूफ़ के घर का दरवाज़ा बिला तफ़रीक़े मज़हबो  मिल्लत हर तालिबे इल्म के लिए खुला था खास तौर से जदीद तुल्लाब की बहुत ज़्यादा  हिमायत करते थे ।

युसुफ़ साहब मेरठ से ‘‘अलहादी’’  नाम का रिसाला निकालते थे जिस में आप के फ़तावा शाये होते थे ।

आयतुल्लाह यूसुफ़ हुसैन साहब ने मुताद्दिद किताबें तालीफ़ कीं जिनमें से तफ़सीर ए यूसुफ़ी , मुस्तताब ए नेहजुल बलाग़ा ( तर्जुमा वा हाशिया नहजुल बलाग़ा ) , रिसाला ए जाफ़रिया , तर्जुमा ज़ख़ीरतुल एबाद , किफ़ायतुल उसूल का हाशिया , शाफ़िया के जवाबात और तौज़ीहुर रकाआत के असमा क़ाबिले ज़िक्र हैं।

युसुफ़ुल मिल्लत तालीफ़ो तसनीफ़ में दिन रात एक किए रहते थे जिस की वजह से बीमार हो गए । अपने दौर के बड़े से बड़े हकीम के मतब जाकर इलाज कराया लेकिन सेहत मुस्तक़िल गिरती रही लिहाज़ा मजबूर होकर अमरोहा वापस आ गए और यह बीमारी ख़ुदा से मुलाक़ात का सबब बन गई । आयतुल्लाह यूसुफ़ हुसैन साहब 1352 / हिजरी में बारगाह ए ख़ुदावंदी से मुनसलिक हो गए और मजमे की हज़ार आहो बुका के हमराह अज़ाख़ाने नूरूल मदारिस मेहल्ला दानिशमंदान की शह नशीन में सुपुर्द ए ख़ाक किए गए ।

(माख़ूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, जिल्द 4, सफ़्हा 289, तहक़ीक़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी – मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी – दानिशनामा ए इस्लाम, नूर माइक्रो फ़िल्म, दिल्ली)

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