हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, बच्चों की धार्मिक परवरिश इस्लाम में माता-पिता की सबसे अहम ज़िम्मेदारियों में से एक है, जो बच्चों की आस्था और अख़लाक (चरित्र) को बनाने में अहम भूमिका निभाती है। आज की दुनिया में, जहां सांस्कृतिक हमले और शक व शुब्हात नौजवानों को खतरे में डाल रहे हैं, इस्लामी तरीके से बच्चों की परवरिश की ज़रूरत पहले से भी ज़्यादा महसूस होती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह ज़िम्मेदारी (बच्चों को इस्लामी अहकाम सिखाना) सिर्फ़ एक नैतिक कर्तव्य (मोरल ड्यूटी) है या फिर शरई तौर पर भी वाजिब है?
हज़रत आयतुल्लाह खामेनेई ने बच्चों को इस्लामी अहकाम सिखाने में माता-पिता की ज़िम्मेदारी से संबंधित पूछे गए सवाल का जवाब दिया है। शरई अहकाम मे रूची रखने वालो के लिए पूछे गए सवाल और उसके उत्तर का पाठ प्रस्तुत कर रहे है।
* बच्चों को इस्लामी अहकाम सिखाने में माता-पिता की ज़िम्मेदारी
सवाल: क्या बच्चों की धार्मिक परवरिश करना और उन्हें इस्लामी अहकाम तथा अच्छे संस्कार सिखाना शरई तौर पर वाजिब है?
जवाब: बच्चे की तालीम-तरबियत का ध्यान रखना और उसे गलत विश्वासों और बुरे अख्लाक (चरित्र) से बचाना, साथ ही बच्चे को ऐसे कामों से रोकना जो उसके लिए या दूसरों के लिए नुकसानदेह हों — यह सब बच्चे के अभिभावक की धार्मिक जिम्मेदारी है।
अगर मां को बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी दी गई हो, तो इस संबंध में मां पर भी शरई जिम्मेदारी है। अगर माता-पिता बच्चों की धार्मिक परवरिश में लापरवाही करें, तो वे गुनाहगार होंगे।
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